पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने धर्मांतरण,बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बिगुल फूंका, धर्मांतरण के खिलाफ पारंपरिक धर्म गुरुओं का साथ
पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बिगुल फूंका धर्मांतरण के खिलाफ पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन को मिला पारंपरिक धर्म गुरुओं का साथ
राजनगर, सरायकेला-खरसावाँ में आयोजित एक विशाल कार्यक्रम में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आदिवासी समाज की चिंताओं को न केवल उजागर किया, बल्कि इसके खिलाफ एक बड़े आंदोलन की नींव भी रखी। यह कार्यक्रम अमर शहीद सिदो-कान्हू की जयंती के अवसर पर आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग, पारंपरिक ग्राम प्रधान, मांझी परगना, धर्मगुरु और आम जनता शामिल हुए। इस मंच से सोरेन ने आदिवासी संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व की रक्षा के लिए एकजुटता का आह्वान किया, जिसे उपस्थित भीड़ ने दोनों हाथ उठाकर समर्थन दिया।
कार्यक्रम का प्रारंभ और आदिवासी एकता
कार्यक्रम की शुरुआत देश परगना और विभिन्न मांझी परगनाओं द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई, जो आदिवासी परंपराओं के सम्मान का प्रतीक था। मांझी परगना ने अपने संबोधन में धर्मांतरण को आदिवासी समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि यह न केवल आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर कर रहा है, बल्कि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित कर रहा है। मंच पर मौजूद हर वक्ता ने इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाई और आदिवासी समाज के सामने आए संकट से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया। यह एकता आदिवासी समाज की ताकत को दर्शाती थी, जो चम्पई सोरेन के नेतृत्व में एक बड़े आंदोलन की ओर इशारा कर रही है
चम्पाई सोरेन का संबोधन: ऐतिहासिक संदर्भ और संघर्ष की प्रेरणा
अपने संबोधन में चम्पाई सोरेन ने आदिवासी समाज के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया। उन्होंने बाबा तिलका मांझी, सिदो-कान्हू, भगवान बिरसा मुंडा, पोटो हो और टाना भगत जैसे क्रांतिकारियों का स्मरण किया, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों की अस्मिता और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। सोरेन ने कहा, “जब हमारे पूर्वजों ने अपने आत्म-सम्मान और अस्तित्व की रक्षा के लिए कभी समझौता नहीं किया, तो हम आज कैसे पीछे हट सकते हैं?” उन्होंने उपस्थित लोगों को प्रेरित करते हुए कहा कि यह समय फिर से एकजुट होकर अपने अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ने का है।
डीलिस्टिंग बिल और ऐतिहासिक उपेक्षा
सोरेन ने 1967 में तत्कालीन सांसद कार्तिक उरांव द्वारा संसद में प्रस्तुत डीलिस्टिंग बिल का उल्लेख किया। इस बिल में प्रावधान था कि जो लोग आदिवासी धर्म और संस्कृति को छोड़कर धर्मांतरण करते हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के तहत मिलने वाले आरक्षण से वंचित किया जाए। सोरेन ने बताया कि इस बिल को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संसदीय समिति को भेजा, जिसने डीलिस्टिंग की सिफारिश भी की। लेकिन इसके बावजूद, यह बिल लागू नहीं हुआ। कार्तिक उरांव ने 322 लोकसभा सांसदों और 26 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर के साथ इसे फिर से उठाने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।
सोरेन ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि 1951 की जनगणना तक आदिवासी धर्म कोड का प्रावधान था, जो आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देता था। लेकिन 1961 में कांग्रेस सरकार ने इसे हटा दिया, जिसे उन्होंने आदिवासी समाज के अधिकारों पर हमला करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि आज अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कई लोकसभा और विधानसभा सीटों पर ऐसे लोग चुनकर आ रहे हैं, जिन्होंने आदिवासी जीवनशैली और परंपराओं को त्याग दिया है। सोरेन ने मांग की कि ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
बांग्लादेशी घुसपैठ:
चम्पाई सोरेन ने बांग्लादेशी घुसपैठ को आदिवासी समाज के लिए एक और बड़ा खतरा बताया। उन्होंने संथाल परगना के साहिबगंज, पाकुड़ और भोगनाडीह जैसे क्षेत्रों का उदाहरण दिया, जहां घुसपैठियों ने न केवल आदिवासियों की जमीन हड़प ली है, बल्कि उनकी बेटियों की अस्मत पर भी खतरा पैदा किया है। उन्होंने वीर भूमि भोगनाडीह का जिक्र करते हुए कहा कि वहां आज घुसपैठियों की संख्या आदिवासियों से कई गुना अधिक हो गई है।
सोरेन ने सरायकेला-खरसावाँ के कपाली अंतर्गत बांधगोड़ा गांव का उदाहरण दिया, जहां आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन छीनी जा चुकी है। उन्होंने साहिबगंज जिले का भी जिक्र किया, जहां आदिवासियों के लिए आरक्षित जिला पार्षद और मुखिया की सीटों पर चुनी गईं कई महिलाएं आदिवासी समाज से हैं, लेकिन उनके पति गैर-आदिवासी (विशेष रूप से मुस्लिम) हैं। सोरेन ने कहा, “अगर आपने दूसरे समुदाय में विवाह किया, तो वहां खुश रहें, लेकिन हमारे समाज के अधिकारों पर अतिक्रमण न करें।”
झारखंड सरकार पर निशाना
चम्पाई सोरेन ने झारखंड सरकार को “अंधी, गूंगी और बहरी” करार देते हुए आरोप लगाया कि वह वोट बैंक की राजनीति के चलते आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को नजरअंदाज कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को न तो आदिवासियों की जमीन छीने जाने की चिंता है, न ही उनकी बेटियों की सुरक्षा की। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर धर्मांतरण और घुसपैठ को नहीं रोका गया, तो आदिवासियों के पवित्र स्थल जैसे सरना, जाहेरस्थान और देशाउली वीरान हो जाएंगे, और आदिवासी समाज का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
आंदोलन की योजना और भविष्य की रणनीति
सोरेन ने अपने आंदोलन को और व्यापक करने की बात कही। उन्होंने बताया कि बोकारो, हजारीबाग, चाकुलिया और ओडिशा में भी जल्द ही उनके कार्यक्रम आयोजित होंगे। उन्होंने दावा किया कि कुछ महीनों बाद वे संथाल परगना से 10 लाख आदिवासियों के साथ इस मुद्दे को उठाएंगे, जिसकी गूंज दिल्ली तक पहुंचेगी। उन्होंने आदिवासी समाज से अपील की कि वे एकजुट होकर इस लड़ाई में उनका साथ दें, ताकि उनकी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा हो सके।
कार्यक्रम का महत्व
इस कार्यक्रम आदिवासी समाज की एकता के साथ चम्पाई सोरेन के नेतृत्व में एक बड़े आंदोलन की तैयारी भी दिखी। आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित इस सभा में ग्राम प्रधानों, मांझी परगनाओं और धर्मगुरुओं की मौजूदगी ने इस मुद्दे की गंभीरता को और रेखांकित किया। सोरेन ने न केवल आदिवासी समाज की समस्याओं को ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में रखा, बल्कि इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने का संकल्प भी दोहराया।
जाहिर है चम्पाई सोरेन का यह संबोधन आदिवासी समाज के लिए एक आह्वान था, जिसमें उन्होंने धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा। ऐतिहासिक उदाहरणों और वर्तमान चुनौतियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए और आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। यह कार्यक्रम आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जो भविष्य में एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।