झारखंड के 24 जिलों में धूम-धाम से मनाया गया अनंत चतुदर्शी पर्व
अनंत चतुदर्शी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है…..
शास्त्रों में अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। वहीं पंचांग के अनुसार हर साल अनंत चतुर्दशी का त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। वहीं आपको बता दें कि इसे अनंत चौदस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती की आराधना की जाती है। वहीं इस दिन अनंत सूत्र बांधने की परंपरा है। वहीं पंडित हरी वंश दास गुरु ने अनंत चतुर्दशी व्रत कथा के बारे में कथा श्रद्धालुओं को बताई। वहीं सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण का कथा सुनाया। उन्होंने कथा में बताया की सुमंत नाम का एक ब्राह्मण था, उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।
कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।
कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।
तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’ श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे। ये अनंत चतुदर्शी व्रत की कथा है।