बाढ़ से बनारस बेहाल
बाढ़ से बनारस जिले के 41 गांव व 17 मुहल्ले घिरे हैं. क्योटो व स्मार्ट सिटी बनने की प्रक्रिया से गुजर रहे इस शहर के 40 हजार से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. तीन हजार लोग राहत शिविरों में शरण लिए हैं. नगवा दलित बस्ती में अस्सी नाले से पानी घुस गया है. इस बस्ती के अनेक लोग लंका थाना के पीछे अपनी खर्च पर टेंट लगाए हैं. उनके सामने खाने की विकट समस्या है. गंगा का जलस्तर 72.00 मीटर पर पहुंच गया है, जबकि बनारस में खतरे का बिंदु 71.26 मीटर है.
पूर्वांचल में गंगा उफान पर है. मिर्जापुर, भदोही, चंदौली, गाजीपुर और बलिया में गंगा का पानी सैकड़ों घरों में घुस गया है.
उत्तराखंड के साथ मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी पानी आने से यमुना और गंगा में दबाव बना हुआ है. इससे काशी का क्योटो पानी-पानी हो गया है.बाढ़ से प्रभावित इलाके की बिजली काट दी गई है. गंगा किनारे घाटों पर हुआ हजारों करोड़ का “विकास” कार्य गंगा में डूब गए है
जब “विकास” किसी शहर में आता है तो इसी तरह तामझाम के साथ गाते-बजाते घुसता है. लोग भी मस्त और नेता भी..! समाजसेवी भी अपनी पीठ थपथपा लेते हैं, लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि बाढ़ आती ही क्यों है ? जब नदियों के बहाव को इंसान रोकेगा, तो स्वाभाविक है कि उन्हें भी गुस्सा आएगा और वह बदला भी लेंगी. यही प्रकृति की लीला और “विकास” के बीच का द्वन्द्व है. इसे समझने की जरूरत है, नहीं तो मरो.
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