छठ महापर्व पर बांस के सूप-दऊरा की बढ़ी मांग, कोडरमा के असनाबाद में तूरी समाज जुटा उत्पादन में
कोडरमा : लोक आस्था का महापर्व छठ आज नहाए-खाए के साथ शुरू हो गया है। चार दिनों तक चलने वाले इस सूर्य उपासना पर्व को लेकर पूरे झारखंड सहित कोडरमा जिले में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। सूर्य देव को अर्ध्य देने में इस्तेमाल होने वाले बांस के सूप और दउरा की मांग इन दिनों चरम पर है। बाजारों में खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है और दुकानों पर इन पारंपरिक सामग्रियों की खूब बिक्री हो रही है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इसी बीच कोडरमा के झुमरी तिलैया स्थित असनाबाद वार्ड नंबर 7 में तूरी समाज के लोग पिछले दो महीने से दिन-रात बांस के सूप और दउरा बनाने में जुटे हुए हैं। यहां करीब 40 तूरी परिवार निवास करते हैं, जिनमें से 30 परिवार आज भी अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं। घर की महिलाएं बांस से सूप और दउरा तैयार करती हैं, जबकि पुरुष सदस्य उन्हें बाजारों में बेचने का कार्य संभालते हैं।
भले ही आज बाजारों में प्लास्टिक, तांबे, पीतल, कांसे और चांदी के सूप आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन लोगों के बीच बांस से बने सूप और दउरा की शुद्धता और पारंपरिक महक की कोई तुलना नहीं है। यही कारण है कि छठ जैसे पर्व पर लोग आज भी बांस के बने सूप-दउरा को ही प्राथमिकता देते हैं।
हालांकि, तूरी समाज के इन परिवारों के लिए यह काम अब पहले जैसा लाभदायक नहीं रह गया है। पहले जहां बांस जंगलों से आसानी से मिल जाता था, अब इन्हें महंगे दामों पर बांस खरीदकर लाना पड़ता है। इसके साथ ही बाजार में मिलने वाले अन्य विकल्पों ने इनके व्यवसाय को प्रभावित किया है।
सूप-दउरा तैयार करने वाली महिलाएं बताती हैं कि वे सालों से यह काम कर रही हैं। छठ पर्व और शादी-विवाह के मौसम में इनके उत्पादों की मांग बढ़ जाती है, लेकिन बाकी दिनों में आमदनी बहुत कम होती है। उनका कहना है कि अगर सरकार की ओर से कुछ मदद मिले—जैसे कि कुटीर उद्योग के रूप में मान्यता, ऋण सुविधा या विपणन सहयोग—तो यह व्यवसाय सालभर चल सकेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।
वार्ड नंबर 7 के निवर्तमान वार्ड पार्षद घनश्याम तूरी ने भी इस मांग का समर्थन करते हुए कहा कि, “तूरी समाज के लोग अपने पुश्तैनी व्यवसाय को कुटीर उद्योग के रूप में जीवित रखे हुए हैं। अगर सरकार से थोड़ी भी मदद मिले तो इनकी जिंदगी बदल सकती है।”
छठ पर्व के अवसर पर जहां आस्था और भक्ति का माहौल है, वहीं असनाबाद के तूरी परिवारों के लिए यह समय परंपरा को जीवित रखने और अपनी आजीविका चलाने का प्रतीक बन गया है।









