कोडरमा का एक ऐसा मंदिर जहा मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाना है वर्जित, झारखण्ड मे दिखा मां दुर्गा का अनोखा स्वरूप
कोडरमा का एक ऐसा मंदिर जहा मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाना है वर्जित, मां दुर्गा का अनोखा स्वरूप।
आज से नवरात्र की शुरुआत हो गई है। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।वही आज हम कोडरमा के एक ऐसे धर्म स्थल को दिखाने जा रहें है,, जहां मां दुर्गा के एक अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है, यहां मां दुर्गा के 10 वे स्वरूप, यानी की कन्या स्वरूप की पूजा होती है। जो मां चंचालिनी धाम के नाम से प्रसिद्ध है। देखिए हमारी एक रिपोर्ट….
कोडरमा के नवलशाही थाना क्षेत्र से तकरीबन 7 किलोमीटर दूर घने जंगलों में चंचाल पहाड़ी पर मां दुर्गा विराजमान है।400 फीट की ऊंची पहाड़ी का सफर सीढीयो से शुरू होता है। खड़ी पहाड़ी होने के बावजूद श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति से इस पहाड़ पर चढ़कर मां के दरबार पहुंचते है। जंहा मां दुर्गा की स्थापित पिंड का श्रद्धालु पूजा करते है।हालाकि 300 फीट की चढाई के बाद सीढ़िया का सफर खत्म हो जाता है।जिसके बाद 100 फीट की चढ़ाई श्रद्धालु पाइप के सहारे रेंगते हुए चढ़ते है। कष्टदायक सफल होने के बाद भी श्रद्धालु श्रद्धा के साथ मां चंचाल धाम पहुंचते हैं……
यंहा लगभग 200 वर्षों से अधिक समय से मां की पूजा की जा रही है। यही नहीं नवरात्र के समय दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग इस पहाड़ी पर पहुंच कर अपनी मन्नतो को लेकर धरना भी देते हैं।नवरात्र के साथ ही अन्य दिनों में भी यहा मां की पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है…..
इस नवरात्र के मौके पर मां दुर्गा के 9 अलग अलग स्वरूपों की पूजा होती है,वही इस चंचालिनी धाम में मां की कन्या स्वरूप की भी पूजा होती है। यहां मां दुर्गा को श्रृंगार तो चढ़ाया जाता है,लेकिन सिंदूर चढ़ाना पूरी तरह से वर्जित है……
यहां झारखंड के कई जिलों के साथ अन्य राज्यो के लोग नवरात्र के मौके पर पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। चंचला पहाड़ी लगभग 40 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।दुर्गम पहाड़ी होने के बावजूद यहां लोग पहुंचकर मां की पूजा करते है,ओर पहाड़ के चारो ओर सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच समय व्यतीत करते है….
मान्यता है की झरिया के राजा काली प्रसाद सिंह को शादी के कई वर्षों तक संतान सुख नहीं मिल रहा था। उस दौरान मां चंचालिनी के दरबार में मन्नत मांगने के लिए 1956 में अपनी पत्नी सोनामती देवी के साथ मां के दरबार में जंगल के बीच दुर्गम रास्तों से होकर पहुंचे थे और राजा काली प्रसाद सिंह को मां चंचालिनी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।जिसके बाद से यहां मां की आस्था से लोग जुड़ते गए……