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आखिर क्यो और कैसे बना मोस्टवांटेड नक्सली, नुनुचंद.

गिरीडीह : नुनूचंद महतो ने कभी सोचा नहीं होगा  कि एक दिन वह खूनी खेल रचा कर आतंक का पर्याय बन जाएगा परंतु समय किससे क्या करवाएगा यह तो भविष्य के गर्त में ही छिपा है। दरअसल खोखरा थाना क्षेत्र के भेलवाडीह गांव निवासी नूनू चंद महतो जब नक्सल क्षेत्र में प्रवेश किया उस समय उसका उम्र लगभग 35 वर्ष का था इस उम्र में लोग बेहतर पारिवारिक जीवन बनाने के लिए जद्दोजहद करते हैं तो उसने नक्सल पथ को चुनकर वास्तविक सामाजिक जीवन से दूरी बना लिया इसके पीछे एकमात्र कारण था अंधविश्वास। इसी अंधविश्वास ने उसे नक्सली बनने को विवस कर दिया।

दरअसल नुनू चंद और उसके चचेरे भाई ने अपने ही गांव के पुनीत महतो के 8 वर्षीय पुत्र को जामुन खिलाने के बहाने नदी किनारे ले जाकर डायन बिसाही के आरोप में हत्या कर दिया। बच्चे की खोजबीन शुरू हुई तो कुछ ग्रामीणों ने बताया कि बच्चे को इन दोनों व्यक्तियों के साथ घूमते देखा गया है बच्चे के परिवार वालों के साथ गांव वालों भी इन दोनों पर दबाव बनाया तो उसके चचेरे भाई ने सारी बातें ग्रामीणों की भी रखते हुए कहा कि उसने बच्चे की हत्या कर दी है। इस पर ग्रामीण भड़क गए और दोनों की जमकर पिटाई शुरू कर दी। ग्रामीण भी उग्र हो गए और अपने चचेरे भाई की मार देखकर किसी तरह भीड़ से दोनों चल भाग निकला कुछ दिन जंगल में बिताने के बाद वर्ष 2008 में ही नक्सली गोंबिंद मांझी से भेंट हुई और नूनू चंद की जिंदगी यूटर्न लिया और वह बन गया नक्सली।

2 वर्ष बाद 2010 में वह पारसनाथ क्षेत्र के खूंखार नक्सली अजय महतो की टीम का अंग बन गया इस दौरान अपनी इस नक्सली जत्थे के साथ मिलकर धनबाद के टुंडी गिरिडीह के डुमरी एवम पीरटांड़ सहित  बोकारो के कई थाना क्षेत्रों में नक्सली वारदातों को अंजाम दिया और इसने नक्सली घटनाओं को अंजाम देने में महारत हासिल कर लिया अब संगठन ने अजय महतो को दूसरे क्षेत्र का जिम्मेवारी सौंपते हुए पारसनाथ जोन का बोस नुनुचंद महतो चंद महतो को बना दिया और नुनुचंद सबजोनल कमांडर बन गया।

गिरीडीह, धनबाद एवं बोकारो जिला के कई थाना क्षेत्रों में बड़े बड़े नक्सली कांडों को अंजाम दिया इसके खिलाफ  गिरिडीह में 59 से अधिक मामले दर्ज हैं तो वही बोकारो जिले में इसके खिलाफ 6 मामले तथा धनबाद जिला में इसके खिलाफ नौ मामला दर्ज है ।फिलहाल नुनुचंद संगठन द्वारा अपनी हत्या अथवा जान बचाने के इरादे से पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस प्रकार नूनू चंद के जीवन में नक्सली घटनाओं को अंजाम देने का सफर का अंत हो गया।

गिरिडीह, दिनेश

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