20250625 084022

भारत में आपातकाल के 50 साल: लोकतंत्र का काला अध्याय, एक विवादास्पद फैसला

भारत में आपातकाल की घोषणा के 50 साल पूरे हो गए हैं। 25 जून 1975 की वह रात भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले धब्बे के रूप में दर्ज है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लागू किया था। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक 21 महीनों तक चला और भारतीय लोकतंत्र पर गहरे निशान छोड़ गया।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

आपातकाल का मूल कारण 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का वह फैसला था, जिसमें इंदिरा गांधी के 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित किया गया। समाजवादी नेता राज नारायण ने इंदिरा पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग और चुनावी कदाचार का आरोप लगाया था। हाईकोर्ट ने उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया। इस फैसले के बाद देश में अस्थिरता और विरोध प्रदर्शनों की लहर उठी, जिसके जवाब में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की।

आपातकाल लागू होते ही नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई, और समाचार पत्रों को सरकारी अनुमति के बिना कुछ भी प्रकाशित करने की मनाही थी। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे विपक्षी नेताओं को आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। शाह आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान एक लाख से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया। सबसे विवादास्पद रहा संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान, जिसके तहत एक साल में 60 लाख से अधिक लोगों की जबरन नसबंदी की गई। यह अभियान दमनकारी नीतियों का प्रतीक बन गया।

आपातकाल से पहले बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन और ‘संपूर्ण क्रांति’ का बिगुल फूंका गया था। आपातकाल के दौरान बिहार विरोध का केंद्र बन गया, जहां छात्रों और कार्यकर्ताओं ने सत्ता के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किए। मुंगेर में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं भी हुईं, जिसके जवाब में प्रशासन ने दमनकारी नीतियां अपनाईं।

1977 में बढ़ते विरोध को देखते हुए इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव की घोषणा की। यह फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की, और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाया, क्योंकि जनता ने सत्ता के दुरुपयोग को खारिज कर दिया।

50 साल बाद भी आपातकाल की चर्चा भारतीय राजनीति में जोर पकड़ती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 में 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित किया, ताकि उस दौर के दमन को याद रखा जाए। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे “लोकतंत्र का काला अध्याय” करार देते हुए कहा कि मां भारती के साहसी नागरिकों ने यातनाएं सहकर लोकतंत्र को पुनर्स्थापित किया।

आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र कितना नाजुक, फिर भी कितना मजबूत हो सकता है। यह दौर हमें सिखाता है कि सत्ता का दुरुपयोग और तानाशाही का जवाब जनता की एकजुटता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा से ही दिया जा सकता है।

Share via
Send this to a friend