ट्रंप का “टैरिफ बम” (Tariff Bomb) के नीति, नियत को समझे विस्तार से
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म्प का “टैरिफ बम” (Tariff Bomb) यह एक ऐसी नीति को इंगित करता है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में विभिन्न देशों से आयात होने वाले सामानों पर बड़े पैमाने पर टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की है। यह नीति खास तौर पर कनाडा, मैक्सिको, चीन और अन्य प्रमुख व्यापारिक साझेदारों को लक्षित करती है। इसका उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था को “अमेरिका फर्स्ट” (America First) के तहत मजबूत करना, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, और व्यापार असंतुलन को कम करना बताया जा रहा है। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25% टैरिफ, चीन से आयात पर 10% से शुरूआती टैरिफ (जो बाद में बढ़कर 54% तक हो गया), और सभी देशों पर 10% का आधारभूत टैरिफ लगाया है। इसके अलावा, कुछ देशों पर उनकी व्यापार नीतियों के आधार पर और भी ऊंचे टैरिफ (जैसे कंबोडिया पर 49%) लगाए गए हैं।
ट्रंप के टैरिफ बम का स्वरूप
कनाडा और मैक्सिको पर 25% टैरिफ: यह टैरिफ अवैध प्रवास और फेंटेनाइल जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए लगाया गया। ऊर्जा संसाधनों पर 10% की कम दर रखी गई है।
चीन पर टैरिफ—: अमेरिका की ओर से चीन पर शुरू में 10% टैरिफ लगाया गया, जो बाद में बढ़कर 20% और फिर 54% तक पहुंच गया। यह कदम चीन के फेंटेनाइल अग्रदूत रसायनों की तस्करी और बौद्धिक संपदा चोरी जैसे मुद्दों के जवाब में उठाया गया।
वैश्विक आधारभूत टैरिफ–: 10% का टैरिफ सभी देशों पर लागू किया गया, जिसके ऊपर व्यापार असंतुलन वाले देशों पर अतिरिक्त “पारस्परिक” (reciprocal) टैरिफ लगाए गए। जैसे, यूरोपीय संघ पर 20%, जापान पर 24%, और वियतनाम पर 46%।
कानूनी आधार-: ट्रंप ने इन टैरिफ्स को लागू करने के लिए इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का इस्तेमाल किया, जो उन्हें राष्ट्रीय आपातकाल में व्यापारिक कदम उठाने की शक्ति देता है।
विश्व अर्थव्यवस्था के लिए खतरा–
ट्रंप के टैरिफ बम का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव गहरा और बहुआयामी हो सकता है। इसे कई कारणों से खतरनाक माना जा रहा है:
व्यापार युद्ध की शुरुआत-:
कई देशों ने जवाबी टैरिफ की घोषणा की है। उदाहरण के लिए, चीन ने अमेरिकी आयात पर 34% टैरिफ लगाया, कनाडा ने $155 बिलियन के अमेरिकी सामानों पर 25% टैरिफ की बात कही, और यूरोपीय संघ ने $28 बिलियन के अमेरिकी निर्यात पर जवाबी शुल्क लगाने की योजना बनाई।
यह एक वैश्विक व्यापार युद्ध को जन्म दे सकता है, जैसा कि 1930 में स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट के बाद देखा गया था, जिसने ग्रेट डिप्रेशन को और गहरा कर दिया था।
महंगाई का दबाव–:
टैरिफ से आयातित सामानों की कीमतें बढ़ेंगी, जिसका असर अमेरिकी और वैश्विक उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। टैक्स फाउंडेशन का अनुमान है कि इससे अमेरिकी परिवारों पर सालाना $1,900 से अधिक का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अनुसार, वैश्विक जीडीपी ग्रोथ 2025 में 2% से नीचे जा सकती है, जो 2008 के वित्तीय संकट के बाद सबसे कम होगी।
आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान–:
कनाडा, मैक्सिको और चीन से आने वाले $1.3 ट्रिलियन से अधिक के आयात प्रभावित होंगे। उदाहरण के लिए, मैक्सिको की ऑटो इंडस्ट्री, जो अमेरिका को $200 बिलियन से अधिक का निर्यात करती है, को भारी नुकसान हो सकता है।
कंपनियां जैसे स्टेलेंटिस ने पहले ही कनाडा और मैक्सिको में अपने प्लांट्स बंद कर दिए हैं, जिससे 900 अमेरिकी श्रमिकों की छंटनी हुई।
आर्थिक मंदी का जोखिम-:
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि अमेरिकी आयात 15% तक कम हो सकता है, जिससे अमेरिकी जीडीपी में 0.8% की कमी आ सकती है। जवाबी टैरिफ से यह नुकसान और बढ़ेगा।
जेपी मॉर्गन ने वैश्विक मंदी की संभावना को 60% तक बढ़ा दिया है।
वैश्विक असमानता-:
छोटे और कमजोर अर्थव्यवस्थाएं जैसे कंबोडिया, लाओस और वियतनाम, जो उच्च टैरिफ (40-49%) का सामना कर रहे हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। इनके पास जवाब देने की क्षमता सीमित है।
दूसरी ओर, यूके जैसे देश, जहां केवल 10% टैरिफ लागू है, कम प्रभावित होंगे।
अनिश्चितता और निवेश पर असर-:
टैरिफ नीति की अनिश्चितता से व्यवसाय निवेश और विस्तार में हिचकिचा रहे हैं। इससे वैश्विक आर्थिक विकास और रोजगार सृजन प्रभावित हो सकता है।
सकारात्मक पहलू (ट्रंप के दृष्टिकोण से)
ट्रंप प्रशासन का दावा है कि यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी:
राष्ट्रीय सुरक्षा और घरेलू उत्पादन-: टैरिफ से अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निर्भरता कम होगी।
राजस्व वृद्धि–: टैक्स फाउंडेशन के अनुसार, टैरिफ से अगले दशक में $2.3 ट्रिलियन का राजस्व प्राप्त हो सकता है।
बातचीत का दबाव–: ट्रंप का मानना है कि यह अन्य देशों को व्यापार समझौतों के लिए मजबूर करेगा।
जाहिर है ट्रंप का टैरिफ बम विश्व अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा जोखिम पैदा करता है। यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बदल सकता है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं टूट सकती हैं, कीमतें बढ़ सकती हैं, और मंदी का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि ट्रंप इसे अमेरिकी हितों के लिए जरूरी मानते हैं, लेकिन अधिकांश अर्थशास्त्री इसे एक गलत कदम मानते हैं, जिसका असर न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा। यदि यह नीति स्थायी रही और जवाबी कार्रवाइयां बढ़ीं, तो यह 21वीं सदी का सबसे बड़ा व्यापारिक संकट बन सकता है।