चिट्ठी मामला( letter case ): मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हाँथ ने जोड़कर राज्यपाल और चुनाव आयोग से कहा दोष क्या है वह सार्वजनिक करे।
चिट्ठी मामला( letter case )
झारखंड के मुख्यमंत्री ने कल यानि शनिवार को पत्रकारों को प्रेस वार्ता के लिए आमंत्रित किया यूँ तो इस पत्रकार सम्म्मेलन को कोई कुछ भी सवाल मुख्यमंत्री जी से पूछ सकता था लेकिन खबर है की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन असल में इस प्रेस कांफ्रेंस के जरिये राज्यपाल पर दबाब डालना चाहते थे। सबसे पहले आप समझिये की इस सम्मलेन उन्होंने कहा क्या हेमंत सोरेन हाँथ जोड़ते हुए बोले की देश का यह पहला ऐसा मामला है जिसमे मुख्यमंत्री हाँथ जोड़कर राज्यपाल और चुनाव आयोग से कह रहा है की मुख्यमंत्री का दोष क्या है वह सार्वजनिक करे लेकिन राज्यपाल है जो सुनते ही नहीं है। शनिवार को ही वे राज्यपाल पर भड़के मगर भाषा का ध्यान रखा। राजभवन इस मामले पर अब तक निर्णय नहीं कर पाया है। जब हेमन्त सोरेन की सब्र का बांध टूटा तो उन्होंने राज्यपाल पर शनिवार को आक्रमण किया। कहा कि मैं दोषी हूं तो सजा सुनाइये। आपने कभी ऐसे आरोपी को देखा है जो खुद सजा सुनाने, फैसले का गुहार लगा रहा हो। मर्यादित तरीके से ही कहा कि यदि चुनाव आयोग ने सजा सुनाई हो, मैं सजा का पात्र हूं और संवैधानिक पद पर बैठकर फैसले ले रहा हूं तो उन फैसलों की जिम्मेदारी किस पर है। राज्यपाल सजा न सुनाकर जो भ्रम की स्थिति बनाये हुए हैं मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं है। चुनाव आयोग या राजभवन यही बताये कि फैसला नहीं बता पा रहे हैं तो उसके पीछे की वजह क्या है।
हेमंत सोरेन ने कई फैसलों से जनता को चौकाया
जानकार मानते हैं कि इस पूरे प्रकरण में राजभवन की खामोशी से हेमन्त सोरेन और तेजी से मजबूत होकर उभरे हैं। राजभवन की खामोशी के कारण इस प्रकरण में आक्रामक रही भाजपा बैकफुट पर आ गई। जब सरकार चंद दिनों की मेहमान होती है तो मुख्यमंत्री महत्वपूर्ण फाइलों को निपटा लेना चाहते हैं। हेमन्त सोरेन ने भी मौके का फायदा उठाया। पुरानी पेंशन योजना, पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण, 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति, आदिवासी, मूलवासी के तीन दशक से जारी आंदोलन- नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज और इसी तरह के कई और जनता के बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाले फैसले कर डाले जो शायद पूरे कार्यकाल में कर पाते।
राजभवन में ख़ामोशी और सन्नाटा
बहरहाल इस मामले में राजभवन की खामोशी से राज्यपाल की भद पिट रही है। भाजपा के नेता यह जरूर कह रहे हैं कि राज्यपाल चुनाव आयोग के मंतव्य पर कब फैसला सुनायेंगे इसकी कोई सीमा तय नहीं है। मगर राजभवन की खामोशी के कारण जनता की नजर में इरादे पर शक की सुई घूम रही है। इस गंभीर मसले पर राज्यपाल की हल्की टिप्पणी सामने आयी लिफाफे में गोंद कस के लगा है।
हेमंत सोरेन खूब हुए थे हकलान
हेमन्त सोरेन भी अपने विधायकों को एकजुट रखने की कवायद और खूंटी से रायपुर तक की यात्रा कराते रहे। जनता देखती रही। बंद लिफाफे का मजमून अब तक सार्वजनिक नहीं होने पर जनता के मन में राजभवन के प्रति शक का भाव पैदा होना अस्वाभाविक नहीं है। चुनाव आयोग का मंतव्य क्या है इसे लेकर हेमन्त सोरेन के अधिवक्ता ने चुनाव आयोग से याचना की, राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए यूपीए विधायकों ने राजभवन जाकर राज्यपाल से फैसले का आग्रह किया, तब राज्यपाल ने दो-तीन दिनों के भीतर निर्णय का भरोसा दिलाया। निर्णय नहीं आया तो खुद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन राजभवन पहुंच राज्यपाल से मुलाकात की और आयोग का पत्र मांगा। झामुमो ने सूचना के अधिकार के तहत भी आवेदन किया मगर नतीजा शून्य है। ऐसे में हेमंत सोरेन का गुस्सा गैर वाजिब नहीं है।