20250629 202508

साहिबगंज में हूल दिवस विवाद: सिदो-कान्हू के वंशज, आदिवासी समाज का सरकार और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश , आदिवासी अस्मिता पर चोट करने का आरोप

साहिबगंज में हूल दिवस विवाद: सिदो-कान्हू के वंशज, आदिवासी समाज का सरकार और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश , आदिवासी अस्मिता पर चोट करने का आरोप

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

साहिबगंज : झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव में 30 जून को होने वाले हूल दिवस के आयोजन को लेकर तनाव चरम पर है। इस ऐतिहासिक दिन को लेकर सिदो-कान्हू के वंशजों और “आतो मांझी वैसी भोगनाडीह” आदिवासी समाज ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रशासन द्वारा आयोजन पर रोक लगाने के फैसले ने स्थानीय आदिवासी समुदाय में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है।

Screenshot 20250629 201712

विवाद का कारण
हर साल 30 जून को भोगनाडीह में हूल दिवस के अवसर पर सिदो-कान्हू के वंशज और स्थानीय आदिवासी समुदाय पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। यह आयोजन न केवल संथाल विद्रोह की याद में होता है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का प्रतीक भी है। इस बार, जिला प्रशासन ने आयोजन के लिए बनाए जा रहे पंडाल और अन्य तैयारियों पर रोक लगा दी, जिसके बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई।

सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू ने आरोप लगाया कि पुलिस ने देर रात पंडाल निर्माण में शामिल कारीगरों और आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ मारपीट की और उन्हें हिरासत में ले लिया। उन्होंने इसे आदिवासी समुदाय और वंशजों के खिलाफ अत्याचार करार दिया। मुर्मू ने कहा, “हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपनी जान दी, लेकिन आज हमें अपने ही गांव में अपने तरीके से हूल दिवस मनाने से रोका जा रहा है। यह हमारी संस्कृति और इतिहास का अपमान है।”

आदिवासी समुदाय का विरोध
आक्रोशित आदिवासी समुदाय ने भोगनाडीह के सिदो-कान्हू पार्क में ताला जड़ दिया और सरकारी मंच के निर्माण कार्य को रुकवा दिया। पारंपरिक हथियारों जैसे तीर-धनुष, भाला, और तलवार के साथ सैकड़ों ग्रामीण कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। उनका कहना है कि अगर उन्हें अपना आयोजन करने से रोका गया, तो वे सरकारी कार्यक्रमों को भी नहीं होने देंगे और न ही प्रशासन या सरकार के प्रतिनिधियों को सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने की अनुमति देंगे।

मंडल मुर्मू ने कहा, “हमारी आपत्ति जिला प्रशासन और राज्य सरकार से है, आम लोगों से नहीं। हम शांतिपूर्ण तरीके से अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं, लेकिन प्रशासन हमें दबाने की कोशिश कर रहा है।

प्रशासन का रुख
जिला प्रशासन ने पूजा और आयोजन के समय में बदलाव का आदेश दिया था, जिसके अनुसार पूजा सुबह 10 बजे से पहले या शाम 4 बजे के बाद ही की जा सकती है। प्रशासन का तर्क है कि यह समय सीमा शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए निर्धारित की गई है। हालांकि, इस फैसले को आदिवासी समुदाय ने अपनी परंपराओं पर हमला माना।

हालांकि, कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स के अनुसार, ग्रामीणों के तीव्र विरोध के बाद प्रशासन ने आयोजन की अनुमति दे दी है। फिर भी, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, और स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है।

हूल दिवस का ऐतिहासिक महत्व
हूल दिवस 30 जून 1855 को शुरू हुए संथाल विद्रोह की याद में मनाया जाता है, जब सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, और फूलो-झानो के नेतृत्व में करीब 50,000 आदिवासियों ने साहिबगंज के भोगनाडीह गांव में अंग्रेजी शासन और महाजनी प्रथा के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी थी और इसे 1857 की क्रांति से पहले का सबसे प्रभावशाली जनआंदोलन माना जाता है। विद्रोह के दौरान करीब 20,000 आदिवासियों को अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया था, और सिदो-कान्हू को बरहेट के पंचकठिया में फांसी दे दी गई थी।

आदिवासी अस्मिता का सवाल
यह विवाद केवल एक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, उनके ऐतिहासिक योगदान, और उनकी सांस्कृतिक स्वायत्तता से जुड़ा है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने तूल पकड़ा है, जहां लोग इसे आदिवासी समुदाय के अपमान के रूप में देख रहे हैं।

स्थानीय लोगों और वंशजों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से अपने कार्यक्रम को आयोजित करना चाहते हैं, लेकिन प्रशासन का दबाव उन्हें मजबूर कर रहा है। दूसरी ओर, प्रशासन का दावा है कि वह कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठा रहा है। इस तनावपूर्ण स्थिति में दोनों पक्षों के बीच संवाद की कमी साफ दिख रही है।

हूल दिवस, जो आदिवासी समुदाय के साहस और बलिदान का प्रतीक है, इस बार विवादों के कारण चर्चा में है। यह देखना बाकी है कि क्या प्रशासन और समुदाय के बीच कोई समझौता हो पाएगा, या यह विवाद और गहराएगा। फिलहाल, भोगनाडीह में तनाव का माहौल है, और सभी की निगाहें 30 जून पर टिकी हैं।

Share via
Send this to a friend