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1971 के युद्ध और नरसंहार के लिए पाकिस्तान माफी मांगे, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच उच्चस्तरीय बैठक में बांग्लादेश का पुराना जख्म उभरा

  • ढाका में हाल ही में विदेश सचिव स्तर की बैठक हुई, जिसमें बांग्लादेश ने 1971 के नरसंहार के लिए पाकिस्तान से माफी और आर्थिक मुआवजे की मांग दोहराई। यह मुद्दा बांग्लादेश की विदेश नीति में लंबे समय से प्रमुख रहा है, और हाल के महीनों में यह फिर से सुर्खियों में आया है।
  • विस्तृत विश्लेषण
  • ऐतिहासिक संदर्भ: 1971 का मुक्ति संग्राम
  • 1947 में भारत के विभाजन के बाद, पाकिस्तान दो हिस्सों में बना: पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश)। हालांकि, दोनों हिस्सों के बीच भौगोलिक, सांस्कृतिक, और भाषाई अंतर थे। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली आबादी को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी-प्रभुत्व वाली सरकार और सेना द्वारा राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव का सामना करना पड़ा।
  • 1970 का चक्रवात और राजनीतिक संकट: 1970 में भोला चक्रवात ने पूर्वी पाकिस्तान में लाखों लोगों की जान ले ली। पाकिस्तानी सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया ने बंगालियों में असंतोष को और बढ़ा दिया। उसी वर्ष हुए आम चुनाव में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने भारी बहुमत हासिल किया, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया।
  • 1971 का युद्ध: 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने “ऑपरेशन सर्चलाइट” शुरू किया, जिसका उद्देश्य बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को कुचलना था। इसके परिणामस्वरूप व्यापक नरसंहार, बलात्कार, और मानवाधिकार उल्लंघन हुए। संयुक्त राष्ट्र और स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार, 3 लाख से 30 लाख लोग मारे गए, और लाखों महिलाओं के साथ हिंसा हुई। करीब 1 करोड़ शरणार्थी भारत भाग गए।
  • स्वतंत्रता: भारत की सैन्य सहायता और बांग्लादेशी मुक्ति वाहिनी के प्रयासों से 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ।
  • इस युद्ध के घाव बांग्लादेश के सामूहिक स्मृति में गहरे हैं, और पाकिस्तान की ओर से औपचारिक माफी या मुआवजे की कमी को बांग्लादेश एक ऐतिहासिक अन्याय के रूप में देखता है।
  • बांग्लादेश की मांगें
  • बांग्लादेश ने हाल की बैठक में निम्नलिखित मांगें उठाईं:
  1. 1971 के नरसंहार के लिए सार्वजनिक माफी:
    • बांग्लादेश चाहता है कि पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर 1971 के अत्याचारों की जिम्मेदारी ले और माफी मांगे।
    • 2002 में, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने ढाका में “खेद” व्यक्त किया था, लेकिन इसे बांग्लादेश ने अपर्याप्त माना, क्योंकि यह औपचारिक माफी नहीं थी।
    • माफी का मुद्दा बांग्लादेश में भावनात्मक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, और इसे राष्ट्रीय सम्मान से जोड़ा जाता है।
  2. फंसे हुए नागरिकों की वापसी:
    • 1971 के बाद, कई बिहारी मुस्लिम (जो उर्दू भाषी थे और पाकिस्तान के प्रति वफादार थे) बांग्लादेश में फंस गए। इन्हें “फंसे हुए पाकिस्तानी” (Stranded Pakistanis) कहा जाता है।
    • बांग्लादेश चाहता है कि पाकिस्तान इन लोगों को वापस ले और उनकी नागरिकता का मुद्दा हल करे।
  3. अविभाजित संपत्तियों में हिस्सा:
    • 1947 के विभाजन के बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्तियों का बंटवारा हुआ। बांग्लादेश का दावा है कि पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से की संपत्तियों में उसका उचित हिस्सा नहीं मिला।
    • इसमें सरकारी संपत्ति, विदेशी मुद्रा भंडार, और अन्य संसाधन शामिल हैं।
  4. 1970 के चक्रवात सहायता की बकाया राशि:
    • भोला चक्रवात के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान को सहायता दी थी, जो पूर्वी पाकिस्तान के लिए थी। बांग्लादेश का दावा है कि इस सहायता का बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान तक नहीं पहुंचा, और इसका बकाया हिस्सा उसे दिया जाना चाहिए।
  • पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
  • बैठक में रुख: विदेश सचिव आमना बलूच ने ढाका में सकारात्मक बातचीत की बात कही, लेकिन माफी या मुआवजे पर कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं जताई। पाकिस्तान ने इन मुद्दों पर “निरंतर चर्चा” का सुझाव दिया, जो एक कूटनीतिक तरीका है समय लेने और तनाव कम करने का।
  • आगामी दौरा: पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार का प्रस्तावित दौरा इस मुद्दे को और गति दे सकता है। यह दौरा दोनों देशों के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी, और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर भी केंद्रित हो सकता है।
  • पाकिस्तान की चुनौतियाँ:
    • आर्थिक संकट: पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जिसमें उच्च मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा भंडार की कमी, और कर्ज का बोझ शामिल है। 4.3 अरब डॉलर का मुआवजा देना उसके लिए लगभग असंभव है।
    • घरेलू राजनीति: 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना की भूमिका को लेकर पाकिस्तान में संवेदनशीलता है। सेना एक शक्तिशाली संस्था है, और माफी मांगने का कदम घरेलू विरोध को भड़का सकता है।
    • ऐतिहासिक अस्वीकृति: पाकिस्तान ने अक्सर 1971 के नरसंहार के पैमाने को कम करके दिखाया है और इसे “आंतरिक मामला” या “भारतीय साजिश” के रूप में चित्रित किया है।
  • कूटनीतिक और क्षेत्रीय प्रभाव
  • बांग्लादेश का दबाव: बांग्लादेश की मांगें ऐतिहासिक न्याय की मांग के साथ-साथ कूटनीतिक दबाव का हिस्सा हैं। बांग्लादेश एक उभरती अर्थव्यवस्था है और दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति मजबूत हुई है। वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है।
  • दक्षिण एशिया में शांति: यह मुद्दा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को प्रभावित करता है। बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के सदस्य हैं, लेकिन ऐतिहासिक तनाव के कारण सहयोग सीमित रहा है।
  • भारत की भूमिका: 1971 के युद्ध में भारत की केंद्रीय भूमिका थी, और बांग्लादेश की मांगें अप्रत्यक्ष रूप से भारत-पाकिस्तान संबंधों को भी प्रभावित कर सकती हैं। भारत इस मुद्दे पर बांग्लादेश का समर्थन करता है, जो पाकिस्तान के लिए एक और जटिलता है।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय: संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन 1971 के नरसंहार को मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में देखते हैं। बांग्लादेश इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और जोर दे सकता है, जिससे पाकिस्तान पर नैतिक और कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा
  • बांग्लादेश की मांगें 1971 के मुक्ति संग्राम के ऐतिहासिक घावों और राष्ट्रीय गौरव से जुड़ी हैं। पाकिस्तान के लिए इन मांगों को पूरा करना आर्थिक और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इनके समाधान के बिना द्विपक्षीय संबंधों में स्थायी सुधार मुश्किल होगा। ढाका की हालिया बैठक और इशाक डार के प्रस्तावित दौरे से इस दिशा में प्रगति की उम्मीद है। यह मुद्दा न केवल बांग्लादेश और पाकिस्तान के लिए, बल्कि दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग के लिए भी एक महत्वपूर्ण सवाल है। आगामी हफ्तों में होने वाली बातचीत इस दिशा में अगला कदम तय करेगी।
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