कोर्ट ने मौखिक रूप से पूछा इन पीड़ितों को पुलिसकर्मियो के वेतन (salary of policemen) से काटकर मुआवजा क्यों न दिया जाये : फर्जी प्रीति हत्याकांड
Why should not compensation be given after deducting it from the salary of policemen?
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!आपको यद् होगा वो प्रीति हत्याकांड जिसमे तीन निर्दोष लड़को को पुलिस ने बड़ी सफाई से साबुत बनाकर जेल भेज दिया था लेकिन कुछ ही महीनो बाद प्रीति घर आ गयी थी और बखेड़ा उसी वक्त शुरू हुआ पुलिस की कार्यवाही पर। आज झारखण्ड झारखंड हाईकोर्ट इस केस की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि क्यों न इस प्रकरण में दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से पैसा काटकर पीड़ित युवकों को दिया जाए ? इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय द्विवेदी की अदालत में हुई. राज्य सरकार द्वारा अगली सुनवाई में कोर्ट को बताना है कि अब तक इस मामले में क्या कार्रवाई हुई है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 जून हो होगी.
गौरतलब है की इस मामले में पुलिस ने प्रीति के अपहरण के बाद हत्या कर जलाने का मामला दर्ज किया. पुलिस ने धुर्वा के तीन युवकों को गिरफ्तार भी किया. जिसके नाम अजित कुमार, अमरजीत कुमार व अभिमन्यु उर्फ मोनू हैं. तीनों युवकों को 17 फरवरी 2014 को जेल भेज दिया गया. जिसके बाद 15 मई 2014 को रांची पुलिस ने तीनों के खिलाफ अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या कर के जलाने के मामले में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था. सके बाद पुलिस ने कोर्ट सबूत पेश करते हुए तीनो लड़को को जेल भेज दिया। तीनो के खिलाफ ऐसा साबुत बनाया गया मानो तीनो सचमुच के कातिल हो लेकिन समय का चक्र घुमा और प्रीति जिन्दा घर वापस आ गयी।







