पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ली अंतिम सांस
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर, गोवा, बिहार और मेघालय के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को निधन हो गया। 79 वर्षीय मलिक लंबे समय से किडनी संबंधी बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में दोपहर करीब 1:12 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि उनके निजी सचिव केएस राणा और आधिकारिक एक्स अकाउंट के माध्यम से की गई।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनकी माता जगनी देवी ने उनका पालन-पोषण किया। मलिक ने मेरठ विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और कानून में डिग्री हासिल की थी। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1968-69 में मेरठ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में की और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में भारतीय क्रांति दल से 1974 में बागपत से विधायक चुने गए।
मलिक का राजनीतिक सफर पांच दशकों से अधिक लंबा रहा। वे 1980 से 1989 तक राज्यसभा और 1989 से 1991 तक लोकसभा के सदस्य रहे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, जनता दल और समाजवादी पार्टी जैसे विभिन्न दलों के साथ काम किया। अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
सत्यपाल मलिक अपनी बेबाक टिप्पणियों और जनहित के मुद्दों पर स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने किसान आंदोलन और पुलवामा हमले जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना की थी। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोप भी चर्चा में रहे, जिनमें किरू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से संबंधित सीबीआई जांच शामिल थी।
उनके निधन पर कई राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने उन्हें सादगी और स्पष्टवादिता का प्रतीक बताते हुए श्रद्धांजलि दी, जबकि जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने उनके किसान हितैषी सोच की सराहना की।
सत्यपाल मलिक के परिवार में उनकी पत्नी इकबाल मलिक और बेटा देव कबीर शामिल हैं। उनके निधन से भारतीय राजनीति ने एक निडर और जनसरोकारी नेता को खो दिया है। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा और अंतिम संस्कार उनके पैतृक स्थान पर किया जाएगा।


