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अरबों रुपये का केरोसिन पी रहे माफिया(Mafia), 53 लाख लीटर है मासिक खपत

Ranchi: (Mafia)बीते कुछ सालों में आपने शायद ही किसी ग्रामीण क्षेत्र में ढिबरी जलाकर रोशनी की व्यवस्था करते देखी हो. सरकार जोर-शोर से ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने का दावा करती है. वहीं सोलर लाइट की भी व्यवस्था पर भी खूब जोर दिया जा रहा है. लेकिन इधर जब खाद्य आपूर्ति विभाग के आंकड़ों को देखते हैं, तो पैरों के नीचे से जमीन खिकस जाती है.

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सरकारी आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में हर महीने गरीब राशन कार्डधारियों तक करीब 53 लाख लीटर केरोसिन तेल पहुंच रहा है. लेकिन जमीनी हकीकत ठीक इसके उलट है. नाम नहीं छापने की शर्त पर कई जिलों के डीलरों ने ये बात मानी है कि केरोसिन के नाम पर राज्य में माफिया अरबों का खेल कर दे रहे हैं. सिर्फ कागजी आंकड़ों में ही केरोसिन दिखता है. कोई भी डीलर केरोसिन ना तो डीपो से लाना चाहता है और ना ही कार्डधारी इसे खरीदना चाहते हैं.

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कीमत बना माफिया का हथियार, ऐसे होता है सारा खेल

रघवर दास के कार्यकाल में केरोसिन की कीमत काफी बढ़ा दी गयी. 15-20 रुपए में मिलने वाले तेल की कीमत 45-50 रुपए कर दी गयी. तेल जब सस्ता था तो चावल और गेहूं का उठाव करने वाले एक-दो लीटर तेल खरीद लिया करते थे. लेकिन तेल की कीमत बढ़ने से कार्डधारी अब केरोसिन के बारे में अपने डीलरों से पूछते भी नहीं. वहीं एक लीटर केरोसिन बेचने पर डीलर को सिर्फ एक रुपया कमीशन मिलता है. तेल महंगा होने से केरोसिन डीपो से खरीदने पर डीलरों को काफी नकद वहां देना पड़ता है.

लिहाजा डीलर तेल खरीदते ही नहीं. वो सिर्फ आंकड़ों को मेनटेन करने के एवज में बिना तेल लिए अपना कमीशन ले लेते हैं. वहीं जब कार्डधारी चावल और गेहूं का उठाव करते हैं, तो डीलर पॉश मशीन में केरोसिन का उठाव दर्शा देते हैं. जिससे आंकड़ें मेनटेन रहते हैं. इससे कार्डधारी को कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए वो इसका विरोध भी नहीं करते. इधर तेल बिना डीलर के पास पहुंचे ही डीपो से सीधा बाजार में पहुंच जाता है. जिससे माफिया हर महीने करोड़ों का खेल कर दे रहे हैं.

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चौकाने वाले आंकड़े देखें

झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग की साइट (https://aahar.jharkhand.gov.in/district-monthly-reports) ही सारा सच बयां कर रहा है. आप वहां जाकर देख सकते हैं कि कैसे हर महीने पूरे राज्य में करीब 53-55 लाख लीटर की खपत दिखाया जा रहा है. एक ऐसा जिला जिसके हिस्से ग्रामीण इलाका ज्यादा है उसे उदाहरण की तौर पर लिया जाए तो सारा सच सामने आ जाता है. बात गोड्डा जिला की करते हैं यहां हर महीने करीब 2,17,000 लीटर तेल की खपत दिखाया जाता है. गिरिडीह में 3,80,000 लीटर. गुमला में 1,55,000 लीटर खपत दिखाया जा रहा है. जबकि कार्डधारी तेल का उठाव कर ही नहीं रहे हैं. तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ये तेल जा कहां रहा है.

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