पेट्रोल, डीजल पर आम जनता को नही होगी जेब ढीली , तेल कंपनियां उठाएंगी सारा ख़र्च , पेट्रोलियम मंत्रालय से आया बयान , जानिए कैसे पेट्रोल कंपनियों उठाएंगे पूरा खर्च
केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की घोषणा एक लेकिन सरकार ने तुरंत यह स्पष्ट कर दिया कि इस फैसले से पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अभी तक पेट्रोल पर 19.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 15.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी लगाई जा रही थी। इस बढ़ोतरी के बाद यह क्रमशः 21.90 रुपये और 17.80 रुपये प्रति लीटर हो जाएगी। यह अतिरिक्त बोझ पेट्रोलियम कंपनियों को उठाना होगा, न कि आम जनता को। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
सरकार का फैसला और उसका तर्क
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में हालिया गिरावट आई है। इस कमी का फायदा उठाकर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का निर्णय लिया है, लेकिन इसे इस तरह से लागू किया जा रहा है कि तेल कंपनियां इसे अपनी कमाई से एडजस्ट करें। इसका मतलब है कि कंपनियों को कच्चे तेल की घटी लागत से जो अतिरिक्त मुनाफा हो रहा है, उसका एक हिस्सा अब सरकार को ड्यूटी के रूप में मिलेगा। अगर भविष्य में कच्चे तेल की कीमतें और कम होती हैं, तो इसका लाभ उपभोक्ताओं को सस्ते पेट्रोल-डीजल के रूप में भी मिल सकता है। यह एक तरह से राजस्व बढ़ाने और बाजार की स्थिति का संतुलन बनाए रखने की रणनीति है।
कीमतें कैसे एडजस्ट होंगी?
पेट्रोलियम मार्केट एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा ने इस प्रक्रिया को और स्पष्ट करते हुए बताया कि तेल कंपनियां (जैसे IOCL, BPCL, HPCL आदि) इस बढ़ी हुई एक्साइज ड्यूटी को अपने मार्जिन या मुनाफे से वहन करेंगी। भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें मुख्य रूप से तीन घटकों पर निर्भर करती हैं:
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत: यह वह लागत है जो कंपनियां कच्चा तेल खरीदने में खर्च करती हैं।
टैक्स और ड्यूटी: इसमें केंद्र की एक्साइज ड्यूटी, राज्य का वैट और अन्य शुल्क शामिल हैं।
कंपनियों का मार्जिन: रिफाइनिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और बिक्री से होने वाला लाभ।
अब, चूंकि कच्चे तेल की कीमतें कम हुई हैं, कंपनियों की प्रति लीटर लागत घट गई है। इस घटी लागत से जो अतिरिक्त लाभ हो रहा था, उसमें से अब 2 रुपये प्रति लीटर सरकार को एक्साइज ड्यूटी के रूप में जाएंगे। इसका मतलब यह है कि कंपनियों का मार्जिन थोड़ा कम होगा, लेकिन वे इसकी भरपाई पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाकर नहीं करेंगी। इस तरह, उपभोक्ताओं के लिए पंप पर कीमतें वही रहेंगी।
उदाहरण से समझें
मान लीजिए पहले कच्चे तेल की लागत और रिफाइनिंग मिलाकर पेट्रोल की बेसिक कीमत 50 रुपये प्रति लीटर थी। इसमें 19.90 रुपये एक्साइज ड्यूटी और राज्य का वैट (मान लें 15 रुपये) जोड़कर कुल कीमत 84.90 रुपये होती थी। अब कच्चे तेल की कीमत घटने से बेसिक कीमत 48 रुपये हो गई। नई ड्यूटी (21.90 रुपये) और वैट (15 रुपये) जोड़ने पर भी कीमत 84.90 रुपये ही रहती है। इस तरह, कंपनियां घटी लागत के बावजूद कीमतें नहीं बदल रही हैं, और अतिरिक्त ड्यूटी उनके मुनाफे से एडजस्ट हो रही है।