रामनवमी विशेष : झारखण्ड में रांची, हजारीबाग में कब शुरू हुआ शोभा यात्रा, रामनवमी पर हनुमान जी की पूजा क्यों की जाती है
रामनवमी झारखंड में एक प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे यहाँ के लोग बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। यह पर्व भगवान राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में पड़ता है। झारखंड में रामनवमी की अपनी विशेष पहचान है, खासकर यहाँ की परंपराओं और उत्सव के अनूठे तरीके के कारण। यह हर घर में रामनवमी के मौके पर हनुमान जी का पताका लगाया जाता है । कोई अपने आँगन में तो कोई छत पर जिसे जहाँ जगह मिल जाता है हनुमान जी का झंडा लगाता है
झारखंड में रामनवमी की खासियत:
जुलूस और अखाड़े: झारखंड, विशेष रूप से हजारीबाग, रांची और जमशेदपुर जैसे शहरों में, रामनवमी के अवसर पर भव्य जुलूस निकाले जाते हैं। इन जुलूसों में अखाड़ों की भागीदारी होती है, जहाँ लोग पारंपरिक हथियारों (जैसे तलवार, भाला) के साथ करतब दिखाते हैं। हजारीबाग में यह परंपरा 100 साल से भी अधिक पुरानी मानी जाती है, जिसकी शुरुआत 1918 में गुरु सहाय ठाकुर ने की थी। यहाँ करीब 150 अखाड़े जुलूस में शामिल होते हैं।
मंगला जुलूस: रामनवमी से पहले “मंगला जुलूस” निकाला जाता है, जो उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। यह परंपरा झारखंड के कई हिस्सों में देखी जाती है और इसे लेकर लोगों में खासा उत्साह रहता है।
धार्मिक आयोजन: मंदिरों में रामायण का पाठ, भजन-कीर्तन और रामचरितमानस के आयोजन होते हैं। रांची के तपोवन मंदिर जैसे स्थान इस दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जहाँ अयोध्या शैली में भगवान राम का श्रृंगार किया जाता है।
सांस्कृतिक मेलजोल: झारखंड में रामनवमी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। यहाँ के आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय मिलकर इसे मनाते हैं, हालाँकि तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
झारखंड में रामनवमी का महत्व:
ऐतिहासिक परंपरा: रांची में रामनवमी जुलूस की शुरुआत 1929 से मानी जाती है, जब पहला जुलूस अपर बाजार महावीर मंदिर से तपोवन मंदिर तक निकाला गया था। तब से यह सिलसिला जारी है।
आध्यात्मिकता: भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है, और लोग उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं।
सामुदायिक भावना: यह पर्व लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
झारखंड में रामनवमी की कुछ और खास बातें:
अखाड़ों का प्रदर्शन: झारखंड में रामनवमी के दौरान अखाड़ों का प्रदर्शन एक अनूठी परंपरा है। ये अखाड़े न केवल शारीरिक बल और कौशल का प्रदर्शन करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि कैसे भगवान राम के योद्धा स्वरूप को यहाँ सम्मान दिया जाता है। हजारीबाग में ये अखाड़े “शस्त्र पूजा” करते हैं और तलवारबाजी के करतब दिखाते हैं, जो देखने में रोमांचक होता है।
रामनवमी मेला: कई जगहों पर, जैसे रांची और धनबाद में, इस दिन छोटे – छोटे मेले लगते हैं। इन मेलों में बच्चों के लिए झूले, खाने-पीने की दुकानें और रामायण पर आधारित नाटक (रामलीला) का आयोजन होता है। यहाँ का माहौल उत्सवी और पारिवारिक होता है।
आदिवासी प्रभाव: झारखंड में आदिवासी समुदाय भी इस पर्व को अपने तरीके से मनाते हैं। कुछ जगहों पर वे इसे प्रकृति पूजा के साथ जोड़ते हैं और अपने पारंपरिक नृत्य व संगीत के जरिए राम के जीवन को याद करते हैं। यह सांस्कृतिक मिश्रण झारखंड की रामनवमी को और खास बनाता है।
प्रसिद्ध मंदिर: रांची का पहाड़ी मंदिर और तपोवन मंदिर, हजारीबाग का माँ छिन्नमस्तिका मंदिर (जहाँ रामनवमी पर विशेष पूजा होती है), और देवघर के मंदिर इस दिन श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं। यहाँ भक्त सुबह से ही लाइन में लगकर दर्शन करते हैं।
रामनवमी की विशेषताएँ और पौराणिक कथा :
धार्मिक आयोजन: इस दिन मंदिरों में भगवान राम की पूजा की जाती है। रामायण या रामचरितमानस का पाठ होता है। भक्त राममय हो जाते है
राम जन्म कथा: भक्त सुबह से ही राम जन्म की कथा सुनते हैं। ऐसा माना जाता है कि राम का जन्म दोपहर (मध्याह्न) में हुआ था, इसलिए उस समय विशेष पूजा और आरती होती है।
व्रत और भक्ति: कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं। कुछ केवल फलाहार करते हैं, तो कुछ निर्जला व्रत रखते हैं। यह भक्ति और आत्म-शुद्धि का प्रतीक है।
शोभायात्रा: रामनवमी के दिन भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं, जिसमें राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की झाँकियाँ सजाई जाती हैं।
अयोध्या का महत्व: अयोध्या, राम की जन्मभूमि होने के कारण, इस दिन विशेष रूप से जीवंत हो उठती है। वहाँ लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और सरयू नदी में स्नान करते हैं।
पौराणिक कथा :
राम के जन्म से जुड़ी एक रोचक बात यह है कि जब दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया, तो अग्नि से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुआ और उसने दशरथ को खीर से भरा एक कटोरा दिया। यह खीर तीनों रानियों—कौसल्या, कैकेयी और सुमित्रा—में बाँटी गई, जिसके फलस्वरूप चार पुत्रों का जन्म हुआ। लेकिन राम का जन्म विशेष था, क्योंकि वह स्वयं विष्णु के अवतार थे, जो रावण के अत्याचारों का अंत करने आए थे।
रामनवमी में हनुमान जी की पूजा क्यों होती है ?
रामनवमी हिंदू धर्म में भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को होती है। इस दिन भगवान राम की पूजा-अर्चना मुख्य रूप से की जाती है, लेकिन हनुमान जी की पूजा भी विशेष रूप से प्रचलित है। इसके पीछे धार्मिक और पौराणिक कारण हैं।
हनुमान जी को भगवान राम का परम भक्त और सबसे बड़ा सेवक माना जाता है। रामायण के अनुसार, हनुमान जी ने भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समर्पण दिखाया, विशेष रूप से सीता माता की खोज और लंका में रावण से युद्ध के दौरान। उनकी निस्वार्थ सेवा और शक्ति के कारण वे भक्तों के बीच अत्यंत पूजनीय हैं।
रामनवमी के दिन हनुमान जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान राम की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके सबसे प्रिय भक्त हनुमान जी को प्रसन्न करना आवश्यक है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है, और उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति, साहस और भक्ति की प्रेरणा मिलती है।
इसलिए, रामनवमी पर हनुमान जी की पूजा भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति के सम्मान और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए की जाती है।