बड़े कांटे है इस राह में ठाकुर
झारखंड में कांग्रेस पार्टी ने नए चेहरों पर दाव खेला है . हलाकि इस फेरबदल में आदिवासी होतो का भी अच्छा धयान रखा गया है , यह भी जानकारी मिल रही है कि बहुत जल्द झारखंड कांग्रेस में बड़े पैमाने पर सफाई अभियान चलाया जायेगा. बहरहाल कांग्रेस के नए अध्यक्ष राजेश ठाकुर बनाए गए हैं और सांसद गीता कोड़ा, विधायक बंधु तिर्की, पूर्व मंत्री जलेश्वर महतो और शहजादा अनवर को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. पिछले दो दशक से कांग्रेस में जो परिपाटी देखने को मिल रही है उस हिसाब से राजेश ठाकुर को झारखंड कांग्रेस का ताज तो मिल गया है लेकिन उनके समक्ष चुनौतियां भी अपार हैं.
चुनौती संगठन विस्तार की
राजेश ठाकुर के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है संगठन का विस्तार. झारखंड कांग्रेस में संगठन का विस्तार करना कितनी बड़ी चुनौती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी के दो-दो प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो गया लेकिन वे कार्यसमिति का गठन नहीं कर सके. जब कभी भी कार्यसमिति के गठन को लेकर सुगबुगाहट हुई पार्टी में ताना-तानी शुरू हो जाती थी. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यह देखा गया है कि जब भी संगठन का विस्तार हुआ है पार्टी के भीतर जबरदस्त तरीके से हंगामा हुआ है. कई बार तो हाथापाई तक की नौबत आई है. पार्टी में कुछ नेता तो ऐसे हैं जो विरोध करने के लिए ही जाने जाते हैं. यहां तक कि उन्हें पार्टी में बड़ा पद भी दिया जाता है तब भी उनका विरोधी तेवर कायम रहता है. राजेश ठाकुर के समक्ष यह चुनौती बड़ी है कि वे कैसे संगठनिक विस्तार करते हैं और वैसे नेता जो कांग्रेस को अपनी जागीर समझकर काम करते हैं उनपर अंकुश लगाते हैं.
वरिष्ठ नेता को मानना
राजेश ठाकुर के समक्ष पार्टी के बड़े नेताओं को साधना भी एक बड़ी चुनौती है. आलाकमान ने रामेश्वर उरांव को हटाकर ठाकुर को प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेवारी दी है. जाहिर है रामेश्वर गुट को यह पच नहीं रहा होगा. पहले भी प्रदेश कार्यालय में रामेश्वर गुट और राजेश ठाकुर के बीच तनातनी हो चुकी है. एक दूसरे को देख लेने तक की भी नौबत आई थी. अब राजेश ठाकुर कैसे उस गुट को हैंडल करते हैं यह देखना दिलचस्प होगा. साथ ही राजेश ठाकुर के समक्ष सुबोधकांत सहाय, डॉ अजय कुमार, धीरज साहू, आलमगीर आलम, दीपिका पाण्डेय, इरफ़ान अंसारी, केशव महतो कमलेश सरीखे नेताओं के लोगों को भी साधना होगा. मालूम हो कि सुबोधकांत सहाय का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए उछाला जा रहा था. इसके आलावा इरफ़ान अंसारी और केशव महतो कमलेश भी प्रदेश अध्यक्ष की लाइन में थे. लेकिन इन सभी पर राजेश ठाकुर भारी पड़े. प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह की नजदीकी का फ़ायदा राजेश ठाकुर को मिला है और यह बात भी साफ़ हो गयी है कि आज भी आलाकमान के समक्ष सबसे मजबूत स्थिति में आरपीएन सिंह ही हैं. पार्टी के भीतर प्रदेश प्रभारी के लाख विरोध के बावजूद भी संगठन के फेरबदल में उनकी ही चली है.
सभी छोटी बड़ी जातियों पर ध्यान
बुधवार को जो फेरबदल प्रदेश कांग्रेस में हुआ है उसमें आलाकमान ने सभी वर्गों को साधने का प्रयास किया है. सवर्ण को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है तो कार्यकारी अध्यक्ष में दो आदिवासी, एक पिछड़ी जाति और एक अल्पसंख्यक को जगह दी गयी है. मिशन 2024 को ध्यान में रखकर आलाकमान ने यह कदम उठाया है. अब सबकी निगाहें कार्यसमिति के गठन और जिला अध्यक्षों के चयन पर है. जानकारी के अनुसार कांग्रेस का ध्यान राज्य के अल्पसंख्यकों के साथ अगड़ी और पिछड़ी जाति पर है. विधायक दल के नेता अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. विधानसभा में सचेतक का पद भी अल्पसंख्यक और अगड़ी जाति के जिम्मे है. ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि संगठन के विस्तार में भी इन्हीं समुदाय को तवज्जो दी जायेगी.