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वक्फ संशोधन बिल पर सुप्रीम सुनवाई , कानून पर रोक नही ,सरकार से मांगा जवाब

वक्फ संशोधन बिल पर सुप्रीम सुनवाई , कानून पर रोक नही ,सरकार से मांगा जवाब

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल को अहम सुनवाई हुई। यह मामला केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं से संबंधित है। इस कानून को लेकर देशभर में व्यापक विवाद छिड़ा हुआ है, जिसमें मुस्लिम संगठनों, विपक्षी दलों और कुछ गैर-मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि आज कोर्ट ने इस कानून पर कोई रोक नही लगाई है। कोर्ट ने यह कहते हुए तत्काल कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया कि संसद से पारित कानून को सीधे खारिज नहीं किया जा सकता है इस मामले में कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं हुआ है लेकिन केन्द्र से इस पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने अगली 17 अप्रैल  यानी कल दोपहर 2:00 बजे निर्धारित की गई है

वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 :  केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को 8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश किया था। इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की समीक्षा के बाद 30 जनवरी, 2025 को संसद में प्रस्तुत किया गया। बिल को लोकसभा में 2 अप्रैल, 2025 और राज्यसभा में 4 अप्रैल, 2025 को पारित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल, 2025 को इस पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद यह कानून बन गया। केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल, 2025 से इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की।
कानून के मुख्य प्रावधान:
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाने का दावा।
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान।
वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाना।
केवल दान की गई संपत्ति को ही वक्फ संपत्ति माना जाएगा।
विवादित संपत्तियों के मामले में कलेक्टर को मालिकाना हक तय करने का अधिकार।
वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट में चुनौती देने का प्रावधान।
विवाद का कारण: मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों का दावा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप और वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कम करने वाला बताया गया है। दूसरी ओर, सरकार और कुछ गैर-मुस्लिम याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने और पारदर्शिता लाने के लिए आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:
पीठ: सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार, और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन जजों की बेंच ने की।
याचिकाओं की संख्या:  जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ कुल 100 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें से 10 याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुनवाई हुई। इनमें प्रमुख याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं:
मुस्लिम संगठन: जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR)।
विपक्षी दल: कांग्रेस (सांसद मोहम्मद जावेद, इमरान प्रतापगढ़ी), AIMIM (असदुद्दीन ओवैसी), आम आदमी पार्टी (अमानतुल्लाह खान), तृणमूल कांग्रेस (महुआ मोइत्रा), राजद (मनोज झा), डीएमके, सीपीआई, वाईएसआरसीपी, और टीवीके (अभिनेता विजय)।
गैर-मुस्लिम याचिकाकर्ता: हिंदू सेना, जय ओमकार भीलाला समाज संगठन, और आदिवासी सेवा मंडल जैसे संगठनों ने कानून का समर्थन करते हुए या पुराने वक्फ अधिनियम, 1995 को चुनौती देते हुए याचिकाएं दाखिल की हैं।
केंद्र सरकार की स्थिति: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर अनुरोध किया था कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए। सरकार का तर्क है कि यह कानून मुस्लिम महिलाओं और गरीब मुस्लिमों के हितों की रक्षा करता है और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता।
सुनवाई के दौरान मुख्य दलीलें
याचिकाकर्ताओं की दलीलें (कानून के खिलाफ):
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने एक प्रावधान पर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया है कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो। सिब्बल ने पूछा, “सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ कौन बना सकता है?”
भेदभावपूर्ण प्रावधान: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह कानून केवल मुस्लिम वक्फ संपत्तियों को लक्षित करता है, जबकि अन्य धर्मों के ट्रस्ट या धार्मिक संस्थानों पर समान नियम लागू नहीं होते। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर हमला: जमीयत उलेमा-ए-हिंद और AIMPLB ने कहा कि यह कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करता है और सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाता है, जो मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामुदायिक जीवन को प्रभावित करता है।
संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन: कुछ याचिकाओं में दावा किया गया कि कलेक्टर को संपत्ति का मालिकाना हक तय करने का अधिकार देना संविधान के अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन है।
कानून के समर्थकों की दलीलें:
गैर-मुस्लिम याचिकाकर्ता: हिंदू सेना और आदिवासी संगठनों ने तर्क दिया कि पुराना वक्फ अधिनियम, 1995 वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्तियां देता था, जिसका दुरुपयोग गैर-मुस्लिमों और आदिवासियों की संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए किया गया। नया कानून इन अन्यायों को ठीक करता है।
केंद्र सरकार का पक्ष: सरकार ने दावा किया कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है, बल्कि वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए है। यह मुस्लिम महिलाओं और अन्य वंचित वर्गों के हितों की रक्षा करता है।
राज्य सरकारों का समर्थन: सात NDA-शासित राज्य सरकारों ने कानून को संवैधानिक और न्यायपूर्ण बताया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां:
CJI संजीव खन्ना: CJI ने कहा कि अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है और सभी समुदायों पर लागू होता है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से दो बिंदुओं पर विचार करने को कहा: (1) क्या यह मामला हाई कोर्ट को भेजा जाना चाहिए? (2) क्या सभी याचिकाओं को एक साथ सुना जाना चाहिए?
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कानून की कुछ धाराओं पर स्पष्टीकरण मांगा, विशेष रूप से गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और वक्फ संपत्तियों के पुनर्मूल्यांकन से संबंधित।
सुनवाई का परिणाम
कोई अंतरिम रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के लागू होने पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई।
केंद्र से जवाब मांगा: कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
अगली सुनवाई: मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल,  को दोपहर 2 बजे निर्धारित की गई है।
याचिकाओं का समूह: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह सुनवाई का पहला दौर है और सभी याचिकाओं को एक साथ नहीं सुना जा सकता। मूल याचिकाओं पर पहले सुनवाई होगी,
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
मुस्लिम संगठनों का विरोध: AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कानून को वक्फ संस्थाओं के अधिकार छीनने वाला बताया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे “मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला” करार दिया।
विपक्षी दलों की रणनीति: कांग्रेस, सपा, डीएमके, टीएमसी, और अन्य दलों ने कानून को संविधान विरोधी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कुछ NDA सहयोगी दलों (जैसे JDU और NPP) के नेताओं ने भी याचिकाएं दाखिल कीं, जिससे गठबंधन में दरार की बात सामने आई।
समर्थन: हिंदू सेना, आदिवासी संगठनों, और NDA-शासित सात राज्य सरकारों ने कानून का समर्थन किया।

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