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रजरप्पा मंदिर नए साल के आगमन पर पर्यटकों को करती है आकर्षित.

रामगढ़, आकाश शर्मा.

रामगढ़ : राज्य ही नहीं पूरे भारत वर्ष में रजरप्पा मंदिर की एक अलग पहचान है. यह प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थल के साथ-साथ पर्यटन के क्षेत्र में भी काफी मशहूर है. खास कर यहां दिसंबर व जनवरी माह में पिकनिक मनाने वालों की जमावड़ा लगा रहता है. जहां दामोदर व भैरवी के अद्भुत संगम स्थल लोगों को आकर्षित करता है. वहीं मंदिर के चारों ओर घने जंगल इसे और मनमोहक बनाता है. दिसंबर के अंतिम सप्ताह से ही राज्य के अलावे पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, ओड़िसा सहित कई प्रदेशों से लोग यहां पहुंचने लगते है. खास कर नये वर्ष में लोग मां छिन्नमस्तिके देवी की पूजा-अर्चना कर नववर्ष की शुरुआत करते है.

वहीं पिकनिक मना कर जश्न भी मनाते है. मंदिर पहुंचने से चार किमी पूर्व ही घने जंगल से लोग गुजरते है, यह दृश्य देख लोग रोमांचित होते है. मंदिर क्षेत्र के मनोरम वादियां भी सैलानियों की पहली पसंद बनी है. यहां पर भैरवी-दामोदर संगम स्थल में चट्टानों के बीच कलकल करती नदी के पानी में पर्यटक अपने परिजनों के साथ नौका विहार का आनंद भी लेते है. मंदिर के चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखरी हुई है. इसके अलावे लोग रजरप्पा मंदिर से एक किमी दूरी पर अवस्थित गर्मकुंड में भी स्नान करते है. मान्यता है कि यहां स्नान करने से चर्म रोग जैसी बीमारियां दूर होती है. रजरप्पा स्थित अष्ट मंदिर, सूर्य मंदिर, 20 फिट का शिवलिंग भी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. इन मंदिरों में भी लोग पूजा-अर्चना करते है.

साक्षात विराजमान है मां छिन्नमस्तिके देवी, जानें मां के नाम की सार्थकता
रजरप्पा मंदिर स्थित भैरवी-दामोदर के संगम स्थल पर मां छिन्नमस्तिके देवी साक्षात विराजमान है. यहां मां छिन्नमस्तिके देवी का जो स्वरूप है, उसमें एक कमल पुष्प पर कामदेव-क्रिया में लीन है. इसके ऊपर मां छिन्नमस्तके मुंडमाला युक्त खड़ी हैं. जिन्होंने स्वयं के खडग से अपना शीश काट लिया है. उनके एक हाथ में रक्तरंजीत खडग व दूसरे हाथ में कटा मस्तक, गर्दन से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं. इसकी एक धारा स्वयं के शीश के मुंह में तथा दो धाराएं उनके दोनों ओर खड़ी हुई योगनियों के मुंह में प्रविष्ट हो रही है. इसी स्वरूप के कारण वह मां छिन्नमस्तिके देवी के नाम से जानी जाती है. रजरप्पा मंदिर में काली पूजा अमावस्या रात की विशेष महत्व है. इस दिन यहां श्रद्धालु, साधक रातभर मां छिन्नमस्तिके व दक्षिणेश्वर काली मां की पूजा करते है. वहीं यहां मुंडन का भी अलग महत्व है. मुंडन तिथि पर हजारों लोग रजरप्पा मंदिर पहुंच कर बकरे की बलि देते है और अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाते है.

ऐसे पहुंचे रजरप्पा मंदिर
रजरप्पा मंदिर राजधानी रांची से 70 किमी पर अवस्थित है. वहीं रामगढ़ जिला मुख्यालय से 22 किमी है. यहां सैलानियों के खाने व ठहरने के लिए होटल, रेस्टूरेंट की सुविधा भी है. खास कर पर्यटकों के ठहरने के लिए रजरप्पा मंदिर प्रक्षेत्र में एसी व नॉन एसी होटल की सुविधा है. वहीं चितरपुर में वसुंधरा वाटिका व सोंढ़ में रोशन लाइन होटल में भी लोग ठहर सकते है. वहीं गोला में भी ठहरने के लिए कई होटल है. रामगढ़-बोकारो सड़र्क मार्ग के चितरपुर व गोला की ओर से रजरप्पा मंदिर पहुंचा जा सकता है. धनबाद, बोकारो की ओर से पहुंचने वाले लोग गोला की ओर से मंदिर पहुंच सकते है. नजदीकी रेलवे स्टेशन बड़कीपोना, गोला, रामगढ़, बरकाकाना, रांची रोड है.

रोजगार की है असीम संभावनाएं
वैसे तो रजरप्पा मंदिर प्रक्षेत्र में एक हजार से अधिक दुकानें है. जहां श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आने के बाद रोजगार में बढ़ोतरी होती है. खास कर दिसंबर व जनवरी माह में पर्यटकों के पहुंचने से यह क्षेत्र गुलजार रहता है. यहां फूल-प्रसाद, मनीहारी, खिलौना, होटल सहित कई दुकानें है. वहीं दैनिक मजदूरों को भी यहां रोजगार मिलता है.

आस-पास के पिकनिक स्पॉट
रजरप्पा मंदिर के अलावे चितरपुर बड़कीपोना के पोना पर्वत धाम के बघलतवा, कुंदरुकला के मंगरीढीपा, दामोदर नद, कोचीनाला, वामनधारा सहित कई पिकनिक स्पॉटों में भी लोग नववर्ष पर पिकनिक मनाने के लिए जुटते है.

मुख्य बातें
*रजरप्पा में जुटते है हजारों की संख्या में सैलानी
*नौका विहार का उठाते है लुत्फ
*आकर्षक है दामोदर -भैरवी का संगम स्थल
*गर्मकुंड में नहाते है श्रद्धालु
*प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा है रजरप्पा मंदिर
*राजधानी से 70 किमी दूर अवस्थित है रजरप्पा
*एसी व नॉन एसी होटल का हुआ है निर्माण

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