पुलिस हिरासत में मौत ! महेश्वर राणा मामले में गंभीर आरोप और मानवाधिकार उल्लंघन की चर्चा
पुलिस हिरासत में मौत: महेश्वर राणा मामले में गंभीर आरोप और मानवाधिकार उल्लंघन की चर्चा
देवघर से पंकज पांडे की रिपोर्ट
झारखंड के बगदाह पंचायत अंतर्गत बगदाहा आदिवासी टोला में 65 वर्षीय महेश्वर राणा की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत का मामला सामने आया है । मृतक के परिजनों ने पुलिस पर मारपीट का आरोप लगाया है, उनका मानना है की मौत पुलिस की पिटाई से हुई हैं। इस घटना ने स्थानीय समुदाय में आक्रोश पैदा किया है और प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग उठ रही है।
घटना का विवरण
महेश्वर राणा के परिवार के अनुसार, यह मामला उनकी बेटी आलोनी देवी के ससुराल से जुड़ा है। आलोनी की शादी सारठ थाना क्षेत्र के जमुआसोल गांव में साधु राणा के परिवार में हुई थी। हाल ही में, आलोनी के पति के बेटे संतोष राणा ने गांव की एक लड़की के साथ प्रेम विवाह कर भागने का फैसला किया। लड़की के परिजनों ने इसकी शिकायत सारठ थाना में दर्ज कराई और लड़की की बरामदगी की मांग की।
इसी सिलसिले में, 12 अप्रैल 2025 को सुबह करीब 9 बजे, सारठ थाना पुलिस ने खागा थाना पुलिस के सहयोग से महेश्वर राणा को उनके घर से उठाया। परिजनों—पत्नी कमला देवी, बेटा बाबूलाल राणा, बेटियां आलोनी देवी और मंगली देवी—के मुताबिक, पुलिस ने घर की तलाशी ली, लेकिन कोई आपत्तिजनक सामान या सबूत नहीं मिला। फिर भी, पुलिस ने परिवार पर संतोष और लड़की को छिपाने का आरोप लगाया।
परिजनों का कहना है कि पुलिस महेश्वर को अपने साथ ले गई। दोपहर करीब 1 बजे, पुलिस जीप में महेश्वर को वापस घर लाया गया, लेकिन उनकी हालत गंभीर थी। वह खून की उल्टियां कर रहे थे और अत्यंत कमजोर दिख रहे थे। परिवार ने तुरंत उन्हें जामताड़ा सदर अस्पताल पहुंचाया, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
परिजनों के आरोप
महेश्वर राणा की पत्नी कमला देवी ने बताया कि पुलिस ने उनके पति को बिना किसी ठोस आधार के हिरासत में लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि हिरासत के दौरान पुलिस ने महेश्वर के साथ मारपीट की, जिससे उनकी हालत बिगड़ गई। कमला देवी ने कहा, “पुलिस ने मेरे पति को जीप से उतारा और भाग गए। अगर उन्होंने कुछ नहीं किया, तो हमें अस्पताल क्यों नहीं ले गए?”
महेश्वर के बेटे बाबूलाल राणा ने भी पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए। उनके अनुसार, “पिताजी पूरी तरह स्वस्थ थे। पुलिस की पिटाई ने उनकी जान ले ली। हमें इंसाफ चाहिए।” बेटी मंगली देवी और आलोनी देवी ने भी पुलिस की क्रूरता की बात दोहराई और कहा कि उनके पिता को केवल इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उनका दूर का रिश्ता संतोष राणा से था।
परिजनों का यह भी कहना है कि पुलिस ने महेश्वर को हिरासत में लेते समय कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं अपनाई।
स्थानीय समुदाय और नेताओं की प्रतिक्रिया
घटना की खबर फैलते ही बगदाहा आदिवासी टोला और आसपास के गांवों में आक्रोश फैल गया। स्थानीय नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन करार दिया।
पंचायत मुखिया गोलक बिहारी यादव: “यह पुलिस की दबंगई का परिणाम है। एक निर्दोष आदिवासी की जान चली गई। हम मानवाधिकार आयोग से हस्तक्षेप की मांग करते हैं।”
झारखंड आंदोलनकारी युधिष्ठिर प्रसाद सिंह यादव: “पुलिस का यह रवैया आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय को दर्शाता है। दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।”
जेएमएम नेता परेश मंडल: “यह सिर्फ एक परिवार की नहीं, पूरे समुदाय की लड़ाई है। हम सड़क से लेकर कोर्ट तक न्याय के लिए लड़ेंगे।”
युवा जेएमएम नेता सनाउल अंसारी, दिलीप मरांडी, सुबेश मुर्मू, और उप मुखिया प्रतिनिधि गोपाल सिंह: सभी ने एक स्वर में घटना की निंदा की और कहा कि पुलिस की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
स्थानीय लोग इस बात से भी नाराज हैं कि पुलिस ने बिना पुख्ता सबूत के एक बुजुर्ग को निशाना बनाया। गांव में यह चर्चा जोरों पर है कि अगर पुलिस को संतोष राणा की तलाश थी, तो महेश्वर राणा को क्यों परेशान किया गया, जिनका इस मामले से सीधा कोई लेना-देना नहीं था।
पुलिस का पक्ष
अभी तक सारठ या खागा थाना पुलिस की ओर से इस मामले में कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। यह सवाल बना हुआ है कि क्या महेश्वर राणा को औपचारिक रूप से हिरासत में लिया गया था, और यदि हां, तो किस आधार पर। पुलिस की चुप्पी ने मामले को और संदिग्ध बना दिया है।
कानूनी और सामाजिक पहलू
यह मामला भारत में पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों की लंबी फेहरिस्त में एक और दुखद अध्याय जोड़ता है। National Human Rights Commission (NHRC) के दिशानिर्देशों के अनुसार, हिरासत में किसी की मौत होने पर निम्नलिखित कदम अनिवार्य हैं:
मजिस्ट्रियल जांच: हर हिरासती मौत की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।
पोस्टमॉर्टम: पारदर्शी तरीके से और वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमॉर्टम किया जाना चाहिए।
FIR दर्ज करना: अगर मारपीट के सबूत मिलें, तो पुलिसकर्मियों के खिलाफ BNS की धारा के तहत मामला दर्ज होना चाहिए
परिवार को सूचना: मृतक के परिजनों को तुरंत सूचित करना और उन्हें प्रक्रिया में शामिल करना।
इस मामले में, परिजनों का दावा है कि इनमें से कोई भी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई।
सामाजिक रूप से, यह घटना आदिवासी समुदाय के साथ पुलिस के व्यवहार पर सवाल उठाती है। झारखंड जैसे राज्य में, जहां आदिवासी आबादी का बड़ा हिस्सा है, ऐसे मामले सामुदायिक अविश्वास को और गहरा आघात करते हैं।
जाहिर है महेश्वर राणा की मौत ने एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली और हिरासत में होने वाली हिंसा पर सवाल खड़े किए हैं। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है। अगर पुलिस ने वाकई मारपीट की, तो यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर भी चोट है।