गिरिडीह के डुमरी में दिखती है गंगा जमुनी तहजीब.
Giridih, Dinesh.
गिरीडीह : गिरिडीह जिले के डुमरी में मात्र एक घर के फासले में मंदिर और मस्जिद मौजूद दोनों समुदाय आप से आपसी सामंजस स्थापित कर अपने अपने धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार कार्य को संपादित करते हैं, परंतु आज तक दोनों समुदायों के बीच कभी भी अप्रिय घटना नहीं हुई जो गंगा जमुनी तहजीब परिचय देता. बता दें कि सन 1801 ई0 से गिरिडीह के डुमरी में दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई स्थानीय लोगों के अनुसार जब यहां मंदिर बना था तब लगभग 30 से 40 किलोमीटर तक दुर्गा जी का कोई मंदिर उस दौरान नहीं था. उस समय बगोदर,धनबाद के तोपचाची प्रखण्ड, पीरटांड़ प्रखंड, बोकारो के नावाडीह प्रखण्ड से दुर्गा पूजा का उत्सव मनाने के लिए लोग अपने-अपने बैल गाड़ियों और साइकिलों के सहारे अपने परिजनों के साथ डुमरी पहुच कर दुर्गा जी का पूजन और अर्चन करने के लिए आया करते थे. बताया जाता है कि शुरुआती दौर में यहां भैंसे की बलि दी जाती थी परंतु स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब डुमरी आए तो अपने प्रवास के दौरान उन्होंने स्थानीय लोग ग्रामीणों को समझा-बुझाकर बलि प्रथा को बंद करवाया था, तब से लोग यहां वैष्णवी पूजा करने लगे. बताया जाता है कि महात्मा गांधी के उपदेशों से प्रेरित होकर लोगों ने पूजा व्यवस्था में कई परिवर्तन किए जिससे सामाजिक सद्भाव आज भी बिखरा नहीं है.
आजादी के काल में यहां खपरैल का मंदिर बनाया गया था, कुछ दिनों के बाद डुमरी थाना में एक मुस्लिम दरोगा निसार हुसैन ने खपरैल के जगह में पक्का मंदिर औऱ मस्जिद दोनों बनवाया. उस दौरान ग्रामीणों के सहयोग से चुना सुर्खी से पक्का मंडप का निर्माण कराकर संप्रदायिक सौहार्द का मिसाल पेश किया. यह मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ- साथ सोने का टीका अंगूठी नथिया पहनाकर माता पूजन किया जाता है. रोज शाम को भजन में शामिल होने व दीपक जलाने के लिए महिलाएं पहुंचती है.
जहां एक तरफ मंदिर में घंटी बजती है तो दूसरी तरफ मस्जिद में अजान होता है. डुमरी के इतिहास में आज तक दोनों मजहब के लोग मंदिर और मस्जिद को लेकर कभी भी उन्माद नहीं फैलाया, तथा गंगा जमुनी तहजीब का परिचय देते हुए एक दूसरे के धार्मिक कार्यों में सहयोग करते आ रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि डुमरी के निवासी चाहे मुस्लिम हो या हिंदू एक दूसरे का सम्मान करना नहीं छोड़ते हैं, तथा दोनों धर्मों के सामाजिक व राजनीतिक प्रतिनिधि अपने अपने स्तर से धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने वाले लोगों पर नजर रखते हैं, जिसके फलस्वरूप दोनों धर्मों में उन्माद फैलाने की गुंजाइश ही नहीं रहती. वहीं इस बार कोरोना काल होने के कारण पूजा की परंपरा नहीं रुकेगी परंतु अन्य वर्षो की भांति इस बार प्रशासनिक आदेश का पालन करते हुए भीड़ भाड़ नहीं लगाया जाएगा.