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नेशनल तीरंदाजी में चेम्पियन रही गोल्डेन गर्ल ममता टुडू सड़क पर झालमुड़ी बेचने को हैं मजबूर.

बोकारो : झारखंड की रहनेवाली ममता टुडू साल 2009 में विजयवाड़ा में हुई अंडर 13 तीरंदाजी में नेशनल चैंपियन का अवार्ड हासिल कर गोल्ड मेडल हासिल किया। तब से लोग उसे गोल्डेन गर्ल के नाम से जानने लगे, लेकिन आज वह मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है। ममता के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब रहने के कारण उसे अब झालमुढ़ी बेचकर गुजारा करना पड़ रहा है।आखिर क्यों एक गोल्डेन गर्ल सड़कों पर झालमुढ़ी बेचने को विवश एव मजबूर है।

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यूं तो आदिवासियों को धनुर्विद्या विरासत में मिली है, लेकिन जिस 13 साल की उम्र में लड़कियों के हांथो में गुड्डे गुड़ियों का खिलौने हुआ करते हैं, उस उम्र में ममता टुडू ने तीर धनुष से खेला। धनबाद मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित संथालटोला, यहां ममता टुडू अपने माता पिता और छोटे भाइयों के साथ रहती है। ममता को बचपन से ही तीरंदाजी का शौक था।पिता के द्वारा दिए बांस की तीर धनुष से उसने तीरंदाजी शुरू की। देखते ही देखते वह धनुर्विद्या में निपुण हो गई। महज 13 साल की उम्र में उसने विजयवाड़ा में अंडर 13 राष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियनशिप में शामिल हुई और सिर्फ शामिल ही नही हुई बल्कि अपनी तीरंदाजी का जौहर भी दिखाई। उसने यह चैंपियनशिप में जीत हासिल की और गोल्ड मेडल जीती।

ममता रांची एक्सीलेंसी में रहकर अभ्यास कर रही थी, लेकिन कोरोना काल मे वह बंद हो गया। जिसके बाद वह वापस अपने घर लौट आयी यहां आने के बाद घर की आर्थिक स्थिति देखकर उसे रहा ना गया।जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी निभाने में जुट गई, और फिर जिन हांथो ने कभी निशाना लगाया था उन्ही हांथो से झालमुढ़ी बनाकर बेचती है। घर के पास में ही सड़क किनारे प्लास्टिक व बांस से बनी झोपड़ीनुमा दुकान में अपनी परिवार की जिम्मेदारी उठा रही है। ममता कहती है कि पिता दिहाड़ी मजदूर है कभी काम चलता है, कभी नही इसलिए इसे बेचकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता है, लेकिन सपना भी बरकरार है। वह देश के लिए गोल्ड जितना चाहती है। ममता कहती है कि सरकार यदि आर्थिक मदद करें और कोई नौकरी की उपाय करें तो मेरा सपना अब भी साकार हो सकता है।

ममता की माँ दीर्घा टुडू सरकार से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है। वहीं उनके बचपन के मो शमसाद ने भी सरकार का ध्यान ममता की ओर आकृष्ट कराते हुए आर्थिक पहल करने की मांग की है। बहरहाल ममता को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जिन आदिवासी हितों का ख्याल रखते हुए झारखंड को बिहार से अलग किया गया था, उन मूल उद्देश्यों से झारखंड की सरकार भटक चुकी है। आदिवासी के नाम पर वोट की राजनीति करने वाले माननियों की अब नही तो आखिर कब नींद खुलेगी।

बोकारो, बृज भूषण द्विवेदी

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