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झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो ने बारबाडोस में 68वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में रखा प्रभावशाली वक्तव्य

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ब्रिजटाउन, बारबाडोस : 68वां राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन, जो 05 से 12 अक्टूबर 2025 तक बारबाडोस के ब्रिजटाउन में आयोजित हो रहा है, में झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो ने वैश्विक मंच पर भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया। सम्मेलन के अंतिम प्लेनरी सत्र की कार्यशाला में, रबींद्रनाथ महतो ने “राष्ट्रीय संसद बनाम प्रांतीय, प्रादेशिक और विकेंद्रीकृत विधान शक्ति के पृथक्करण की रक्षा और संरक्षण” विषय पर विभिन्न देशों के राजनयिकों और संसदीय प्रतिनिधियों के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए।

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रबींद्रनाथ महतो ने अपने वक्तव्य में सत्ता के संतुलन और जवाबदेही पर जोर देते हुए कहा, “सत्ता को हमेशा जवाबदेही और नैतिक व्यवस्था द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। मोंटेस्क्यू के शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को भारत के प्राचीन ग्रंथों में पहले ही प्रतिपादित किया गया था, जो स्थिरता के लिए अधिकारों के विभाजन और सामंजस्य को आवश्यक मानते हैं।” उन्होंने भारत के संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के संघवाद के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि विधायी और कार्यकारी प्राधिकरण का विभाजन केंद्र और राज्यों के बीच संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है, न कि केंद्र के किसी कानून द्वारा। यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के साथ-साथ प्रांतीय स्वायत्तता को भी बढ़ावा देती है, जिससे भारत का लोकतंत्र विविध और समावेशी बना हुआ है।

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उन्होंने राष्ट्रीय संसद और प्रांतीय विधानसभाओं को लोकतंत्र के पूरक स्तंभ बताते हुए कहा, “ये संस्थाएं सर्वोच्चता के लिए प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शासन के प्रत्येक स्तर पर लोगों की आवाज सुनी जाए। लोकतंत्र की वास्तविक ताकत किसी संस्थान की शक्ति की मात्रा में नहीं, बल्कि उसके द्वारा अपनी सीमाओं का सम्मान करने और अतिक्रमण से बचने की जिम्मेदारी में निहित है।”

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रबींद्रनाथ महतो ने झारखंड के संदर्भ में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, एक दूरदराज के गांव के किसान, औद्योगिक शहर के युवा और स्वदेशी समुदायों की आवाज को विधायी प्रक्रिया में स्थान मिलना चाहिए। यह तभी संभव है जब राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाएं एक-दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करें। उन्होंने सम्मेलन के प्रतिनिधियों से संवैधानिक सीमाओं का सम्मान करने और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत की रक्षा करने का आह्वान किया, ताकि स्वतंत्रता और लोकतंत्र की नींव को अगली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित किया जा सके।

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इस सत्र में राज्यसभा के माननीय उपसभापति हरिवंश, झारखंड के विधायक नवीन जयसवाल, और ऑस्ट्रेलिया व कनाडा के संसदीय प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

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