सिमडेगा की महिलाएं बनीं वन-आधारित उद्यम की अगुवा, “सोना बुरु” आत्मनिर्भरता की गाथा लिख रही महिला मंडल
शंभू कुमार सिंह
झारखंड के सुदूर आदिवासी जिले सिमडेगा से एक प्रेरणादायक मिसाल सामने आई है, जहां महिलाओं के नेतृत्व में संचालित **सोना बुरु जंगल प्रोड्यूसर कंपनी** ने आत्मनिर्भरता और आर्थिक सशक्तिकरण की नई कहानी लिखी है। इस कंपनी ने 44 गाँवों की 500 से अधिक महिलाओं की भागीदारी से 24.5 मीट्रिक टन साल बीज का सफल व्यापार किया, जिससे ₹7.5 लाख का कारोबार हुआ। यह पहल न केवल महिलाओं की आर्थिक उन्नति का प्रतीक है, बल्कि वन-आधारित उद्यमशीलता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम भी है।
महिला स्वयंसेवी नेत्री अगुस्तिना सोरेंग ने प्राकृतिक शखुआ की डाली से ग्रीन सिग्नल देकर साल बीज की पहली खेप को एएके इंडिया के लिए रवाना किया। इस प्रक्रिया में फारमार्ट ने सप्लाई चेन और पूंजी सहयोगी की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महज एक महीने के भीतर कंपनी का पंजीकरण, जीएसटी, बैंक खाता संचालन और निदेशक महिलाओं के लिए वित्तीय प्रशिक्षण इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) की मदद से पूरा हुआ। यह पहल आईएसबी के **सुलभा कार्यक्रम** के तहत संचालित की जा रही है।
कंपनी की अध्यक्ष सुबर्दानी लुगुन ने कहा, “यह तो बस शुरुआत है। हमारा उद्देश्य लघु वन उपज को उचित बाजार से जोड़ना और महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना है।” इस मॉडल की खासियत यह रही कि।वन अधिकार अधिनियम के तहत गठित सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समितियों ने सक्रिय सहयोग दिया। इन समितियों के जरिए साल बीज का टिकाऊ संग्रहण हुआ और बिक्री से प्राप्त राशि का एक हिस्सा **ग्राम सभा** को रॉयल्टी के रूप में दिया जाएगा, जो स्थानीय स्वशासन को मजबूती प्रदान करेगा।
आईएसबी के प्रोफेसर अश्विनी छात्रे ने इसे वन-आधारित महिला उद्यमशीलता का नया युग बताया। वहीं, फारमार्ट के सीईओ अलेख संघेरा और एएके इंडिया के अनुभव श्रीवास्तव ने स्थानीय स्रोतों से पारदर्शी व्यापार को भविष्य की दिशा करार दिया। जमीनी कार्यकर्ता अगुस्तिना सोरेंग इस पहल को सिमडेगा के अन्य क्षेत्रों में विस्तार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
सोना बुरु जंगल प्रोड्यूसर कंपनी का यह प्रयास न केवल महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि वन संरक्षण और टिकाऊ आजीविका के क्षेत्र में भी एक मिसाल पेश कर रहा है। यह मॉडल विकसित भारत के सपने को साकार करने की दिशा में एक मजबूत कदम है, जो ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने का संदेश दे रहा है।