झारखंड विधानसभा में गूंजा प्राइवेट स्कूलों में री एडमिशन का मामला , जानिए क्या है स्कूल फीस विनियमन कानून
झारखंड विधानसभा में गूंजा प्राइवेट स्कूलों में री एडमिशन का मामला , जानिए क्या है स्कूल फीस विनियमन कानून
झारखंड विधानसभा में आज प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन और री-एडमिशन के नाम पर फीस वृद्धि का मुद्दा गर्माया। झरिया से भाजपा विधायक रागिनी सिंह ने इस मामले को जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूल हर साल री-एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से 20 हजार से 25 हजार रुपये तक वसूलते हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है। रागिनी सिंह ने आरोप लगाया कि स्कूल मनमानी कर रहे हैं और इसके अलावा किताबों व अन्य शैक्षणिक सामग्रियों की खरीद में भी कमीशनखोरी का खेल चल रहा है।
उन्होंने सरकार से इस पर सख्त कार्रवाई की मांग की। जवाब में शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने कहा कि स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए शुल्क समिति का गठन किया गया है, जिसमें अभिभावक और शिक्षक शामिल हैं। साथ ही जिला स्तर पर भी कमेटी बनाई गई है, जो स्कूल प्रबंधन पर 2.5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है।
क्या है फीस विनियमन कानून
स्कूल फीस विनियमन एक ऐसा मुद्दा है जो भारत के कई राज्यों में समय-समय पर चर्चा में रहा है, और झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूली को रोकने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने फीस विनियमन कानून और नीतियां बनाई हैं। झारखंड में भी इस दिशा में कदम उठाए गए हैं,
झारखंड में स्कूल फीस विनियमन की स्थिति:
- शुल्क समिति का गठन: झारखंड सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नजर रखने के लिए शुल्क समिति बनाई है। इसमें अभिभावकों, शिक्षकों और स्कूल प्रबंधन के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य फीस निर्धारण में पारदर्शिता लाना और मनमानी को रोकना है।
- जिला स्तरीय निगरानी: जिला स्तर पर भी कमेटियों का गठन किया गया है, जो शिकायतों की जांच करती हैं। इनके पास स्कूलों पर 2.5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार है।
- कानूनी ढांचा: झारखंड में प्राइवेट स्कूल फीस को नियंत्रित करने के लिए “झारखंड शिक्षा अधिनियम” के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं। हालांकि, इसे और सख्त करने की मांग विधायकों और अभिभावकों द्वारा की जाती रही है।
- री-एडमिशन फीस पर विवाद: रागिनी सिंह ने विधानसभा में बताया कि स्कूल री-एडमिशन के नाम पर 20,हजार से 25,हजार रुपये तक वसूलते हैं, जो नियमों का उल्लंघन हो सकता है। नियमों के अनुसार, स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले शुल्क समिति की मंजूरी लेनी होती है।
देश में फीस विनियमन के उदाहरण:
- तमिलनाडु: तमिलनाडु प्राइवेट स्कूल फीस डिटरमिनेशन एक्ट, 2009 के तहत फीस विनियमन प्रभावी है।
- महाराष्ट्र: महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2011 लागू है।
- दिल्ली: दिल्ली सरकार ने भी निजी स्कूलों की फीस वृद्धि पर कड़े नियम बनाए हैं।
चुनौतियां:
- प्राइवेट स्कूलों का दबाव: स्कूल प्रबंधन अक्सर दावा करते हैं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए फीस बढ़ाना जरूरी है।
- कमजोर लागू करना: कई राज्यों में समितियां प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पातीं।
- अभिभावकों की जागरूकता: नियमों की जानकारी न होने से अभिभावक शिकायत दर्ज करने में हिचकते हैं।