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Ranchi News:-अप्लास्टिक एनीमिया की तीन मरीज स्वस्थ होकर लौटीं घर, तीन का चल रहा इलाज

Ranchi News

प्रेरणा चौरसिया

Drishti  Now  Ranchi

रांची सदर अस्पताल में पहली बार बुधवार को अप्लास्टिक एनीमिया के 3 रोगियों को सफल इलाज के बाद डिस्चार्ज कर घर भेजा गया। इनमें 60 वर्षीय उर्मिला देवी, 44 साल की मनवा देवी और 28 साल की मीना देवी हैं। हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक रंजन ने बताया कि तीनों की मरीजों को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था।

जांच करने पर गंभीर पैनसाइटोपीनिया का पता चला। मरीजों का डब्ल्यूबीसी काउंट और न्यूट्रोफिल की संख्या 300 से कम थी। प्लेटलेट काउंट भी 20 हजार से कम था। साथ ही हीमोग्लोबिन भी काफी कम थी। बोनमैरो टेस्ट और बायोप्सी के बाद इनमें अप्लास्टिक एनीमिया की पुष्टि हुई थी।

डॉ. अभिषेक ने बताया कि अप्लास्टिक एनीमिया के 3 और रोगियों का उपचार सदर अस्पताल में चल रहा है। यह बीमारी खून की कमी से जुड़ी है, जिसमें शरीर में रक्त कोशिकाओं का बनना कम हो जाता है। इस रोग के लक्षण एकाएक सामने नहीं आते, लेकिन अगर इस रोग को अधिक समय तक इग्नोर किया जाए तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं और व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।

अप्लास्टिक एनीमिया का इलाज करने वाला पहला जिला अस्पताल

सिविल सर्जन डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि इस गंभीर बीमारी का इलाज देश भर में सिर्फ 7 से 8 चिकित्सा संस्थानों में ही उपलब्ध है। वहीं रांची सदर अस्पताल देश का पहला सरकारी जिला अस्पताल बन गया है, जहां इसकी शुरुआत हुई है। साथ ही देशभर में यह पहला अस्पताल है, जहां आयुष्मान योजना के तहत इसका नि:शुल्क उपचार होगा।

सिविल सर्जन के अनुसार, प्राइवेट अस्पतालों में उपचार के लिए रोगियों को 15 से 20 लाख तक खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, एम्स दिल्ली में भी इलाज के लिए 12 से 15 लाख खर्च करने पड़ते हैं।

जानिए कितनी खतरनाक यह बीमारी तत्काल इलाज नहीं तो एक माह में मौत

झारखंड के एकलौते आंको हिमेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक रंजन ने बताया कि अप्लास्टिक एनीमिया की पुष्टि के महज कुछ ही दिनों या अधिकतम एक माह में मरीज की मौत हो जाती है। चूंकि, इलाज इतना महंगा है और कई राज्यों में सुविधा भी नहीं है, इसलिए इलाज में अक्सर देरी हो जाती है।

समय पर इलाज हो तो बाेनमेरो ट्रांसप्लांट की जरूरत भी नही पड़ेगी। हॉर्स एटीजी (घोड़े की एंटीबॉडी) से ही 70 से 80% रोगी की जान बचाई जा सकती है। अस्पताल में भर्ती हाेने के बाद मरीजाें को 3 महीने डॉक्टरों की निगरानी में भर्ती रखा जाता है, जबकि हॉर्स एटीजी की 32 डोज लेनी जरूरी है।

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