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हांफ रहा अंडरग्राउंड केबलिंग योजना ! पावर कट से जनता बेहाल !

झारखंड में सरहुल के मौके पर 9 घंटे से अधिक रांची में बिजली आपूर्ति का बाधित रहना…..उसके बाद रामनवमी के मौके पर हाईकोर्ट के द्वारा जनहित को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार को आदेश देना कि बिजली नहीं काटी जाए ….और दूसरे ही दिन राज्य सरकार का सुप्रीम कोर्ट चले जाना…  सुप्रीम कोर्ट का यह आर्डर की बिजली कम से कम काटी जाए…..आप सोच रहे होंगे की यह बात तो सब जान रहे है फिर हम इसकी  चर्चा यहां क्यों कर रहे है ।

दरअसल अब हम आपको बिजली विभाग की करतूत बताते हैं ।आपको भी याद होगा कि 2018 से रांची में अंडरग्राउंड केबलिंग की योजना बिजली विभाग चला रही है । जिसका मकसद  त्यौहारों पर रांची में निर्बाध  बिजली मिले और दुर्घटना कम से कम हो ।लेकिन क्या यह योजना सफल हुई ? क्या राजधानी में अंडरग्राउंड केबलिंग का काम पूरा हो सका? क्योंकि इस योजना में सरकार ने कुल 548 करोड रुपए खर्च किये हैं । जो एक बड़ी राशि होती है। क्योंकि जब इस योजना में जनता की गाढ़ी कमाई के पांच अरब रुपये से भो ज्यादे खर्च हुए हैं तो आखिर उसका फलाफल दिखता क्यों नहीं? आखिर इतनी राशि खर्च  होने के बाद त्योहारों के मौके पर राँची में  बिजली कटना बंद क्यों नहीं  हो रहा है  ? कई सवाल है..  हम इन सब सवालों को टटोलते हैं और जानते हैं कि बिजली विभाग आखिर क्यों नहीं अंडरग्राउंड केबलिंग कर पाया और क्या थी यह योजना ।

रांची में अंडरग्राउंड केबलिंग  योजना

झारखंड में बिजली आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए अंडरग्राउंड केबलिंग परियोजना शुरू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था कि मौसम की मार (जैसे आंधी-तूफान, बारिश) या सार्वजनिक आयोजनों (जैसे जुलूस, शोभायात्रा) के दौरान बिजली कटौती से बचा जा सके। इस परियोजना के लिए झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (JBVNL) ने लगभग 548 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह राशि रांची शहर में बिजली के तारों को जमीन के नीचे शिफ्ट करने और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में लगाई गई है।
फंड और परियोजना का विवरण
खर्च: इस परियोजना पर कुल 548 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। यह राशि बिजली के तारों को अंडरग्राउंड करने, नए सबस्टेशनों को जोड़ने और तकनीकी उन्नयन के लिए उपयोग की गई।
उद्देश्य: अंडरग्राउंड केबलिंग से यह उम्मीद थी कि बिजली आपूर्ति निर्बाध होगी, खासकर मौसम की अनियमितताओं और बड़े आयोजनों के दौरान, जब ओवरहेड तारों में खराबी की संभावना बढ़ जाती है।
काम की प्रगति— रांची के कई हिस्सों में यह काम पूरा हो चुका है, लेकिन पूरे शहर को कवर करने में अभी भी समय लगेगा। कुछ इलाकों में अभी भी ओवरहेड तारों का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके कारण पूरी तरह से निर्बाध बिजली आपूर्ति का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया है।
वर्तमान स्थिति—
परियोजना को लागू करने में काफी प्रगति हुई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता   बावजूद इसके रांची में बिजली कटौती की समस्या बनी हुई है। उदाहरण के तौर पर:
सरहुल त्योहार–  हाल ही में सरहुल के दौरान रांची में 10-12 घंटे तक बिजली कटौती हुई। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रामनवमी में चार से पांच घंटे बिजली काटी गई । जाहिर है  यह  इस बात का संकेत है कि अंडरग्राउंड केबलिंग का पूरा लाभ अभी तक नहीं मिल पा रहा है।

योजना का हश्र: विस्तृत विश्लेषण
प्रारंभिक उम्मीदें:
योजना शुरू होने के समय दावा किया गया था कि अंडरग्राउंड केबलिंग से बिजली के तारों को मौसम की मार और बाहरी हस्तक्षेप से बचाया जा सकेगा।
रांची के प्रमुख इलाकों में तारों को जमीन के नीचे शिफ्ट करने का काम शुरू हुआ, और इसे चरणबद्ध तरीके से पूरा करने की योजना थी।
वर्तमान स्थिति:
कई इलाकों में काम पूरा होने के बावजूद बिजली कटौती की समस्या जस की तस बनी हुई है। उदाहरण के लिए, हाल ही में सरहुल त्योहार के दौरान रांची में 10-12 घंटे तक बिजली गुल होना।

समस्याएँ और कमियाँ:
तकनीकी खामियाँ: अंडरग्राउंड केबलिंग के बावजूद रखरखाव और त्वरित मरम्मत में देरी के कारण बिजली आपूर्ति बाधित होती है।
प्रबंधन की कमी: JBVNL पर आरोप लगते हैं कि परियोजना के बाद भी उचित निगरानी और समन्वय का अभाव है।
अधूरा कार्य: पूरे शहर को कवर करने का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ, जिससे ओवरहेड तारों वाले इलाकों में पुरानी समस्याएँ बरकरार हैं।

जाहिर है की रांची में अंडरग्राउंड केबलिंग परियोजना एक महत्वाकांक्षी कदम है, जिसके लिए 548 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। यह परियोजना आंशिक रूप से सफल रही है, लेकिन अभी भी कई इलाकों में काम बाकी है और बिजली कटौती की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। JBVNL और संबंधित अधिकारी इस दिशा में काम कर रहे हैं, लेकिन “जीरो पावर कट” का सपना कब तक पूरा होगा, यह कहना काफी मुश्किल है। आने वाले समय में इस परियोजना के प्रभाव को और बेहतर ढंग से आंका जा सकेगा, खासकर बड़े त्योहारों और मौसमी बदलावों के दौरान।

योजना का समय पर पूरा न होना दुर्भाग्यपूर्ण—यह सिर्फ अंडरग्राउंड केबलिंग की ही बात नहीं है। बल्कि राज्य में अधिकांश योजनाएं समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं।इससे न केवल सरकार के खजाने को भारी नुकसान पहुंचता है बल्कि योजना का लाभ मिलने में भी राज्य के   लोगों को वर्षों इंतजार करना पड़ता है।

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