20250625 160241

खूंटी में ड्रॉपआउट दर चिंताजनक, बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए तेज हुए प्रयास

खूंटी में ड्रॉपआउट दर चिंताजनक, बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए तेज हुए प्रयास

खूंटी, : शिक्षा किसी भी समाज की नींव होती है, लेकिन झारखंड के खूंटी जिले में स्कूल ड्रॉपआउट की उच्च दर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। UDISE+ के आंकड़ों (2022-25) के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 63.92% है, जबकि 10वीं के बाद ट्रांजिशन दर 61.57% से 64.92% के बीच रही, जो शिक्षा व्यवस्था की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
ड्रॉपआउट के कारण
जिले में ड्रॉपआउट के कई सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक कारण हैं:
कम उम्र में विवाह: नाबालिग बच्चे, विशेषकर लड़कियां, कम उम्र में शादी और माता-पिता बनने के कारण स्कूल छोड़ रहे हैं।
आर्थिक तंगी: खेती-बारी के मौसम में बच्चे परिवार की मदद के लिए स्कूल छोड़ देते हैं।
जागरूकता की कमी: खूंटी, मुरहू और अड़की जैसे ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के प्रति अभिभावकों में जागरूकता कम है।
परीक्षा में असफलता: मैट्रिक परीक्षा में असफल होने वाले बच्चे सप्लीमेंट्री परीक्षा देने से कतराते हैं और स्कूल छोड़कर रिश्तेदारों के पास चले जाते हैं।
भौगोलिक चुनौतियां: जिले का दुर्गम भौगोलिक और सांस्कृतिक परिवेश स्कूलों तक पहुंच को मुश्किल बनाता है।
ट्रांजिशन दर का विश्लेषण
पिछले तीन वर्षों के आंकड़े दर्शाते हैं कि ट्रांजिशन दर में सुधार सीमित रहा:
2022-23: कक्षा 5 से 6 में 82.45%, कक्षा 8 से 9 में 68.54%, और कक्षा 10 से 11 में 64.92%।
2023-24: कक्षा 5 से 6 में 76.47%, कक्षा 8 से 9 में 73.72%, और कक्षा 10 से 11 में 61.57%।
2024-25: कक्षा 5 से 6 में 90.45%, कक्षा 8 से 9 में 84.33%, और कक्षा 10 से 11 में 63.92%।
शिक्षा विभाग के प्रयास
जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसई) अभय सील और जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अपरूपा पाल चौधरी ने बताया कि ड्रॉपआउट दर कम करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं:
प्रयास कार्यक्रम: स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने और ट्रांजिशन दर सुधारने पर फोकस।
अभिभावक काउंसलिंग: अभिभावकों को शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक करना।
विशेष अभियान: स्कूल छोड़ चुके बच्चों को दोबारा जोड़ने के लिए योजनाएं।
क्षेत्रीय विश्लेषण: तोरपा और रानियां जैसे क्षेत्रों में 99% उपस्थिति है, जबकि खूंटी, मुरहू और अड़की में यह 60-65% है। कमजोर क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने पर जोर।

इस मामले में DEO ने बताया कि मैट्रिक परीक्षा की अहमियत समझाने के बावजूद बच्चे दोबारा परीक्षा देने से हिचकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति उदासीनता और बच्चों का राजधानी के स्कूलों में पलायन भी एक कारण है। विभाग समय-समय पर अभिभावकों के साथ बैठकें आयोजित कर रहा है और स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने पर काम कर रहा है।
डीएसई अभय सील ने आश्वासन दिया कि सरकारी दिशा-निर्देशों के तहत काम जारी है और आने वाले वर्षों में ड्रॉपआउट दर में कमी आएगी। शिक्षा विभाग, जिला प्रशासन और स्थानीय समुदाय के सहयोग से खूंटी के बच्चों को स्कूल से जोड़ने और उनके भविष्य को संवारने का प्रयास तेज किया जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via
Send this to a friend