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सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर एक्शन पर कड़ी टिप्पणी प्रशासनिक अधिकारी जज नहीं हो सकते फैसला सुनाना कोर्ट का काम है

पूरे देश में जिस तरह बुलडोजर एक्शन पर बवाल मचा हुआ था उसके बाद से कई मुस्लिम संगठनों ने मिलकर बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तक-तक आया था ऐसे में देशभर में बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई भी सरकार मनमानी नहीं कर सकती है और न ही मनमाने तरीके से किसी की संपत्ति छीनी जा सकती है।

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बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला आ गया है सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर फैसला देते हुए यह कहा है कि बुलडोजर एक्शन कहीं से भी जायज नहीं है ।
प्रशासनिक अधिकारी जज नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी कि की कोई भी व्यक्ति पाई पाई जोड़कर अपना घर बनाता है और उस परिवार का अगर कोई एक व्यक्ति किसी मामले में दोषी है भी तो बुलडोजर एक्शन कर पूरे परिवार को छत से बेदखल नहीं किया जा सकता ।

अदालत ने कहा है कि सिर्फ आरोपी का घर तोड़ना संविधान के खिलाफ है। गैरकानूनी तरीके से किसी का घर तोड़ने पर अधिकारी जिम्मेदार होंगे।

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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले में फैसला सुना रही है

इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए 17 सितंबर को बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी थी।

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जाहिर है की जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई याचिकाकर्ताओं ने देश के अलग-अलग राज्यों में हो रहे बुलडोजर एक्शन के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। देश के पूर्व चीफ जस्टिस ने बीते दिनों बुलडोजर जस्टिस की कड़ी निंदा की थी और कहा था कि कानून के शासन में बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है।

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उन्होंने कहा था कि अगर इसे अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300 A के तहत संपत्ति के अधिकारी की संवैधानिक मान्यता एक डेड लेटर बनकर रह जाएगी।

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बुलडोजर कार्रवाई से संबंधित उत्तर प्रदेश के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 25 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 300ए में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

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शीर्ष अदालत ने 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में छह नवंबर को अपना फैसला सुनाया था। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को अंतरिम उपाय के तौर पर याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था। बता दें, याचिकाकर्ता का मकान एक सड़क परियोजना के लिए ढहा दिया गया था।

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