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प्रशांत किशोर का यू-टर्न– वादा टूटा या जनता की भावनाओं से खिलवाड़?

नवीन कुमार 

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने प्रशांत किशोर (PK) को राजनीति के कटघरे में खड़ा कर दिया है। जिस शख्स ने महीनों तक पूरे जोश के साथ घोषणा की थी कि “जेडीयू अगर 25 सीटें भी ले आये तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे”, वही शख्स अब नतीजों के चार दिन बाद पलट गया। जेडीयू ने तो 85 सीटें जीत लीं, लेकिन PK का संन्यास कहीं गायब हो गया। उनका कहना है कि “मैं किसी पद पर हूं ही नहीं, इस्तीफा क्यों दूं? संन्यास की बात तो टेक्निकल थी।

यह सिर्फ एक व्यक्ति का यू-टर्न नहीं, बल्कि राजनीति का वैसा चेहरा है जिसने जनता की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। चुनाव के दौरान जनता PK के उस बयान को सुनकर हंसते थे, तंज कसते थे, लेकिन कई लोग इसे गंभीरता से भी ले रहे थे। खासकर युवा और वो मतदाता जो नीतीश कुमार से त्रस्त थे, उन्हें लगा कि कम से कम एक व्यक्ति तो है जो अपनी बात पर दांव लगा रहा है। किशनगंज की सभा में PK ने माइक थामकर कहा था जेडीयू की “25 सीटें आईं तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा, लिखकर दे रहा हूं।” विपक्षी खेमे ने भी उसे हथियार बनाया, उन्होंने कहा कि देखिए PK भी कह रहे हैं नीतीश 25 पार नहीं करेंगे।

यानी जनता के बीच एक विश्वास बनाया गया था। और विश्वास जब टूटता है, तो उसे धोखा ही कहते हैं।अब नई शर्तें, नया बहाना….नतीजों के बाद PK की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो हुआ, वह हैरान करने वाला था। उन्होंने नया वादा किया “नीतीश 1.5 करोड़ महिलाओं को 2-2 लाख रुपये दे दें, तो मैं संन्यास ले लूंगा”। यह क्या है? गोलपोस्ट बदलना? या जनता को यह दिखाना कि “मैं तो वादा निभाने को तैयार हूं, बस शर्तें थोड़ी और कड़ी कर लो”?

यह वही प्रशांत किशोर हैं जो कभी नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अमरिंदर सिंह और स्टालिन के लिए चुनावी रणनीति बनाते थे। वे जानते हैं कि राजनीति में शब्दों का कितना वजन होता है। फिर भी उन्होंने एक ऐसा वादा किया जो जानबूझकर तोड़ने के लिए था। यह सिर्फ PK की हार नहीं, जनता की उम्मीद की हार है। बिहार के युवा, खासकर वे जो जाति और पारंपरिक राजनीति से ऊब चुके थे, PK में एक नया विकल्प देख रहे थे। जन सुराज के नाम पर उन्होंने सैकड़ों किलोमीटर पैदल यात्रा की, हजारों पदयात्राएं कीं, गांव-गांव जाकर लोगों को जोड़ा। लेकिन जब अपनी बात पर कायम रहने का वक्त आया, तो वे पीछे हट गए।

P K का वादा एक संदेश है कि राजनीति में “बड़ी-बड़ी बातें करना तो आसान है,लेकिन उन पर खरा उतरना उतना ही मुश्किल है। सवाल यह है कि आखिर यह कैसी राजनीति? सवाल यह भी है कि जनता आखिर किसपर भरोसा करें? क्या भरोसे की राजनीति भी खत्म हो गई?प्रशांत किशोर ने साबित कर दिया कि “राजनीति आखिर जो न कराए” वाला पुराना मुहावरा आज भी जिंदा है। वादे करना, शर्तें रखना, फिर शर्तें बदल देना, यही आज की राजनीति का नया फॉर्मूला बन गया है। जिस व्यक्ति ने दूसरों को “क्रेडिबिलिटी” सिखाई, आज खुद क्रेडिबिलिटी के संकट में है।

बिहार की जनता ने PK को 243 में से एक भी सीट नहीं दी। शायद इसलिए कि जनता अब वादों से नहीं, काम से प्रभावित होती है। और जो व्यक्ति अपने एक साफ-सुथरे वादे पर भी मुकर जाए, उससे भरोसे की उम्मीद करना बेमानी है। कुल मिलाकर प्रशांत किशोर का संन्यास वाला वादा महज एक चुनावी जुमला निकला। उनका यू-टर्न निजी हार से ज्यादा, बिहार के उस युवा का अपमान है जो उनमें नया भरोसा देख रहा था।

राजनीति में पलटी मारना नई बात नहीं, लेकिन जिसने “नई राजनीति” का झंडा उठाया था, उसका इतनी जल्दी पलट जाना – यह सचमुच दुखद है। जनता सब देख रही है, याद रखेगी भी। 2025 का यह चुनाव PK के लिए सिर्फ हार नहीं, बल्कि उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।

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