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हम और आदिवासी सदियों से पूरक है , पर सियासत ने हमे दिशाहीन किया :- Prasann Sagar Ji

Prasann  Sagar Ji

Prerna  Chourasia

Ranchi  Drishti  Now

झारखंड के सम्मेद शिखर पारसनाथ की सबसे ऊंची चोटी पर आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के 557 दिन का माैन व्रत शनिवार काे पूरा हो गया। वे 496 दिन तक निर्जला उपवास पर भी थे। अब मधुबन में 28 जनवरी से 3 फरवरी तक महापारणा महाप्रतिष्ठा महामहोत्सव होगा। मौन व्रत समाप्त होने से एक दिन पहले भास्कर ने उनसे पारसनाथ विवाद से लेकर अपनी तपस्या पर खास बातचीत की। उन्हाेंने कहा कि जैन और आदिवासी समाज आदिकाल से एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते। लेकिन पारसनाथ मामले में सियासी जहर घुलने से हम दिशाहीन हुए। जानिए  आचार्य श्री से बातचीत के प्रमुख अंश…

आचार्य श्री बोले- तीर्थ स्थल शुद्ध सात्विक बना रहे

विवाद पर आप क्या कहेंगे?

जैन समाज और आदिवासी समाज में वर्षों का भाईचारा है। पर छोटे से मामले में जब राजनीति का जहर घुल गया तो हम दिशाहीन हो गए। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। तीर्थ स्थल अहिंसक, शुद्ध सात्विक रहे, शेष कोई विवाद नहीं है। दो जैन मुनियों ने प्राण त्यागे, प्रदर्शन हुआ, क्या हाेना चाहिए?

जहां धर्म और तीर्थ की अस्मिता की बात आएगी, वहां जैन संत ही क्या, कोई भी अपनी कुर्बानी देगा। आदिवासी भी कह रहे हैं कि ये उनका मारंग बुरु है?

हम आपस में बैठकर बात करें तो यह ऐसी समस्या नहीं है, जितना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। तीर्थ, पर्यटन पर केंद्र व झारखंड में मामला फंसा है। कैसे सुलझेगा? जैन और आदिवासी समाज के लाेग यदि सरकार को सहमति पत्र बनाकर दें कि हम इस शाश्वत तीर्थराज को पर्यटक स्थल नहीं बनाएंगे। पारसनाथ को विकसित करना है तो धर्मक्षेत्र के तौर पर करें। हम दोनों समुदाय साथ हैं। ऐसा कर धर्म और तीर्थस्थल की पवित्रता कायम रहेगी। अन्यथा राम नाम सत्य है। लंबी साधना कैसे संभव हुई? यह तप-साधना कठिन थी। इस अवधि में मुझे कई दौर से गुजरना पड़ा। मेरे आत्मविश्वास, ईश्वरीय शक्ति और गुरुकृपा ने ही असंभव कार्य को संभव किया। 21 जुलाई 2021 से 27 जनवरी 2023 तक कभी मुंह नहीं धोया। तेल मालिश नहीं की। मात्र 19 बार शौच और 42 बार लघुशंका गए, जो एक इंसान के लिए असंभव है। सवाल तपस्या अवधि का यादगार? 26 जून 2022 का दिन यादगार रहेगा, जब मेरी सांसें रुकने वाली थी, तब ईश्वर ने नई जान डाल दी।

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