BJP PRATUL

BJP प्रवक्ता प्रतुल शाहदेवNE कहा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए 1932 का खतियान पहले चुनावी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं-

BJP ने मुख्यमंत्री के 1932 खतियान के बयान पर किया पलटवार

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए 1932 का खतियान पहले , आज और भविष्य में भी चुनावी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं- प्रतुल शाहदेव

 60-40 की नीति लागू करने वाले मुख्यमंत्री से प्रदेश के आदिवासी मूलवासी को ज्यादा अपेक्षा नहीं रही।

BJP के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के उस बयान पर पलटवार किया जिसमें उन्होंने कहा था की 1932 का खतियान उनकी सरकार के लिए पहले भी,आज भी है और कल भी मुद्दा रहेगा।प्रतुल ने कहा की झामुमो आदिवासी मूलवासी के लिए सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाती है। प्रतुल ने कहा की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 2012 में अर्जुन मुंडा सरकार से 1932 के स्थानीय नीति को लागू करने के मुद्दे पर समर्थन वापस लेकर खुद मुख्यमंत्री बने थे। 14 महीने की उस सरकार में मुख्यमंत्री ने 1932 के खतियान को लागू नहीं किया।

प्रतुल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी तृतीय चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में स्थानीय युवकों के नियोजन की पक्षधर है। विधानसभा में भी राज्य सरकार के प्रस्ताव को पार्टी विधायकों ने स्पष्ट समर्थन किया।लेकिन कानूनी अड़चनों को दूर करने की जिम्मेवारी राज्य सरकार की ही है। ।लेकिन हेमंत सरकार ने इस मुद्दे पर कभी सीरियस पहल नहीं की। 1932 खतियान आधारित नियोजन नीति को मुख्यमंत्री एक सरकारी संकल्प से लागू कर सकते थे।लेकिन नहीं किया। इन्होंने अपने विधि विभाग के विरोध के बावजूद विधानसभा में 1932 के खतियान आधारित नियोजन नीति को लाकर ड्रामेबाजी कर के नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए राज्यपाल को भेज दिया। मुख्यमंत्री को पता था कि इस विधेयक के प्रारूप में त्रुटियां हैं और यह कानून की कसौटी पर टिक नहीं पाएगा। लेकिन इन्होंने सिर्फ जनता का ध्यान भटकाने के लिए 1932 की स्थानीय नीति को फूल प्रूफ नहीं बल्कि त्रुटिपूर्ण बना दिया।

प्रतुल ने कहा कि प्रथम मुख्यमंत्री प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने तो 2002 में खतियान आधारित नियोजन नीति को लागू किया था।लेकिन अदालत ने उस पर रोक लगा दी थी। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अगर 1932 को लेकर गंभीर होते तो एक फूलप्रूफ 1932 की स्थानीय नीति लेकर आते हैं लेकिन इन्होंने तो 60-40 की नीति लागू करके थर्ड-फोर्थ ग्रेड की नौकरियों के द्वार भी झारखंड के बाहर के लोगों के लिए खोल दिया।यही इनकी कथनी और करनी के बीच का अंतर है

Share via
Send this to a friend