सिमडेगा पुलिस केंद्र में सरहुल की धूम: डीसी और एसपी ने बजाया मांदर, प्रकृति संरक्षण का दिया संदेश
सिमडेगा से नरेश
सिमडेगा पुलिस केंद्र में सरहुल पर्व की धूमधाम से मनाया गया। पुलिसकर्मियों द्वारा ड्यूटी के बीच इस त्योहार को तीन दिन पहले मनाना और सरना विधि-विधान के साथ पूजा करना प्रकृति के प्रति पुलिसकर्मियों के प्रेम को दर्शाता है। जाहिर है सरहुल प्रकृति पर्व है जो मुख्य रूप से झारखंड और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है,
इस दौरान डीसी अजय कुमार सिंह और एसपी सौरभ कुमार का मांदर बजाया और लोगों के साथ जमकर झूमे । पुलिसकर्मियों का मांदर और नगाड़े की थाप पर नृत्य और नागपुरी गीतों का माहौल निश्चित रूप से देखने लायक था।
आईये जानते है खबर को विस्तार से

सरहुल पूर्व आयोजन पर झूमते लोग
सरहुल पर्व का आयोजन
सिमडेगा, झारखंड का एक जिला, अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है, और सरहुल यहाँ का एक प्रमुख प्रकृति पर्व है। यह त्योहार वसंत ऋतु में सखुआ (साल) वृक्ष की पूजा के साथ मनाया जाता है, जो आदिवासी समुदायों के लिए प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और संरक्षण का प्रतीक है। सिमडेगा पुलिस केंद्र में इस बार यह पर्व तीन दिन पहले मनाया गया, क्योंकि सरहुल के मूल दिन पुलिसकर्मियों को अपनी ड्यूटी निभानी होती है। इस कारण, पुलिस केंद्र में पहले से ही तैयारियाँ कर ली गईं और इसे धूमधाम से आयोजित किया गया।
पुलिस केंद्र का माहौल पूरी तरह उत्सवी था। परिसर को सरना झंडों से सजाया गया था, जो आदिवासी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं। मंदार और नगाड़ों की थाप पूरे क्षेत्र में गूंज रही थी, जिसने वहाँ मौजूद सभी लोगों को झूमने के लिए प्रेरित किया। यह देखना रोचक रहा कि ड्यूटी के कठोर अनुशासन में रहने वाले पुलिसकर्मी भी इस दिन अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर उत्साह के साथ शामिल हुए।
पूजा और परंपराएँ
सरहुल के इस आयोजन में सरना विधि-विधान के अनुसार पूजा की गई। सरना, आदिवासी समुदाय की पारंपरिक प्रकृति-आधारित आस्था है, जिसमें पेड़-पौधों, नदियों और पहाड़ों को पवित्र माना जाता है। पूजा के बाद पुलिसकर्मियों और अधिकारियों ने एक-दूसरे को सरई फूल (सखुआ के फूल) भेंट किए, जो इस पर्व का एक महत्वपूर्ण रिवाज है। यह फूल न केवल शुभकामनाओं का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान को भी दर्शाता है। सिमडेगा डीएसपी बैजू उरांव सहित कई पुलिसकर्मी और पदाधिकारी मंदार की थाप पर नृत्य करते नजर आए, जिससे यह आयोजन और भी जीवंत हो गया।
डीसी और एसपी की भागीदारी
इस महोत्सव में सिमडेगा के डिप्टी कमिश्नर (डीसी) अजय कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक (एसपी) सौरभ कुमार की मौजूदगी ने इसे और खास बना दिया। दोनों अधिकारियों ने न केवल कार्यक्रम में शिरकत की, बल्कि मांदर बजाकर और नृत्य करके अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई। डीसी और एसपी का मांदर बजाना और उसकी धुन पर झूमना इस बात का प्रमाण है कि वे न सिर्फ प्रशासनिक भूमिका में हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति के प्रति भी गहरी संवेदनशीलता रखते हैं। मंदार की थाप पर पूरा पुलिस लाइन परिसर नागपुरी गीतों के रंग में डूब गया, जिसमें अधिकारी, जवान, कर्मचारी और स्थानीय लोग सभी शामिल थे।
प्रकृति संरक्षण का संदेश
इस अवसर पर डीसी, एसपी और डीडीसी सहित अन्य अधिकारियों ने सरहुल की शुभकामनाएँ देते हुए प्रकृति संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरहुल हमें प्रकृति से जुड़ने और उसका सम्मान करने का संदेश देता है। आदिवासी संस्कृति को प्रकृति का अभिन्न अंग बताते हुए उन्होंने यह भी अपील की कि जंगलों में महुआ चुनने के लिए आग न लगाई जाए।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
यह आयोजन सिर्फ एक उत्सव नहीं था, बल्कि यह पुलिस और स्थानीय समुदाय के बीच एक सेतु की तरह भी काम कर रहा था। पुलिसकर्मी, जो आमतौर पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में व्यस्त रहते हैं, इस दिन अपनी सांस्कृतिक पहचान को जी रहे थे। डीसी और एसपी जैसे वरिष्ठ अधिकारियों का इसमें शामिल होना इस बात का संकेत है कि प्रशासन भी स्थानीय परंपराओं को महत्व देता है। यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का एक शानदार उदाहरण रहा।