मजदूर संगठनों का राष्ट्रव्यापी हड़ताल: श्रम कोड और निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का जोरदार प्रदर्शन
मजदूर संगठनों का राष्ट्रव्यापी हड़ताल: श्रम कोड और निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का जोरदार प्रदर्शन
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!मजदूर संगठनों का राष्ट्रव्यापी हड़ताल : केंद्र सरकार के चार श्रम कोड और निजीकरण की नीतियों के खिलाफ संयुक्त ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर आज झारखंड में राष्ट्रव्यापी हड़ताल का व्यापक असर देखने को मिला। भारी बारिश के बावजूद, हजारों मजदूर और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे, लाल झंडे लहराते हुए और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी मांगों को बुलंद किया। इस हड़ताल में लगभग 25 करोड़ मजदूरों और कर्मचारियों के शामिल होने का दावा किया गया है, जिसमें किसान संगठन और ग्रामीण मजदूर यूनियनें भी शामिल थीं।
विरोध का कारण: श्रम कोड और निजीकरण
ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि केंद्र सरकार की नीतियां मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉरपोरेट-समर्थक हैं। यूनियनों ने विशेष रूप से चार श्रम कोड—औद्योगिक संबंध कोड, सामाजिक सुरक्षा कोड, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति कोड, और वेतन कोड—को निशाना बनाया। इन कोड्स को लागू करने से पहले के 44 श्रम कानूनों को निरस्त कर दिया गया, जो मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करते थे। यूनियनों का कहना है कि ये नए कोड निम्नलिखित कारणों से मजदूरों के हितों के खिलाफ हैं:
हड़ताल का अधिकार सीमित: नए कोड हड़ताल को कठिन बनाते हैं, जिससे मजदूरों की सामूहिक मोलभाव की शक्ति कमजोर होती है।
काम के घंटे में वृद्धि: कोड्स में प्रावधान हैं जो काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर सकते हैं, जिससे मजदूरों का शोषण बढ़ेगा।
नौकरी की सुरक्षा पर खतरा: ठेका श्रम को बढ़ावा देने और स्थायी नौकरियों को कम करने से मजदूरों की नौकरी की सुरक्षा खतरे में है।
नियोक्ताओं को छूट: कोड्स में प्रावधान हैं जो नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के उल्लंघन पर सजा से बचाने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, यूनियनों ने सरकारी संपत्तियों के निजीकरण पर कड़ा विरोध जताया। उनका कहना है कि बिजली, रेलवे, कोयला खनन, और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने से न केवल मजदूरों की नौकरियां खतरे में पड़ेंगी, बल्कि उपभोक्ताओं पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
जमशेदपुर में हड़ताल का स्वरूप
जमशेदपुर, जो औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता है, में हड़ताल का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया। सुबह से ही शहर के प्रमुख चौराहों, जैसे आम बागान, साकची, और बिष्टुपुर, में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं ने मानव श्रृंखला बनाकर विरोध प्रदर्शन किया। भारी बारिश के बावजूद, प्रदर्शनकारियों का उत्साह कम नहीं हुआ। लाल झंडों के साथ नारे जैसे “श्रम कोड वापस लो”, “निजीकरण बंद करो”, और “मजदूर विरोधी सरकार हाय-हाय” गूंजते रहे।
ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करने और जन आंदोलनों को दबाने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की नेता अमरजीत कौर ने कहा, “पिछले 10 वर्षों में सरकार ने एक भी श्रम सम्मेलन नहीं बुलाया। हमारी 17-सूत्रीय मांगों को लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। यह हड़ताल मजदूरों की एकजुटता और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए है।
प्रभावित क्षेत्र
हड़ताल का असर राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में देखा गया। बैंकों, डाकघरों, और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में व्यवधान हुआ। कई कारखानों और औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन या तो पूरी तरह ठप रहा या आंशिक रूप से प्रभावित हुआ।
ट्रेड यूनियनों की मांगें
संयुक्त ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार को 17-सूत्रीय मांगों का एक चार्टर सौंपा था, जिसमें शामिल हैं:
– चार श्रम कोड को रद्द करना और पुराने श्रम कानूनों को बहाल करना।
– सार्वजनic क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण रोकना।
– न्यूनतम वेतन में वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा लाभों का विस्तार।
– प्रवासी मजदूरों के मताधिकार की रक्षा।
– ठेका श्रम प्रणाली को समाप्त करना।
जमशेदपुर में AITUC के एक स्थानीय नेता ने कहा, “केंद्र सरकार की नीतियां कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने और मजदूरों को गुलाम बनाने की हैं। हम इन नीतियों का पुरजोर विरोध करते हैं और तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।”
यह हड़ताल केवल झारखंड तक सीमित नहीं थी। देशभर में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, जैसे AITUC, CITU, INTUC, और अन्य, ने इस हड़ताल का आह्वान किया था। बिहार में महागठबंधन ने भी चक्का जाम का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल हुए।





