मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन(HEMANT SOREN) लगातार राजनीती की पीच पर छक्के मार रहे है! लेकिन खुद को आउट समझ रहे है ।
BY : MUKESH KUMAR
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ( HEMANT SOREN )भले ही केबिनेट से 1932 का खतियान और OBC के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण केबिनेट से पास कर चुनावी गणित तो मजबूत कर लिया है लेकिन कहीं ना कहीं उनके दिल में अभी भी राजभवन को लेकर धुकधुकी लगी हुई है। तभी तो अचानक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राजभवन पहुंच जाते है और माननीय राजयपाल रमेश बैस से आग्रह करते है की बीजेपी वाले उन्हें बेवजह ही बदनाम कर रहे है। जबकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो नियमो का हवाला देकर अपनी सफाई दी है की इस मामले में उनकी सदस्यता नहीं जा सकती है। उन्होने राज्यपाल से आग्रह किया की जल्द से जल्द राज्यपाल स्थिति साफ़ करे।
जाहिर है की खुद के नाम माइनिंग लीज के मामले में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की विधानसभा से सदस्यता समाप्त होने के शोर और राजनीति तूफान के बीच हेमंत सोरेन दिल्ली गए हुए है और दिल्ली जाने की वजह अभी तक साफ़ नहीं हो पायी है। जबकि चुनाव आयोग से पत्र आये 22 दिन होने को आये मगर राज्यपाल अभी भी चुप्पी साधे बैठे हैं। राजभवन क़ानूनी रे लेने को लेकर अभी भी स्थति साफ़ नहीं कर रहा है ऐसे में हेमंत सोरेन झारखण्ड की राजनीति की पीच पर लगातार छक्के मार रहे है लेकिन खुद को आउट समझ रहे है।
जाहिर है की पिछले दिनों यूपीए गठबंधन के नेताओं का शिष्टमंडल एक सितंबर को राजभवन जाकर राज्यपाल से मिला। तब आधिकारिक तौर पर यह खबर पुष्ट हुई कि चुनाव आयोग से राजभवन कोई पत्र आया है। शिष्टमंडल के लोगो ने बताया की को राज्यपाल ने कहा कि एक-दो दिनों में निर्णय से अवगत करा दिया जायेगा। राज्यपाल के आश्वासन को भी 14 दिन होने को आये तब जाकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद राजभवन पहुंच गए
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जानकार मान रहे हैं कि राजभवन को इस मामले में अपेक्षित कानूनी आधार नहीं मिल रहा है, खामोशी की असली वजह यही है। कहीं ऐसा न हो कि हड़बड़ी में लिया गया फैसला अदालत में टिक न सके। राजभवन नहीं चाहता कि अपरिपक्व फैसले से उसकी फजीहत हो। रांची के अनगड़ा स्थित जिस माइनिंग लीज को आधार बनाया गया है उस खनन पट्टा को आधार बनाया गया है वह पट्टा भाजपा के रघुवर सरकार के कार्यकाल में हेमन्त सोरेन के पास था। अपने नामांकन के समय भी हेमन्त सोरेन ने संपत्ति घोषणा में इसका जिक्र किया था। उस लीज का नवीकरण हुआ था जिसे विवाद उठने के बाद सरेंडर कर दिया गया।
एक छटांक भी खुदाई नहीं हुई है, बिजली कनेक्शन और जीएसटी नंबर तथा कंसेंट टू ऑपरेट भी नहीं लिया गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों के हवाले कह चुका है कि माइनिंग लीज ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला नहीं बनता।