brahmacharini mata 17

नवरात्रि का दूसरा दिन माता का दूसरा स्वरूप : “माँ ब्रह्मचारिणी”

Team Drishti,

नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है. इस रूप में देवी को समस्त विद्याओं का ज्ञाता माना गया है. देवी ब्रह्मचारिणी भवानी माँ जगदम्बा का दूसरा स्वरुप है. ब्रह्मचारिणी ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली. ब्रह्माण्ड को जन्म देने के कारण ही देवी के दूसरे स्वरुप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. देवी के ब्रह्मचारिणी रूप में ब्रह्मा जी की शक्ति समाई हुई है. माना जाता है कि सृष्टी कि उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी ने मनुष्यों को जन्म दिया, समय बीतता रहा  लेकिन सृष्टी का विस्तार नहीं हो सका. ब्रह्मा जी भी अचम्भे में पड़ गए. देवताओं के सभी प्रयास व्यर्थ होने लगे. सारे देवता निराश हो उठें तब ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है. भोले शंकर बोले कि बिना देवी शक्ति के सृष्टी का विस्तार संभव नहीं है. सृष्टी का विस्तार हो सके इसके लिए माँ जगदम्बा का आशीर्वाद लेना होगा, उन्हें प्रसन्न करना होगा. देवता माँ भवानी के शरण में गए, तब देवी ने सृष्टी का विस्तार किया, उसके बाद से ही नारी शक्ति को माँ का स्थान मिला और गर्भ धारण करके शिशु जन्म कि नीव पड़ी. हर बच्चे में 16 गुण होते हैं और माता पिता के 42 गुण होते हैं.  जिसमें से ३६ गुण माता के माने जातें हैं.

maa brahmacharini 1569810274

देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है. माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी. यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं. मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है. देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं. इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित साधक माँ ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है.

maa brahmacharini 1569811124

ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था. एक हाथ में रुद्राक्ष की माला और दुसरे हाथ में कमंडल धारण करने वाली देवी का यह ब्रह्मचारिणी स्वरुप कल्याण और मोक्ष प्रदान करने वाला है. देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना का विशेष महत्व है. माँ के इस रूप की उपासना से घर में सुख सम्पति और समृद्धि का आगमन होता है.
                   
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया. जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी. जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है. देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है. इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र में मन को स्थापित करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती है. जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है.

20201018 072906

नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है. देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है. देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है, उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें. देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें- “दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”. इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भाँति-भाँति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसन्द है. उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी”.

                           ब्रह्मचारिणी मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
       नमस्तस्यै    नमस्तस्यै     नमस्तस्यै    नमो    नम:॥
दधाना   कर   पद्माभ्याम    अक्षमाला   कमण्डलू।
       देवी       प्रसीदतु        मई       ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

                     

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share via