पाकिस्तान में सैन्य शासन की ओर कदम? ऑपरेशन सिंदूर के बाद जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की पदवी
पाकिस्तान में सैन्य शासन की ओर कदम? ऑपरेशन सिंदूर के बाद जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल की पदवी
इस्लामाबाद, 21 मई 2025: भारत के हालिया ऑपरेशन सिंदूर में मिली करारी हार के बाद पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति लगातार बिगड़ रही है। इस बीच, मंगलवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार ने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को देश की सर्वोच्च सैन्य पदवी फील्ड मार्शल से नवाजा। यह पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी बार है जब किसी सेना प्रमुख को यह सम्मान दिया गया है। इससे पहले 1959 में जनरल मोहम्मद अयूब खान को यह रैंक मिला था।
ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की हार
भारत ने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया और कई सैन्य ठिकानों को क्षति पहुंचाई। पाकिस्तान के जवाबी हमले, ऑपरेशन बुनयान-अल-मारसूस, को भारत ने नाकाम कर दिया। 10 मई को दोनों देशों के बीच युद्धविराम हुआ, जिसे पाकिस्तानी सेना के अनुरोध का नतीजा माना जा रहा है।
इस हार ने पाकिस्तान की सैन्य और रणनीतिक कमजोरियों को उजागर किया। नूर खान और रफीकी जैसे प्रमुख हवाई अड्डों पर हुए हमलों ने देश में हड़कंप मचा दिया, जिससे जनता का सेना पर भरोसा डगमगाया।
सैन्य-सिविलियन शक्ति संतुलन में बदलाव
जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाए जाने का समय और राजनीतिक संदर्भ इसे अहम बनाता है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम सिविलियन सरकार पर सेना की बढ़ती पकड़ को दर्शाता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सेना ने न केवल रणनीतिक, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अपनी स्थिति मजबूत की है। कई लोग इसे सैन्य शासन की ओर बढ़ते कदम के रूप में देख रहे हैं, जहां सिविलियन सरकार केवल नाममात्र की रह सकती है।
अयूब खान बनाम आसिम मुनीर
1958 में जनरल अयूब खान ने तख्तापलट कर सत्ता हथियाई थी और 1959 में खुद को फील्ड मार्शल घोषित किया। वह 1969 तक राष्ट्रपति रहे। उनकी पदोन्नति को आलोचकों ने “स्व-प्रेरित” करार दिया था। वहीं, जनरल मुनीर की पदोन्नति सिविलियन सरकार द्वारा की गई है, लेकिन इसे सेना के दबाव में लिया गया निर्णय माना जा रहा है। मुनीर अभी भी सेना प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं, जो उन्हें अयूब खान से अलग बनाता है, लेकिन उनकी सत्ता में गहरी पैठ को भी दर्शाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि जनरल मुनीर की यह पदोन्नति सेना के मनोबल को बढ़ाने और जनता के बीच उसकी छवि सुधारने की कोशिश हो सकती है। हालांकि, इससे देश में सैन्य शासन की आशंकाएं भी बढ़ गई हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई और ऑपरेशन सिंदूर की हार ने पाकिस्तान को अस्थिरता की कगार पर ला खड़ा किया है, जिसका फायदा सेना उठा सकती है।
आगे क्या?
पाकिस्तान की सिविलियन सरकार और सेना के बीच बढ़ता असंतुलन देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा बन सकता है। जनरल मुनीर की नई भूमिका और सेना की मजबूत स्थिति को देखते हुए, यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान एक बार फिर सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा है? आने वाले दिन इस सवाल का जवाब दे सकते हैं।





