तीनो कृषि कानूनों के हटने के बाद कितना बढ़ा कृषियो का आए ?
इसके लिए हमें कुछ प्रमुख सवालो पर ध्यान देना होगा ?
पहला सवाल ये है कि आखिर एमएसपी क्या है और इसकी क्या ज़रूरत है?
पहले से ही किसानों के हित में एमएसपी की व्यवस्था सालों से चली आ रही है. जिसके तहत केंद्र की सरकार फसलों की पहले एक न्यूनतम कीमत तय करती है, जिसे एमएसपी कहते हैं. अब मान लीजिए की अगर कभी किशानो की फसलों की क़ीमत बाज़ार के अनुसार से अगर गिर भी जाती है, तो भी केंद्र की सरकार उसी तय कीमत पर किसानों से फसल ख़रीदती है ताकि किसानों का फसल का नुक़सान से बचाया जा सके.
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अब आते है दूसरे सवाल पर की आखिर एमएसपी को लेकर किसान इतने डरे हुए क्यों है ?
एमएसपी केंद्र सरकार द्वारा इसीलिए तय की जाती है की किसानों को उनकी लागत का 50 प्रतिशत रिटर्न मिल जाए लेकिन असल में ऐसा हो नहीं पता. कई जगहों पर तो किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर भी फसल बेचनी पड़ जाती है,गौरतलब की बात ये है की एमएसपी सिर्फ एक नीति है कानून नहीं और जब इसको लेकर कोई क़ानून ही नहीं है तो फिर किस अदालत में जाकर किसान अपना हक़ मांगेंगे. सरकार चाहे तो एमएसपी कभी भी रोक भी सकती है। इसी बात से किसान एमएसपी को लेकर डरे हुए है।
तीसरा सवाल ये है की किस-किस फसल पर मिलता है एमएसपी ?
एमएसपी के अंदर 7 अनाज वाली फसलें आती हैं जो की है धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और जौ. और 5 दाल जो की हि है चना, अरहर, मूंग, उड़द और मसूर इसके बाद 7 ऑयलसीड भी है जो की है मूंग, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, नाइजर या काला तिल, कुसुम और 4 अन्य फसल जो है गन्ना, कपास, जूट और नारियाल। अब इन सब में से सिर्फ गन्ना की ही एक फसल है जिस पर कानूनी पाबंदी लागू है नहीं तो किशानो को इसके लिए भी तरसना पड़ता।
चौथा सवाल ये है की एसएसपी को लेकर किसानों की मांग क्या है ?
आंदोलनकारी किसानों की मांग है कि केंद्र की सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर ख़रीदे गए फसल को सरकार अपराध घोषित करे और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही सरकारी ख़रीद लागू रहे, साथ ही साथ दूसरे फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए। किसान संगठनो की मांग थी की किशानो को ये बात क़ानून बना कर लिखित में दी जाए.
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केंद्र सरकार ने 23 फसलों को एमएसपी के अंदर रखा है. जिनकी एमएसपी की वैल्यू साल 2020 और 21 के में 11.9 लाख करोड़ रुपए थी. लेकिन इन फसलों की बाजार में तय कीमत नहीं मिल पाई. जिसके बाद किसानों ने एसमएसपी से कम दाम जो की 9 लाख करोड़ रुपए है में अपनी सारी फसलें बेचीं थी. वहीं सरकार ने भी 2020-21 में कई फसलों को ख़रीदा था जिनमे 89.42 मीट्रिक टन धान, 43.34 मीट्रिक टन गेहूं शामिल था. जो की 253,275 करोड़ रुपए का था. अब अगर इसमें दलहन और तिलहन की फसल को भी जोड़ दे तो जो NAFED ने 21,901 करोड़ रुपए में 2019-20 और 4,948 करोड़ रुपए में 2020-21 ख़रीदा था. वहीं कपास और इससे जुड़ा कच्चा माल CCI ने 2019-20 में कुल 28,420 करोड़ रुपये और 2020-21 में कुल 26,245 करोड़ रुपये में खरीदा था. इसके इतर 2020-21 में गन्ने की पिराई 92, 000 करोड़ रुपए एमएसपी के तहत हुआ था।
अब अगर बर्तमान की बात करे तो ऐसे में एमएसपी इस समय जो सीधे पर तौर से लागू हैं, उस एमएसपी के हिसाब से 3.8 लाख करोड़ रुपए कीमत की फैसले भारत में पैदा होती है. जिनमे कानूनी तौर पर सिर्फ 23 फसलें ही शामिल है और अगर ये कानून बन जनता है तो ये पूरी फसल वापस से 5 लाख करोड़ रुपए की होजा आएगी शायद कुछ काम भी हो लेकिन मिले डाटा के अनुसार तक़रीबन पांच लाख करोड़ रुपए हो सकती है। आप इस पुरे आकलन से समझ सकते है की आखिर कृषि इस बील के समर्थन में क्यों है या नहीं ?