झारखंड में मिशन वात्सल्य ठप: भाजपा का हेमंत सरकार पर तीखा प्रहार, कर्मचारियों के 12 माह का वेतन लटका

रांची : भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मिशन वात्सल्य’ झारखंड में पूरी तरह ठप हो चुकी है। राज्य में बाल अधिकारों की रक्षा करने वाले पदाधिकारी और कर्मचारी खुद आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हेमंत सोरेन सरकार पर कड़ा हमला बोला है, आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार पोस्टरबाजी और प्रचार में व्यस्त है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वालों का वेतन 12 महीनों से नहीं दे रही। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार को ‘बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार’ करने का दोषी ठहराया।

मिशन वात्सल्य का उद्देश्य और वर्तमान हालात
मिशन वात्सल्य केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसका मुख्य लक्ष्य बच्चों के संरक्षण, कल्याण और अधिकारों की मजबूत रक्षा सुनिश्चित करना है। यह योजना किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 और पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत संचालित होती है। इसका फोकस प्रत्येक बच्चे को स्वस्थ, सुरक्षित और खुशहाल बचपन प्रदान करने के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप उनकी क्षमता विकास पर है।

लेकिन झारखंड में यह योजना पिछले एक वर्ष से पूरी तरह बंद पड़ी है। अजय साह ने कहा, “राज्य सरकार मिशन से जुड़े सभी पदाधिकारियों और कर्मचारियों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है। जिनके कंधों पर राज्य भर के बच्चों को न्याय और सुरक्षा देने की जिम्मेदारी है, वे खुद आर्थिक न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।” उन्होंने बताया कि राज्य के सभी चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) चेयरमैन व सदस्य, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) सदस्य, कंप्यूटर ऑपरेटर, सोशल वर्कर, आउटरीच वर्कर, अकाउंटेंट और शेल्टर होम स्टाफ को 12 महीनों से एक भी पैसा वेतन के रूप में नहीं मिला है।

कर्मचारियों की दयनीय स्थिति
आर्थिक तंगी से जूझ रहे कर्मचारियों की हालत गंभीर बिंदु पर पहुंच चुकी है। अधिकांश कर्ज के बोझ तले दबे हैं और कईयों के पास इलाज तक के पैसे नहीं बचे। अजय साह ने एक मार्मिक उदाहरण देते हुए कहा, “अकाउंटेंट संतोष कश्यप मानसिक तनाव के कारण अस्पताल में भर्ती हैं। यह स्थिति न केवल कर्मचारियों का अपमान है, बल्कि बाल अधिकारों की रक्षा को भी खतरे में डाल रही है।”

साह ने केंद्र सरकार की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि केंद्र समय पर अपनी हिस्सेदारी की राशि भेजता है, लेकिन राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह विफल साबित हो रही है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “राज्य सरकार के पास बाल अधिकारों के नाम पर पोस्टरबाजी और प्रचार-प्रसार के लिए तो पैसे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन देने के लिए नहीं। यह दिखावा बंद हो और वास्तविक कार्य शुरू हो।”

भाजपा की मांग: तत्काल वेतन भुगतान
भाजपा ने राज्य सरकार से मांग की है कि बाल अधिकारों पर मात्र दिखावा और प्रचार के बजाय लंबित वेतन का तत्काल भुगतान किया जाए। पार्टी ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी। यह मुद्दा राज्य में बाल कल्याण तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है, जहां केंद्र की योजनाएं राज्य की उदासीनता के कारण प्रभावित हो रही हैं।








