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साहिबगंज के भोगनाडीह में हूल दिवस पर आदिवासी अस्मिता के सवाल पर पुलिस और आदिवासियों में हिंसक झड़प , आंसू गैस और लाठी चार्ज फिलहाल स्थिति तनावपूर्ण

साहिबगंज के भोगनाडीह में हूल दिवस पर आदिवासी अस्मिता के सवाल पर पुलिस और आदिवासियों में हिंसक झड़प , आंसू गैस और लाठी चार्ज फिलहाल स्थिति तनावपूर्ण

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भोगनाडीह, साहिबगंज, 30 जून: झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में हूल दिवस के आयोजन को चला आ रहा विवाद  हिंसक रूप ले चुका है। आज आदिवासियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गयी इस झड़प को शांत करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज  करनी पड़ी । इतने में जब मामला शांत नही हुआ तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े । दूसरी तरफ आदिवासी भी तीर -धनुष  का इस्तेमाल किया । अब हूल दिवस के मोके पर  पुलिस की लाठीचार्ज, आंसू गैस के इस्तेमाल और कई लोगों की हिरासत ने इस घटना को और गंभीर बना दिया। फिलहाल गांव में स्थिति तनावपूर्ण है।

विवाद की शुरुआत: प्रशासन का रवैया

इस साल हूल दिवस के आयोजन को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब साहिबगंज जिला प्रशासन ने सिद्धो-कान्हू पार्क में मंडल मुर्मू के संगठन को कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। मंडल मुर्मू, जो सिद्धो और कान्हू मुर्मू के वंशज हैं, ने इस पाबंदी को आदिवासी समुदाय की अस्मिता पर हमला बताते हुए प्रशासन और राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की।

ग्रामीणों और आयोजकों का आरोप है कि प्रशासन ने रात में, यानी 29 जून की देर रात, कार्यक्रम के लिए बनाए गए पंडाल को जबरन खोल दिया। इस कदम को स्थानीय लोगों ने अपने सांस्कृतिक अधिकारों पर हमला माना और इसका तीव्र विरोध शुरू कर दिया। आयोजकों का कहना है कि प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना या संवाद के यह कार्रवाई की, जिससे समुदाय में आक्रोश फैल गया।

हिंसक झड़प: तीर-धनुष और आंसू गैस

29 जून की रात को प्रशासन के इस कदम के बाद भोगनाडीह में स्थिति तनावपूर्ण हो गई। स्थानीय ग्रामीणों ने पंडाल को फिर से स्थापित करने की कोशिश की, जिसके जवाब में पुलिस बल ने हस्तक्षेप किया। इस दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने पारंपरिक हथियार तीर-धनुष, का इस्तेमाल किया, जिसने स्थिति को और गंभीर बना दिया। पुलिस ने जवाब में लाठीचार्ज किया और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।

इस हिंसक टकराव में मंडल मुर्मू समेत कई आयोजकों और स्थानीय लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने बिना उचित कारण के  कार्रवाई की और कई निर्दोष लोगों को भी हिरासत में लिया। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में तनाव की स्थिति पैदा कर दी, और स्थानीय लोग सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार दिख रहे हैं।

हूल दिवस: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

हूल दिवस, जो हर साल 30 जून को मनाया जाता है, संताल आदिवासियों के 1855-56 के ऐतिहासिक विद्रोह की याद में आयोजित किया जाता है। यह विद्रोह सिद्धो और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन और स्थानीय जमींदारों के खिलाफ शुरू हुआ था। इस विद्रोह ने न केवल आदिवासी समुदाय की एकता और साहस को दर्शाया, बल्कि उनकी सामाजिक और आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज को भी बुलंद किया। भोगनाडीह, साहिबगंज जिला, इस विद्रोह का केंद्र रहा है और इसे संताल समुदाय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक माना जाता है।

हर साल, भोगनाडीह में सिद्धो-कान्हू के वंशज और स्थानीय आदिवासी समुदाय इस दिन को उनके बलिदान और संघर्ष को याद करने के लिए एकत्र होते हैं। सिद्धो-कान्हू पार्क में आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और उनके अधिकारों की रक्षा का प्रतीक भी है।

 

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