बोकारो में “ब्लैक डायमंड” यानी कोयला के अवैध कारोबार का स्थानीय लोगों ने किया पर्दाफाश, जंगल में बना दिया गया था अवैध कोयले का डिपो, पुलिस थी मौन , कैसे बेरोक-टोक चल रहा था यह अवैध धंधा ?
बोकारो में ब्लैक डायमंड” यानी कोयला के अवैध कारोबार का पर्दाफाश स्थानीय लोगों ने किया, जंगल में बना दिया गया था अवैध कोयले का डिपो, पुलिस थी मौन , कैसे बेरोक-टोक चल रहा था यह अवैध धंधा
आकाश सिंह / राकेश शर्मा
बोकारो के पेटरवार प्रखंड के उलगड़ा जंगल में कोयले का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। यहाँ “ब्लैक डायमंड” यानी कोयला, न सिर्फ़ अवैध रूप से जमा किया जा रहा है, बल्कि ट्रकों में लादकर दूसरे राज्यों की मंडियों तक पहुँचाने की तैयारी भी हो रही है। कोयला तस्करों का यह सिंडिकेट चंद पैसों के लालच में सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड (CCL) जैसी सरकारी कंपनी की संपत्ति को लूट रहा है। जंगल में कोयले का भंडारण और उसकी तस्करी बिना किसी रोक-टोक के जारी है, जिससे यह साफ़ झलकता है कि इस काले खेल में कहीं न कहीं पुलिस और राजनीतिक संरक्षण का हाथ है।
रात के अंधेरे में जब कोयला लदा ट्रक जंगल से धड़ल्ले से निकलता है तो कोई रोक-टोक नहीं की जाती है आखिर यह किसकी मिली भगत से होता है? तो आजसू कार्यकर्ताओं ने उसे धर दबोचा। जंगल में अभी सैकड़ों टन कोयला अवैध रूप से जमा है। ग्रामीणों ने मुताबिक कोयला माफिया ने जंगल को अपने डिपो में तब्दील कर रखा है, जो एक छोटी खदान जैसा दिखता है।
लेकिन लंबे समय से चल रहा इस काले खेल को जो आजसू पार्टी की सक्रियता ने तार -तार कर दिया उन्होंने अवैध रूप से चल रहे इस कोयले के धंधे को पकड़ लिया और कई बार पुलिस को कॉल करने के बाद भी जब पुलिस लेट से पहुंची तो पूर्व विधायक लंबोदर महतो खुद मौके पर पहुंच गए और ट्रको को जप्त कर लिया इसके बाद की जो कहानी सामने आई वह हम आपको विस्तार से बताते हैं
कोयले का अवैध डिपो और तस्करी का खेल
उलगड़ा जंगल में कोयले का भंडारण इस तरह से किया जा रहा है कि इसे एक डिपो से ज्यादा एक छोटी खदान कहना उचित होगा। यहाँ बड़े पैमाने पर कोयला जमा किया जाता है, जिसे ट्रकों में लादकर रात के अंधेरे में गंतव्य तक पहुँचाने की तैयारी होती है। कोयला तस्करों का यह सिंडिकेट संगठित तरीके से काम करता है। इसमें शामिल लोग चंद पैसों के लालच में सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड (CCL) जैसे सरकारी उपक्रम से कोयला चुराकर उसे बाजार में बेचते हैं। ट्रकों पर कोयला लादने से लेकर उसे राज्य की सीमाओं से बाहर ले जाने तक का पूरा ऑपरेशन बिना किसी डर या बाधा के चलता है। यह दर्शाता है कि तस्करों को कहीं न कहीं संरक्षण प्राप्त है, जो इस खेल को निर्बाध रूप से चलाने में उनकी मदद करता है।
पुलिस की उदासीनता और संदिग्ध मौन
इस अवैध कारोबार की जानकारी स्थानीय लोगों और आजसू पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पुलिस को कई बार दी। लेकिन हर बार पुलिस ने या तो इसे नजरअंदाज किया या फिर कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की। कोयला तस्करों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बजाय पुलिस की यह सुस्ती कई सवाल खड़े करती है। क्या पुलिस की चुप्पी के पीछे कोई दबाव है? क्या तस्करों और प्रशासन के बीच कोई साठगाँठ है, जो इस काले धंधे को फलने-फूलने दे रही है? ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस को सब कुछ दिखाई देता है, फिर भी वह “मौनी बाबा” बनी रहती है। यह संदेह और गहरा जाता है जब यह देखा जाता है कि CCL जैसी सरकारी कंपनी बदहाल हो रही है, जबकि तस्करों की खुशहाली बढ़ रही है।
आजसू पार्टी का एक्शन और जनता की जागृति
कोयला तस्करों की मस्ती और पुलिस की निष्क्रियता को देखते हुए आजसू पार्टी ने खुद कमान संभाली। पार्टी कार्यकर्ताओं ने योजना बनाई और रात भर जंगल में गश्त की। जैसे ही कोयला लदा ट्रक जंगल से बाहर निकला, उसे धर दबोचा गया। इस अभियान में पूर्व विधायक डॉ. लंबोदर महतो भी शामिल हुए, जिन्होंने न सिर्फ ट्रक को पकड़वाया बल्कि उसे विधिवत रूप से पुलिस को सौंपकर यह संदेश दिया कि जनता अब चुप नहीं रहेगी। महतो ने पुलिस को बताया कि जंगल में अभी भी सैकड़ों टन कोयला अवैध रूप से जमा है, और यह काम लंबे समय से चल रहा है।
ग्रामीणों का आक्रोश और कोयला माफिया का हौसला
ग्रामीणों का कहना है कि उलगड़ा और पुटकाडीह जंगल सहित बोकारो जिले के कई इलाकों में कोयला माफिया ने बड़े पैमाने पर अवैध स्टॉक जमा कर रखा है। दिन हो या रात, यह खेल बेरोकटोक चलता है। कोयला माफिया का यह हौसला तब और बढ़ जाता है जब पुलिस की निष्क्रियता उनके लिए ढाल बन जाती है। ग्रामीणों ने इस सुस्ती पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि पुलिस को बार-बार सूचना देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती। यह स्थिति CCL जैसे सरकारी उपक्रमों के लिए घातक साबित हो रही है,
सरकार और पुलिस पर सवाल
आजसू पार्टी और डॉ. लंबोदर महतो ने इस घटना के जरिए झारखंड सरकार और बोकारो जिले की पुलिस प्रणाली को कटघरे में खड़ा किया है। महतो ने कहा कि भले ही उन्हें जनादेश न मिला हो, लेकिन वे जनता के हित में सड़क पर उतरते रहेंगे। कोयले के इस अवैध कारोबार ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। आखिर क्यों प्रशासन इस लूट को रोकने में नाकाम है? क्या तंत्र के कुछ हिस्से इस सिंडिकेट का हिस्सा बन चुके हैं? आजसू के इस एक्शन ने कोयला तस्करों और उनके संरक्षकों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि जब तक पुलिस और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएंगे, तब तक जनता को खुद आगे आना होगा।
दरअसल यह पूरा मामला कोयला माफिया के संगठित अपराध को उजागर करता है, तो दूसरी ओर पुलिस और प्रशासन की लचर व्यवस्था को नंगा करता है। यह घटना झारखंड में अवैध खनन और तस्करी के गहरे जड़ जमा चुके नेटवर्क की ओर इशारा करती है, बोकारो का यह “ब्लैक डायमंड” अब सिर्फ कोयला नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों का भी प्रतीक बन चुका है।