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एलन मस्क के स्वामित्व वाली सोशल मीडिया कंपनी X ने कर्नाटक हाईकोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया

एलन मस्क के स्वामित्व वाली सोशल मीडिया कंपनी X ने कर्नाटक हाईकोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है। यह मामला 20 मार्च 2025 को दर्ज किया गया, जिसमें X ने सरकार पर सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 79(3)(b) और ‘सहयोग’ पोर्टल के उपयोग के माध्यम से सेंसरशिप लागू करने का आरोप लगाया है। X का तर्क है कि ये तरीके बोलने की आजादी का उल्लंघन करते हैं और नियमों का पालन नहीं करते। कंपनी ने कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने और सरकार के कंटेंट ब्लॉकिंग आदेशों से सुरक्षा की मांग की है, जब तक कि इसकी याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता। यह विवाद सरकार के उन निर्देशों से जुड़ा है, जो X को कुछ सामग्री को हटाने या ब्लॉक करने के लिए कहते हैं, जिसे सरकार गलत सूचना या नियमों के खिलाफ मानती है।
मुकदमे का कारण
X ने अपनी याचिका में दावा किया कि भारत सरकार सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(b) और इसके तहत जारी किए गए कंटेंट ब्लॉकिंग आदेशों का दुरुपयोग कर रही है। यह धारा सरकार को यह अधिकार देती है कि वह मध्यस्थों (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स) को गैरकानूनी सामग्री हटाने के लिए निर्देश दे सके। इसके अलावा, सरकार ने ‘सहयोग’ नामक एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया है, जिसके जरिए सोशल मीडिया कंपनियों को कंटेंट हटाने या ब्लॉक करने के आदेश दिए जाते हैं। X का कहना है कि ये आदेश अस्पष्ट, असंगत और अक्सर बिना उचित प्रक्रिया के जारी किए जाते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत बोलने की आजादी के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
एलन मस्क की कंपनी X ने कर्नाटक हाईकोर्ट में भारत सरकार के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई 20 मार्च 2025 को शुरू हुई। यह मुकदमा भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट मॉडरेशन और सेंसरशिप के लिए अपनाए गए तरीकों के खिलाफ है। नीचे इस मामले की पूरी डिटेल दी जा रही है:
X की मुख्य आपत्तियां
  1. पारदर्शिता की कमी: X ने आरोप लगाया कि सरकार के ब्लॉकिंग आदेशों में यह स्पष्ट नहीं किया जाता कि कौन सी सामग्री गैरकानूनी है और क्यों। इससे प्लेटफॉर्म और उपयोगकर्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने में कठिनाई होती है।
  2. अनुपातहीन सेंसरशिप: कंपनी का कहना है कि सरकार पूरे अकाउंट्स को ब्लॉक करने के आदेश दे रही है, न कि सिर्फ विशिष्ट पोस्ट्स को, जो एक अनुपातहीन प्रतिबंध है।
  3. कानूनी प्रक्रिया का अभाव: X ने दावा किया कि सरकार इन आदेशों को बिना सुनवाई या अपील के अवसर के लागू कर रही है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  4. संवैधानिक उल्लंघन: X का तर्क है कि यह प्रक्रिया न केवल IT नियमों के दायरे से बाहर है, बल्कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी हमला है।
मुकदमे की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब भारत सरकार ने X को कई बार नोटिस जारी किए, जिसमें गलत सूचना, भड़काऊ सामग्री या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानी जाने वाली पोस्ट्स को हटाने के लिए कहा गया। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में सरकार ने किसान आंदोलन, COVID-19 से संबंधित गलत सूचना और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर पोस्ट्स को ब्लॉक करने के निर्देश दिए थे। X ने पहले इनमें से कुछ आदेशों का पालन किया, लेकिन अब उसने इनके खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की है। कंपनी का कहना है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए यह कदम उठा रही है।
X की मांगें
  • कर्नाटक हाईकोर्ट से सरकार के कंटेंट ब्लॉकिंग आदेशों को रद्द करने की मांग।
  • जब तक याचिका पर अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक सरकार को नए ब्लॉकिंग आदेश जारी करने से रोकने के लिए अंतरिम राहत।
  • IT नियमों और ‘सहयोग’ पोर्टल की संवैधानिक वैधता की समीक्षा।
कानूनी और सामाजिक संदर्भ
यह मामला भारत में डिजिटल अधिकारों, बोलने की आजादी और सरकार के नियंत्रण के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सख्ती बढ़ाई है, जिसमें 2021 के IT नियम भी शामिल हैं। इन नियमों के तहत प्लेटफॉर्म्स को शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया गया है। X का यह कदम ट्विटर (अब X) और भारत सरकार के बीच पहले से चले आ रहे तनाव का एक नया अध्याय है।
वर्तमान स्थिति
20 मार्च 2025 तक, कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस मामले को स्वीकार कर लिया है और सरकार से जवाब मांगा है। अगली सुनवाई की तारीख अभी निर्धारित नहीं हुई है, लेकिन यह मामला तकनीकी कंपनियों और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाई बन सकता है।
  1. पारदर्शिता की कमी: X ने आरोप लगाया कि सरकार के ब्लॉकिंग आदेशों में यह स्पष्ट नहीं किया जाता कि कौन सी सामग्री गैरकानूनी है और क्यों। इससे प्लेटफॉर्म और उपयोगकर्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने में कठिनाई होती है।
  2. अनुपातहीन सेंसरशिप: कंपनी का कहना है कि सरकार पूरे अकाउंट्स को ब्लॉक करने के आदेश दे रही है, न कि सिर्फ विशिष्ट पोस्ट्स को, जो एक अनुपातहीन प्रतिबंध है।
  3. कानूनी प्रक्रिया का अभाव: X ने दावा किया कि सरकार इन आदेशों को बिना सुनवाई या अपील के अवसर के लागू कर रही है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  4. संवैधानिक उल्लंघन: X का तर्क है कि यह प्रक्रिया न केवल IT नियमों के दायरे से बाहर है, बल्कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी हमला है।
वहीं भारत सरकार ने X द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर मुकदमे के जवाब में अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखा है। सरकार का तर्क है कि सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 79(3)(b) और ‘सहयोग’ पोर्टल का उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और गलत सूचना को रोकने के लिए आवश्यक है। नीचे सरकार के पक्ष की विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
सरकार का पक्ष
  1. राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हित: सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया पर अनियंत्रित कंटेंट से अफवाहें, हिंसा और सामाजिक अशांति फैल सकती है। उदाहरण के तौर पर, सरकार ने अतीत में किसान आंदोलन और COVID-19 के दौरान फैली गलत सूचनाओं का हवाला दिया, जिसे नियंत्रित करने के लिए कंटेंट ब्लॉकिंग जरूरी थी। धारा 79(3)(b) सरकार को ऐसे कंटेंट को तुरंत हटाने का अधिकार देती है, जो देश की संप्रभुता या अखंडता के लिए खतरा बन सकता है।
  2. कानूनी ढांचे का पालन: सरकार ने तर्क दिया कि IT अधिनियम और इसके तहत बनाए गए नियम, जैसे कि 2021 के IT नियम, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाने के लिए हैं। ‘सहयोग’ पोर्टल को एक तकनीकी उपकरण के रूप में पेश किया गया है, जो ब्लॉकिंग आदेशों को तेजी से लागू करने में मदद करता है। सरकार का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी है और संवैधानिक सीमाओं के भीतर है।
  3. धारा 69A का समर्थन: सरकार ने यह भी जोर दिया कि कंटेंट ब्लॉकिंग के लिए मुख्य रूप से धारा 69A का इस्तेमाल होता है, जिसमें एक निर्धारित प्रक्रिया और कारण बताने की आवश्यकता होती है। हालांकि, धारा 79(3)(b) को एक पूरक प्रावधान के रूप में देखा जाता है, जो तत्काल कार्रवाई के लिए मध्यस्थों (जैसे X) को जिम्मेदार बनाता है। सरकार का दावा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के 2015 के श्रेया सिंघल फैसले का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि उस फैसले ने धारा 69A को बरकरार रखा था।
  4. X की जिम्मेदारी: सरकार ने X पर आरोप लगाया कि वह बार-बार ब्लॉकिंग आदेशों का पालन करने में विफल रही है, जिससे मजबूरन सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। सरकार के अनुसार, X जैसी कंपनियों को भारतीय कानूनों का सम्मान करना चाहिए, खासकर जब वे देश में व्यवसाय कर रही हैं और लाखों उपयोगकर्ताओं को प्रभावित करती हैं।
  5. कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं: 17 मार्च 2025 को हुई सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि X के ‘सहयोग’ पोर्टल से जुड़ने से इनकार करने के लिए अभी तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई है। सरकार का कहना है कि वह X के साथ सहयोग करने को तैयार है, बशर्ते कंपनी कानूनी दायित्वों का पालन करे।
सरकार की आपत्ति X के दावों पर
  • पारदर्शिता की कमी का आरोप: सरकार का कहना है कि ब्लॉकिंग आदेशों में कारण बताए जाते हैं, लेकिन संवेदनशील मामलों में गोपनीयता बनाए रखने के लिए इन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
  • बोलने की आजादी पर हमला: सरकार ने इस दावे को खारिज किया कि यह सेंसरशिप है। उसका कहना है कि बोलने की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, और ये कदम उन्हीं प्रतिबंधों के दायरे में आते हैं।
  • व्यवसाय मॉडल पर प्रभाव: सरकार का तर्क है कि X का व्यवसाय मॉडल भारतीय कानूनों के ऊपर नहीं हो सकता। अगर कंटेंट से राष्ट्रीय हित को खतरा है, तो उसे ब्लॉक करना प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी है।
वर्तमान स्थिति
20 मार्च 2025 तक, सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपना जवाब दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी है। अगली सुनवाई 27 मार्च 2025 को होने की संभावना है, जिसमें सरकार को औपचारिक रूप से अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा। सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि वह X के साथ बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन कानूनी ढांचे के भीतर ही।
इस तरह, सरकार का पक्ष यह है कि उसकी कार्रवाइयां कानूनी, आवश्यक और संवैधानिक हैं, और X को भारतीय नियमों का पालन करना होगा। 
डिस्क्लेमर : इस खबर को तैयार करने में AI की मदद ली गई है
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