झारखंड के सरकारी स्कूलों की कड़वी हकीकत: जर्जर भवनों और जानलेवा जोखिमों के बीच पढ़ाई को मजबूर बच्चे ….देखे विडीओ
झारखंड के सरकारी स्कूलों की कड़वी हकीकत: जर्जर भवनों और जानलेवा जोखिमों के बीच पढ़ाई को मजबूर बच्चे ….देखे विडीओ
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!रांची के पिस्का मोड़ में एक स्कूल की छत गिरी और एक व्यक्ति की मौत हो गयी । उसके बाद हम आपको झारखंड में स्कूलों का हाल और बच्चो की परेशानियां सबूत के साथ दिखाएंगे।
झारखंड के सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सिमडेगा, चतरा, और धनबाद जैसे जिलों में जर्जर स्कूल भवनों, टूटी छतों और असुरक्षित रास्तों ने बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल दिया है। ये स्कूल, जो भविष्य की नींव तैयार करने का केंद्र होना चाहिए, आज बच्चों के लिए जानलेवा जोखिम बन गए हैं।
सिमडेगा: बोरी बिछाकर और नाले पार कर पढ़ाई
सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड अंतर्गत बिंटुका पंचायत के सिकरोम पहान टोली गांव में उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय की हालत बद से बदतर हो चुकी है। जर्जर भवन में पढ़ाई असंभव होने के कारण बच्चे शिक्षक के निजी घर में बोरी बिछाकर पढ़ने को मजबूर हैं। वहीं, साहुबेड़ा पंचायत के हुरपी गंझू टोली में स्कूल की छत टूटकर गिर रही है, जिसके चलते बच्चे खुले बरामदे में पढ़ाई कर रहे हैं। इसके अलावा, स्कूल जाने के लिए बच्चों को नाले पार करने पड़ते हैं, जो हर पल दुर्घटना को न्योता देता है।

धनबाद: टूटे छज्जे और टपकती छतों के बीच डर
धनबाद के राजकीय डीएवी उच्च विद्यालय टासरा की स्थिति भी कम चिंताजनक नहीं है। यहाँ कई कक्षाओं के छज्जे टूट चुके हैं और छतों से पानी टपकता है। बच्चे बताते हैं, “जब छत से प्लास्टर गिरता है, हम डर के मारे बेंच को इधर-उधर खींच लेते हैं।” जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर इन बच्चों का भविष्य अनिश्चितता के साये में है।
चतरा: नदी पार कर स्कूल जाने की मजबूरी
चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड के हिंदीयखुर्द गांव में बच्चे स्कूल पहुँचने के लिए नदी पार करने को विवश हैं। बरसात के मौसम में यह जोखिम और बढ़ जाता है, फिर भी शिक्षा की चाह में ये नन्हे बच्चे हर दिन अपनी जान को हथेली पर रखकर स्कूल जाते हैं।
दुमका: डर के साये में शिक्षा
दुमका के चांदोडीह और हरिपुर के स्कूलों में भी यही हाल है। जर्जर इमारतों में पढ़ने वाले बच्चे हर पल इस डर में जीते हैं कि कब छत का कोई हिस्सा उनके ऊपर गिर पड़े। फिर भी, शिक्षा के प्रति उनकी ललक उन्हें इन खतरनाक परिस्थितियों में स्कूल खींच लाती है।
जाहिर है झारखंड के इन स्कूलों की स्थिति न केवल बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार पर भी सवाल उठाती है। सरकार और प्रशासन को तत्काल इन जर्जर भवनों की मरम्मत, सुरक्षित स्कूलों का निर्माण और बच्चों के लिए सुरक्षित रास्तों की व्यवस्था करनी चाहिए। शिक्षा का मंदिर बच्चों के लिए अभिशाप नहीं, बल्कि आशा का केंद्र होना चाहिए।





