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रांची विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का घिनौना खेल ! अबुआ अधिकार मंच ने कुलपति प्रो. अजीत कुमार सिन्हा पर लगाए गंभीर आरोप, SIT जांच की मांग , राज्यपाल को लिखा खत 

रांची विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का घिनौना खेल ! अबुआ अधिकार मंच ने कुलपति प्रो. अजीत कुमार सिन्हा पर लगाए गंभीर आरोप, SIT जांच की मांग , राज्यपाल को लिखा खत 
रांची, : अबुआ अधिकार मंच ने रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजीत कुमार सिन्हा के कार्यकाल को भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और शैक्षणिक गरिमा के साथ खिलवाड़ का पर्याय बताते हुए राज्य के महामहिम संतोष कुमार गंगवार को खत लिखा है। मंच ने खत में कुलपति पर वित्तीय गड़बड़ियों, नियुक्तियों में पक्षपात, परीक्षा विभाग के निजीकरण में घोटाले, और प्रशासनिक शक्तियों के दुरुपयोग जैसे संगीन आरोप लगाए हैं। इन गंभीर मामलों की निष्पक्ष जांच के लिए मंच ने रिटायर्ड न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जांच दल (SIT) गठित करने की मांग की है, ताकि विश्वविद्यालय को भ्रष्टाचार के इस दलदल से मुक्त किया जा सके।

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    अबुआ अधिकार मंच का राज्यपाल को लिखा गया खत
विवादास्पद नियुक्ति:
कुलपति की योग्यता पर सवाल
अबुआ अधिकार मंच ने प्रो. सिन्हा की कुलपति पद पर नियुक्ति को ही अवैध ठहराया है। झारखंड उच्च न्यायालय में दायर याचिका (W.P. (S) 5640/2023) में स्पष्ट है कि प्रो. सिन्हा कुलपति पद की शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं करते। मंच का कहना है कि ऐसी नियुक्ति विश्वविद्यालय की साख को दांव पर लगाने वाली है और यह शैक्षणिक ढांचे पर गहरा आघात है।
परीक्षा विभाग का निजीकरण: भ्रष्टाचार का अड्डा
मंच ने दिसंबर 2022 में परीक्षा विभाग को निजी कंपनी एनसीसीएफ को सौंपने के फैसले को घोटाले का सबसे बड़ा सबूत बताया है। यह कंपनी कथित तौर पर कुलपति के नजदीकी रिश्तेदार द्वारा संचालित है, जो पहले जेपीएससी घोटाले में जेल जा चुका है। इस निजीकरण के बाद परीक्षा शुल्क को 400 रुपये से बढ़ाकर 650 रुपये कर दिया गया, जबकि अन्य विश्वविद्यालयों में एनसीसीएफ 180-218 रुपये प्रति छात्र की दर से काम करती है। मंच ने इसे छात्रों का आर्थिक शोषण और विश्वविद्यालय की आय में 2 करोड़ के अधिशेष से 12-15 करोड़ के घाटे में तब्दील होने का सबूत बताया।
एनसीसीएफ की अक्षमता भी उजागर हुई है। कई छात्रों, जैसे डोरंडा कॉलेज की नंदनी कुमारी, रूपेश कुमार मंडल, और इंद्रमणि, को परीक्षा में उपस्थित होने के बावजूद अनुपस्थित दिखाया गया। अटेंडेंस शीट में उपस्थिति साबित होने के बाद भी गलत तरीके से छात्रों को प्रमोट किया गया, जो कंपनी की लापरवाही और भ्रष्टाचार को दर्शाता है।
नियुक्तियों में पक्षपात: योग्यता की अनदेखी
मंच ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों, जैसे राजनीतिक विज्ञान और मास कम्युनिकेशन, में अयोग्य व्यक्तियों को विभागाध्यक्ष बनाया गया, जबकि वरिष्ठ और योग्य शिक्षकों की अनदेखी की गई। यह विश्वविद्यालय के अनुशासन और शैक्षणिक मानकों का खुला उल्लंघन है।
GeM के जरिए वित्तीय लूट: उपकरण खरीद में घोटाला
अबुआ अधिकार मंच ने GeM पोर्टल के जरिए उपकरण खरीद में भारी अनियमितताओं का खुलासा किया है। बाजार मूल्य 1.5 लाख रुपये के उपकरण को 3.85 लाख में खरीदा गया। पुराने, खराब स्मार्ट बोर्डों को नए के रूप में विभागों में भेजा गया, जो तकनीकी रूप से बेकार हैं। कई विभागों ने इन उपकरणों की मांग तक नहीं की थी, फिर भी बिना जरूरत के खरीद कर फंड का दुरुपयोग किया गया।
टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार: मनमानी का बोलबाला
मंच ने टेंडर प्रक्रिया को भ्रष्टाचार का अड्डा करार दिया। कार्यों को पहले करवाकर बाद में औपचारिकताएं पूरी करना, बड़े टेंडरों को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटना, और बिना टेंडर के मनचाही एजेंसियों को काम सौंपना विश्वविद्यालय में पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। गार्ड भर्ती में भी टेंडर प्रक्रिया से पहले ही नियुक्तियां कर दी गईं, और बाद में उसी एजेंसी को अनुबंध दे दिया गया।
75 करोड़ के फंड का दुरुपयोग: विश्वविद्यालय की स्थिरता खतरे में
मंच ने विश्वविद्यालय के 75 करोड़ रुपये के फिक्स्ड डिपॉजिट फंड को तोड़कर निर्माण कार्यों में खर्च करने को वित्तीय अनुशासन का सबसे बड़ा उल्लंघन बताया। यह फंड पूर्व कुलपति ए.ए. खान के समय से दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सुरक्षित था, लेकिन बिना सिंडिकेट की अनुमति या पारदर्शी प्रक्रिया के इसका दुरुपयोग किया गया।
साइंस डिपार्टमेंट में घोटाला: कबाड़ में तब्दील उपयोगी उपकरण
मंच ने साइंस डिपार्टमेंट्स में उपयोगी उपकरणों को कबाड़ घोषित कर थर्ड ग्रेड मशीनें आपूर्ति करने को सुनियोजित घोटाला करार दिया। यह शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ समझौता है और केवल निजी लाभ के लिए किया गया कृत्य है।
संगठित सिंडिकेट का खेल: छात्र नेताओं के परिजनों को लाभ
अबुआ अधिकार मंच ने कुलपति पर संगठित सिंडिकेट चलाने का आरोप लगाया। छात्र नेताओं के परिजनों को नौकरी देना, छात्र संगठनों से जुड़े लोगों को ठेके सौंपना, और अघोषित संपत्ति अर्जन जैसे मामले विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और नैतिकता को तार-तार कर रहे हैं।
मंच की मांग: SIT जांच और कठोर कार्रवाई
अबुआ अधिकार मंच ने मांग की है कि प्रो. अजीत कुमार सिन्हा के कार्यकाल की निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच के लिए रिटायर्ड न्यायाधीश के नेतृत्व में SIT गठित की जाए। मंच का कहना है कि यह जांच न केवल कुलपति की नियुक्ति, वित्तीय गड़बड़ियों, और भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करेगी, बल्कि विश्वविद्यालय को भ्रष्टाचार मुक्त और शैक्षणिक रूप से सक्षम बनाने में भी मदद करेगी।
 विश्वविद्यालय को बचाने की पुकार
अबुआ अधिकार मंच ने राज्यपाल से गुहार लगाई है कि है  इन गंभीर अनियमितताओं पर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो रांची विश्वविद्यालय की शैक्षणिक साख और छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। मंच ने राज्यपाल से आग्रह किया है की  वे इस भ्रष्टाचार के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए तुरंत कदम उठाएं और विश्वविद्यालय को उसके गौरवशाली अतीत में वापस लाएं।
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