Siberian Bird

एक पक्षी जो थाना परिसर को चुनता है अपना आशियाना , हर साल हजारो किलोमीटर दुरी तय कर पहुँचता है थाने में (siberian bird)

siberian bird

झारखण्ड के एक थाने  में होता है पक्षियों का डेरा  जी हाँ  अमूमन आम लोग थाना जाने से भी कतराते है लेकिन एक ऐसा पक्षी है जिसे थाने में  ही सुरक्षा की गारंटी महसूस होती है इसलिए हर साल हजारो किलोमीटर की सफर तय कर यह पक्षी डालते है थाने में डेरा , फिर घोसला बनाते है और चैन से रहते है।  यह सब कुछ होता है झारखण्ड के पाकुड़ जिले के थाने में यही वजह है की इस साल भी हर साल की भांति इस साल भी साइबेरियन पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर स्थानीय थाना परिसर स्थित पेड़ों को अपना आशियाना बनाने के लिए घोंसलें का निर्माण करने में जुट गए हैं। साथ ही भोजन के लिए नदी किनारे पहुंचकर घोघा, छोटी-छोटी मछली सहित अन्य कीड़े मकौड़े को खाकर अपना जीवन-यापन करते हैं

अत्यधिक ठंड के कारण इन पक्षियों के देशों में जब पानी जमने की शुरूआत होने लगती है, उससे पहले पानी व नदी किनारे रहने वाले पक्षी लंबी यात्रा पर निकल पड़ते हैं। ओर ऐसी जगह पर पहुंचते है जहां उनके रहने व खाने के लिए मौसम के साथ साथ परिस्थितियां भी अनुकूल हो।  इस यात्रा के दौरान आंधी तूफान सहित अन्य कई कारणों से कई पक्षियों की जान भी चली जाती है साइबेरियन पक्षी एक ऐसा पक्षी होता है। जो हवा में भी उड़ता है और पानी में भी तैरता है। जिसका रंग सफेद होता है। चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं।

साइबेरिया  बहुत ही ठंडी जगह है। ऐसे में ज्यादा ठंड की वजह से इन पंछियों का जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है। इश्लिये ये पक्षी जून के महीने में भारत के अलग-अलग इलाकों में चले आते हैं। बताया जाता है कि यहां वे प्रजनन भी करते हैं। वैसे इनलोगो को आम लोगो से भी खतरा महसूस होता है कई शिकारी इनका शिकार भी करते है कई ग्रामीणों का मानना है कि साइबेरियन पक्षियों के आने से हमेशा मानसून अच्छी होती है। ये पक्षी हर साल जून के महीने में इस क्षेत्र में पहुंच जाते है। ओर करीब छः महीने यहां रहने के बाद यहां से चले जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मानसून के आगमन के 10-15 दिन पहले आते है। इसलिए  इन्हें मानसून के आगमन के सूचक के रूप में भी जाना जाता है।

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