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जानिए भगवान धन्वंतरि को –

वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय की कलम से

अखबारों और न्यूज़ चैनलों के लिए यह खबर न हो लेकिन यह सुखद समाचार है कि रायपुर के एम्स में 18 विभागों के डॉक्टरों ने मिलकर धन्वंतरि जयंती मनाई । यह खबर उनके लिए अपाच्य होगा जिनको भारतीय मनीषा पर यकीन नही क्योंकि उनके हिसाब से यह साम्प्रदायिक बात है और इस खबर से उनका पेट जरूर मरोड़ेगा । अब इस बातपर वे डॉक्टरों को रूढ़िवादी भी ठहरा सकते हैं। लेकिन सच तो यह है कि आधुनिक एलोपैथ के सभी हथकंडे आयुर्वेद में वर्षो पहले ही आजमाए जा चुके हैं ।ऋषि पराशर ने तो बाकायदा अपना लैब भी बना रखा था जो अलग अलग रसायनों का क्या उपयोग किया जा सकता है इसपर शोध करते थे। दिल्ली के अक्षर धाम मंदिर में इसकी झांकी भी देख सकते हैं ।
ऋग्वेद जिसका रचनाकाल ईसा के 3000 से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना गया है, के इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त बताए गए है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थकार आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है। हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि औऱ उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि , हारीत), सुश्रुत और चरक।
सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा विज्ञान को एक आयाम दिया । बायपास सर्जरी तक मे सुश्रुत को महारत थी। धन्वंतरि का जन्म लगभग 7 हजार ईसापूर्व के बीच हुआ था । वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे । उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण अनुसन्धान किये थे । उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें एकत्रित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए । दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था ।धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है । उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है ।अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था ।
धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं । रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता , अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है । बाद में धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं । जिस तरह इंजीनियर को भारतीय ग्रंथो में विश्वकर्मा की उपाधि मिली उसी तरह भारतीय चिकित्सको को धन्वन्तरि की उपाधि मिलने लगी । आयुर्वेद के आचार्य का प्रचलन तो बहुत बाद में आया । ऐसे में एम्स के डॉक्टरों का रायपुर में अपने पूर्वजो के प्रति श्रद्धा जाहिर करने की बात सुखद है। धनतेरस पर चमच , झाड़ू , बरतन , टीवी , गाड़ी , खरीदने से बेहतर है कि स्वास्थ्य के देवता की पूजा करें ।

नोट –ये लेखक के निजी विचाकर है

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