जमशेदपुर: जुबिली पार्क में झाल मुढ़ी विक्रेताओं की पुकार, कौन सुनेगा इन गरीबो की आवाज ,जुस्को की कार्रवाई पर मचा बवाल

जमशेदपुर: जुबिली पार्क में झाल मुढ़ी विक्रेताओं की पुकार, कौन सुनेगा इन गरीबो की आवाज ,जुस्को की कार्रवाई पर मचा बवाल
जमशेदपुर, 23 सितंबर : जमशेदपुर का जुबिली पार्क, जो शहरवासियों के लिए सुकून और हरियाली का प्रतीक है, इन दिनों एक अलग ही वजह से चर्चा में है। टाटा स्टील की अनुषंगी इकाई जुस्को ने पार्क में झाल मुढ़ी बेचने वाले गरीब विक्रेताओं के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। इन मेहनतकश लोगों के लिए यह पार्क सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि उनके परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र सहारा है। लेकिन अब उनकी यह छोटी-सी दुनिया छिनती नजर आ रही है।

गरीब विक्रेताओं की बेबस आवाज
सुबह से शाम तक, धूप हो या छांव, ये झाल मुढ़ी विक्रेता अपनी ठेलियों के साथ जुबिली पार्क में घूमते हैं। उनके चेहरों पर मेहनत की थकान और उम्मीद का मिश्रण साफ दिखता है। ये लोग दिनभर मेहनत कर कुछ सौ रुपये कमा लेते हैं, जिससे उनके बच्चों का पेट भरता है, स्कूल की फीस चुकती है और घर का चूल्हा जलता है। लेकिन जुस्को की ताजा कार्रवाई ने इनके सपनों पर काला बादल मंडराने लगा है।

जुस्को के कर्मचारी, जिन्हें स्थानीय लोग “गुंडे” कहकर पुकार रहे हैं, इन विक्रेताओं को पार्क से खदेड़ रहे हैं। उनके ठेले हटाए जा रहे हैं, सामान जब्त किया जा रहा है, और उनकी रोजी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है। एक विक्रेता रामू (बदला हुआ नाम) की आंखों में आंसू छलक आए जब उन्होंने बताया, “साहब, हम क्या चोरी करते हैं? बस दो वक्त की रोटी कमाने के लिए मेहनत करते हैं। पार्क में लोग हमारे झाल मुढ़ी खाना पसंद करते हैं, फिर हमें क्यों भगाया जा रहा है?”

जुस्को का तर्क और स्थानीय लोगों का गुस्सा
लोगो की माने तो जुस्को का कहना है कि यह अभियान पार्क की स्वच्छता और व्यवस्था बनाए रखने के लिए चलाया जा रहा है। उनके अनुसार, ठेले और अनधिकृत विक्रेता पार्क की सुंदरता को नुकसान पहुंचाते हैं और कचरा फैलाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या स्वच्छता का यह अभियान गरीबों की रोजी-रोटी छीनने की कीमत पर होना चाहिए? क्या इन मेहनतकश लोगों को वैकल्पिक व्यवस्था देने की बजाय उन्हें बेघर और बेरोजगार करना उचित है?

स्थानीय लोग इस कार्रवाई से नाराज हैं। पार्क में नियमित रूप से आने वाले एक बुजुर्ग रमेश सिंह ने कहा, “झाल मुढ़ी तो जमशेदपुर की शान है। बचपन से हम यही खाते आए हैं। ये लोग तो हमारे अपने हैं, इन्हें भगाना कहां का इंसाफ है?” उनकी बात में शहर की उस संस्कृति की झलक है, जहां झाल मुढ़ी सिर्फ एक नाश्ता नहीं, बल्कि शहर की पहचान और लोगों के दिलों से जुड़ा एक भावनात्मक रिश्ता है।
भाजपा का विरोध
इस मुद्दे ने अब सियासी रंग भी ले लिया है। जमशेदपुर महानगर भाजपा ने जुस्को की इस कार्रवाई पर कड़ा विरोध जताया है। मंगलवार को जिला अध्यक्ष सुधांशु ओझा और युवा नेता नीरज सिंह ने जुबिली पार्क में प्रतीकात्मक रूप से झाल मुढ़ी बेचकर जुस्को को खुली चुनौती दी। यह दृश्य न सिर्फ भावुक था, बल्कि एक सशक्त संदेश भी दे गया। सुधांशु ओझा ने गुस्से में कहा, “ये लोग गरीबों का पेट नहीं काट सकते। जुस्को और टाटा स्टील को लगता है कि वे जो चाहें कर सकते हैं, लेकिन हम इन मेहनतकश लोगों के साथ खड़े हैं।”
नीरज सिंह ने भी अपनी बात रखते हुए कहा, “अगर जुस्को ने इन विक्रेताओं को फिर से परेशान किया, तो हम सड़कों पर उतरेंगे। जिला प्रशासन की चुप्पी भी शर्मनाक है। क्या गरीबों की कोई सुनवाई नहीं?” उनके इस कदम ने न केवल विक्रेताओं के बीच उम्मीद जगाई, बल्कि शहर में एक बड़े आंदोलन की नींव भी रख दी।
सबसे दुखद पहलू यह है कि जिला प्रशासन इस मामले में पूरी तरह चुप है। न तो विक्रेताओं की फरियाद सुनी जा रही है, न ही कोई वैकल्पिक समाधान सुझाया जा रहा है। इन गरीब लोगों की पुकार अनसुनी हो रही है, और प्रशासन की उदासीनता ने उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। क्या यह वही जमशेदपुर है, जो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और औद्योगिक प्रगति के लिए जाना जाता है?
अब सबकी नजरें जुस्को और जिला प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं। क्या जुस्को अपनी कार्रवाई को और सख्त करेगा, या इन गरीब विक्रेताओं के लिए कोई रास्ता निकालेगा? क्या प्रशासन अपनी चुप्पी तोड़कर इन मेहनतकश लोगों की मदद के लिए आगे आएगा? अब देखना यह है कि इस कहानी का अंत क्या होगा – क्या ये विक्रेता अपनी छोटी-सी दुनिया बचा पाएंगे, या फिर स्वच्छता के नाम पर उनकी उम्मीदें कुचल दी जाएंगी?
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