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सुप्रीम कोर्ट में सारंडा सेंक्चुरी मामले पर आज महत्वपूर्ण सुनवाई, झारखंड सरकार की शपथ पत्र पर हो सकता है फैसला

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में आज झारखंड के सारंडा जंगल को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने के मामले में अहम सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले को सुनेंगी। सुनवाई के दौरान कोर्ट झारखंड सरकार द्वारा दाखिल शपथ पत्र की जांच करेगी, जिसमें सारंडा को अभयारण्य घोषित करने का आश्वासन दिया गया है।

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यह मामला 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के फैसले से जुड़ा है, जिसमें सारंडा के सल वनों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने का निर्देश दिया गया था। एनजीटी ने इसे देश के बेहतरीन सल जंगलों का भंडार बताया था, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक अधिसूचना जारी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 से कई बार राज्य को फटकार लगाई है और देरी पर अवमानना नोटिस तक जारी किया है।

पिछली सुनवाई 17 अक्टूबर को हुई थी, जब झारखंड सरकार ने कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए शपथ पत्र दाखिल किया। इससे पहले 8 अक्टूबर को कोर्ट ने 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने की अनुमति दी, जो मूल प्रस्तावित 57,519.41 हेक्टेयर से कम है। कोर्ट ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और अन्य वैध पट्टाधारकों के खनन क्षेत्रों को अभयारण्य से बाहर रखने का भी आदेश दिया। 14 अक्टूबर को सुनवाई स्थगित कर 17 अक्टूबर तय की गई, और अब आज फैसला महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

सारंडा वेस्ट सिंघभूम जिले में स्थित एशिया का सबसे बड़ा सल जंगल है, जो 850 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है। यहां हाथी, स्लॉथ बियर, एंटीलोप और 138 प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह क्षेत्र 79 पौधों, 23 स्तनधारियों और 32 तितलियों की प्रजातियों का घर है। यह झारखंड-ओडिशा के बीच महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारा भी है। हालांकि, अवैध खनन और वन कटाई ने इसे खतरे में डाल दिया है।

झारखंड सरकार ने तर्क दिया है कि अभयारण्य घोषणा से आदिवासी समुदायों के अधिकार प्रभावित न हों। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 14 अक्टूबर को आश्वासन दिया कि वन पर निर्भर स्थानीय निवासियों को विस्थापन या अस्तित्व संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। सरकार ने 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा है, लेकिन 60 वर्ग किलोमीटर को आदिवासी बस्तियों के कारण छोड़ने की मांग की है।

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