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हेमंत सोरेन के दिल्ली दौरे से झारखंड में सियासी अटकलें: क्या JMM छोड़ेगी महागठबंधन, NDA के साथ बनेगी सरकार?

रांची : झारखंड की राजनीति में अचानक आई हलचल ने पूरे राज्य को सांसें थाम ली हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी व झामुमो विधायक कल्पना सोरेन के दिल्ली प्रवास को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है। सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि दोनों ने भाजपा के शीर्ष नेताओं से गुप्त बैठकें की हैं, जिसमें गठबंधन और सत्ता परिवर्तन पर चर्चा हुई। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद यह खबरें झारखंड के सियासी समीकरणों को हिला रही हैं। क्या हेमंत सोरेन NDA के साथ हाथ मिला लेंगे? या यह महज अफवाहें हैं? आइए, जानते हैं इस घमासान की पूरी कहानी।

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दिल्ली यात्रा: निजी दौरा या राजनीतिक साजिश?

28 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस समारोह के ठीक बाद हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन दिल्ली रवाना हो गए। आधिकारिक तौर पर इसे ‘निजी कार्य’ बताया गया, लेकिन चार दिनों से ज्यादा दिल्ली में रहने पर सियासी गलियारों में सवाल उठने लगे। ईडी के समन और जमीन घोटाले की सुनवाई के बीच यह यात्रा संयोग तो नहीं लगती। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों ने भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से मुलाकात की, जिसमें JMM को NDA में शामिल करने की संभावना पर बात हुई। एक रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया कि यह मुलाकात ‘औपचारिक नहीं, बल्कि प्रारंभिक सहमति’ वाली थी।

बिहार हार का असर: महागठबंधन में दरार?

बिहार चुनाव में JMM को महागठबंधन से सीटें न मिलने पर हेमंत सोरेन ने खुली नाराजगी जताई थी। पार्टी ने राजद और कांग्रेस पर ‘अपमान’ का आरोप लगाया था। जेएमएम नेताओं द्वारा झारखंड में भी गठबंधन की समीक्षा की बात कही गई थी। हालांकि भाजपा ने इन खबरों पर चुप्पी साध रखी है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने इन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया है। JMM के आधिकारिक अकाउंट से भी संदेश आया, “झारखंड झुकेगा नहीं।” वहीं, कल्पना सोरेन ने हाल ही में एक पोस्ट में कहा, “जिस इंसान ने जेल जाते समय फैसला नहीं बदला, वो सत्ता सुख के लिए पीठ नहीं दिखाएगा।”

वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के रांची लौटने के बाद गठबंधन विधायकों की बैठक होनी है, जिसमें शीतकालीन सत्र की रणनीति बनेगी। विपक्ष हमलों का मुकाबला करने की तैयारी की जाएगी। लेकिन सवाल वही है, क्या यह यात्रा महज निजी थी, या झारखंड की सत्ता का नया अध्याय लिखने वाली?

विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक संकट ने JMM को मजबूर किया है। मइयां योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपये मासिक देने और धान का समर्थन मूल्य 3200 रुपये करने के वादों को पूरा करने के लिए केंद्र से फंडिंग जरूरी है। राज्य सरकार पर 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर भाजपा और जेएमएम एक साथ आते हैं तो यह भारतीय राजनीति का सबसे अप्रत्याशित कदम होगा।

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