Bollywood News:-मिथुन को देख लगा कि वो भी हीरो बन सकते हैं, पहली फिल्म में रोल कटा तो पूरी रात रोए
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प्रेरणा चौरसिया
Drishti Now Ranchi
आज इरफान खान की तीसरी पुण्यतिथि है। 29 अप्रैल, 2020 को न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर की वजह से उनका 54 साल की उम्र में निधन हो गया था। भले ही वो हमारे बीच नहीं है, मगर उनका नाम हमेशा बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर्स में लिया जाएगा।
NSD से शुरू हुआ उनका एक्टिंग सफर 30 सालों तक जारी रहा। इरफान ने कुल 69 फिल्मों में काम किया और पद्मश्री समेत कई सम्मान से नवाजे गए, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया।
फिल्मों से प्यार इतना गहरा था कि उसके लिए उन्होंने मां से झूठ भी बोला और एक्टिंग सीखने NSD चले गए। वहीं, जब पहली ही फिल्म में रोल कट गया तो वो पूरी रात रोए।
आज इरफान खान की पुण्यतिथि पर जानते हैं, उनकी लाइफ से जुड़े किस्से। ये सारे किस्से हमने उनकी बायोग्राफी ‘द मैन, द ड्रीमर, द स्टार- इरफान खान’ से लिए हैं, जिसे एक्टर असीम छाबड़ा ने लिखा है।
पिता का टायर का बिजनेस था
इरफान खान का जन्म राजस्थान के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। उनके पिता याशीन अली खान और मां सईदा बेगम खान थीं। पिता का टायर का बिजनेस था।
इरफान के पिता को शिकार का बहुत शौक था। वो इरफान को भी अपने साथ शिकार पर ले जाते थे। इरफान भी वहां बंदूक चलाते थे, लेकिन किसी जानवर का शिकार नहीं करते थे। यहां तक कि वो नॉनवेज भी नहीं खाते थे। इस पर उनके पिता अक्सर कहा करते थे कि पठान के परिवार में एक ब्राह्मण ने जन्म लिया है।
मां का सपना था लेक्चरर बने
इरफान के जीवन पर उनकी मां, नानी और बहन का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा, खासकर नानी का। छुट्टियों में वो ज्यादातर समय अपनी नानी के साथ ही गुजारते थे।
इरफान की मां चाहती थीं कि इरफान की पढ़ाई अंग्रेजी मीडियम स्कूल में हो। इस वजह से उनका दाखिला भी सेंट पॉल स्कूल में करा दिया, लेकिन आलम ये था कि इरफान को वहां की पढ़ाई बिल्कुल भी पल्ले नहीं पड़ती थी। मां का सपना था कि वो पढ़-लिख कर लेक्चरर बनें। वहीं पिता चाहते थे कि इरफान कोई हुनर सीख लें, लेकिन किसी दूसरे के यहां नौकरी कभी नहीं करें।
घर में फिल्में देखने की मनाही थी
इरफान को बचपन से ही फिल्मों से प्यार था, लेकिन इस बात से वो खुद भी अनजान थे। घर में भी फिल्में देखने की मनाही थी। जब घर पर उनके चाचा आते थे, वो सारे बच्चों को फिल्में दिखाने ले जाते थे। इस दौरान इरफान ने जो फिल्में देखीं, वो सब सिर्फ मनोरंजन के लिए थीं, लेकिन इसके बाद उन्होंने जो नसीरुद्दीन शाह और दिलीप कुमार की फिल्में 10वीं और 12वीं के दौरान देखीं, उनका इरफान पर एक अलग प्रभाव पड़ा। इसके बाद ही पहली बार उनके मन में एक्टर बनने का ख्याल आया।
मिथुन चक्रवर्ती को देख भरोसा हुआ कि एक्टर बन सकते हैं
इरफान एक्टर बनने के सपने तो देखने लगे, लेकिन इस सपने के बारे में किसी से बताने के लिए हिम्मत नहीं थी। उन्हें लगता था कि लोग उनका मजाक उड़ाएंगे। हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने अपने एक दोस्त को बताया कि वो एक्टर बनना चाहते हैं। साथ ही ये भी कहा कि वो इस बात का मजाक ना बनाए। 2 दिन तक दोस्त ने कुछ नहीं कहा, मगर बाद में किसी ना किसी पर चीज पर एक्टर बनने की बात पर उनका मजाक जरूर उड़ाता था।
इसके बाद इरफान के मन में सवाल था- क्या मुझ जैसा दिखने वाला भी कोई एक्टर बन सकता है? इसी दौरान जब उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती को फिल्मों में देखा, तो उन्हें हौसला मिला कि वो भी एक्टर बन सकते हैं।
मां से झूठ बोलकर NSD में अप्लाय किया
एक्टर बनने की चाहत में इरफान ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से ड्रामेटिक आर्ट्स में दो साल का डिप्लोमा किया। इसी बीच उन्होंने NSD में अप्लाय किया और उनका सिलेक्शन भी हो गया। अब मुसीबत ये थी कि वो घरवालों को इसके लिए कैसे मनाएं। तब उन्होंने एक तरकीब निकाली। उन्होंने मां से कहा कि NSD में पढ़ाई करने के बाद उनकी राजस्थान में लेक्चरर की नौकरी लग जाएगी। ये बात उन्होंने इसलिए कही, क्योंकि सच्चाई जानने के बाद मां उन्हें जाने नहीं देतीं। ये पहला झूठ था।
19 साल की उम्र में उठा पिता का साया
मां तो मान गईं, लेकिन जब इरफान के दिल्ली जाने का वक्त हुआ, तभी उनके पिता का निधन हो गया। पिता की मौत को याद करते हुए इरफान ने बताया था कि पिता बाथरूम में गिरे थे, चाचा ने कहा- डॉक्टर को जल्दी से बुलाकर लाओ। उन्हें कुछ हो गया। इरफान आनन-फानन में डॉक्टर को लेने निकल गए। जब वो डॉक्टर को लेकर घर पहुंचे तब तक पिता का निधन हो चुका था।
पिता की मौत के बाद सबकी निगाहें इरफान पर थीं। घर का बड़ा बेटा होने की वजह से सब चाहते थे कि वह परिवार की जिम्मेदारियां लें। तब इरफान को लगा कि एक्टर बनने का सपना बस ख्वाब बनकर ही रह जाएगा, लेकिन उनके सपने को पूरा करने में मदद छोटे भाई ने की। उन्होंने इरफान को आश्वासन दिया कि वो पिता के टायर के बिजनेस को संभालेंगे और परिवार का ख्याल रखेंगे।
NSD में एडमिशन लेने के लिए बनाई 10 नाटकों की फर्जी लिस्ट
इसके बाद इरफान दिल्ली पहुंचे और एडमिशन लेने NSD चले गए। एडमिशन के समय उन्हें एंट्री फॉर्म में दस नाटकों के नाम लिखने थे, जिसमें उन्होंने काम किया हो, लेकिन इरफान ने इससे पहले महज 3-4 नाटकों में ही काम किया था। वो किसी भी हालत में NSD में एडमिशन चाहते थे। इस वजह से उन्होंने झूठ में फॉर्म में 10 नाटकों का नाम लिख दिया और इस तरह उनका दाखिला NSD में हाे गया।
किसी को नहीं लगता था कि इरफान एक्टर बनेंगे
NSD के शुरुआती सफर में इरफान की मुलाकात विपिन तिवारी से हुई, जो बाद में बहुत अच्छे दोस्त बन गए। इसी दौरान वो सुतापा सिकदर (पत्नी) और मीता वशिष्ठ से मिले। NSD में शुरुआत में किसी ने भी इरफान को नोटिस नहीं किया। हॉस्टल के एकदम कोने में उनका एक छोटा सा कमरा था।
इस दौर को याद करते हुए उनकी पत्नी सुतापा ने बताया था कि किसी को नहीं लगता था कि इरफान एक्टर बनेंगे। बाद में धीरे-धीरे सबकी निगाहें इरफान पर टिक गईं। जब भी वो दोस्तों के साथ बैठते थे, सिर्फ फिल्मों और कहानियों के बारे में बात करते थे। हर वक्त उनके हाथ में कई सारी स्क्रिप्ट रहती थीं।
सुतापा दिल्ली की थीं और अक्सर वो घर पर अपने सभी दोस्तों को बुलाती थीं। वहां सभी एंजॉय करते थे, लेकिन इरफान सुतापा के भाई की लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ते थे। जब थोड़ा समय बीत जाता था, तब सुतापा की मां कहती थीं- अरे उस बेचारे बच्चे को बुला दो। वो भी कुछ खा ले।
लीड रोल के बाद जब साइड रोल मिला तो खूब रोए इरफान
NSD के आखिरी साल में उन्हें मीरा नायर ने कास्ट किया, वो बहुत खुश हुए, लेकिन ये खुशी अधूरी थी। दरअसल, फिल्म सलाम बॉम्बे के लिए डायरेक्टर मीरा नायर एक्टर की तलाश में एक दिन NSD गईं। तभी उनकी नजर इरफान पर पड़ी, जो स्क्रिप्ट लिए अपने नाटक की तैयारी कर रहे थे। उन्हें देखते ही मीरा नायर ने कास्ट करने का फैसला कर लिया। अगले दिन वो फिर NSD गईं, उन्होंने इरफान को फिल्म का ऑफर दिया और इरफान ने झट से हां कर दी।
इस ऑफर के बाद इरफान कुछ दिनों की छुट्टियां लेकर मुंबई आ गए। इस फिल्म की कहानी बच्चों के इर्द-गिर्द थी। इसी वजह से शूटिंग शुरू होने से पहले मीरा नायर ने इरफान सहित फिल्म के बाकी बच्चों ( जिन बच्चों ने फिल्म में काम किया था) के लिए 2 महीने की वर्कशॉप रखी। फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले मीरा नायर समेत बाकी टीम मेंबर्स को लगा कि इरफान बाकी बच्चों की तुलना में कुछ ज्यादा ही लंबे दिख रहे हैं। इस वजह से उन्हें लीड रोल से हटा दिया गया। हालांकि बाद में मीरा ने उन्हें छोटा सा रोल दे दिया, लेकिन इसे भी फाइनल एडिटिंग में काफी काट दिया गया।
ये बात इरफान को बहुत चुभ गई, वो पूरी रात रोए। वो काम करना चाहते थे इसलिए छोटा सा किरदार निभाने के लिए भी तैयार हो गए, लेकिन इस बात का असर उन पर लंबे समय तक रहा। उन्हें लगा कि वापस NSD जाकर दोस्तों का सामना कैसे करेंगे। हालांकि समय के साथ इन सबसे वो उबर गए।
चोट की वजह से स्कूल में उड़ता था मजाक
इरफान की एक कमजोरी थी। वो अपने आपको दूसरों से कम आंकते थे। दूसरे के सामने अपनी बातों को रखने में झिझकते थे। यही वजह थी कि उन्हें NSD में दूसरों से घुलने-मिलने में वक्त लगता था। इस झिझक की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। जब इरफान छोटे थे, तब पतंग उड़ाते वक्त वो छत से गिर गए थे। इस वजह से उनके बाएं हाथ की कोहनी और कलाई में चोट लग गई। जिसकी वजह से उन्हें लंबे समय तक तकलीफ रही। उनकी चोट का स्कूल में बच्चे मजाक बनाते थे जिस वजह से उन्होंने अपना कॉन्फिडेंस पूरी तरह से खो दिया था।
मौत के पहले इरफान ने फिल्म अंग्रेजी मीडियम के प्रमोशन के दौरान कुछ लाइनें अपने फैंस के लिए कही थीं। उनके ये आखिरी शब्द कुछ इस तरह थे…..
हैलो, भाइयों और बहनों! नमस्कार! मैं इरफान। मैं आज आपके साथ हूं भी और नहीं भी। खैर, ये फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ मेरे लिए बहुत खास है। सच, यकीन मानिए, मेरी दिली ख्वाहिश थी कि इस फिल्म को उतना ही प्यार से प्रमोट करूं जितना प्यार से हम लोगों ने बनाया है, लेकिन मेरे शरीर के अंदर कुछ अनचाहे मेहमान बैठे हुए हैं, उनसे वार्तालाप चल रहा है। देखते हैं किस करवट ऊंट बैठता है। जैसा भी होगा, आपको इतला कर दिया जाएगा। कहावत है ‘जब जिंदगी आपको नींबू देती है तो आप नींबू पानी बनाते हो।’
बोलने में अच्छा लगता है, लेकिन सच में जब जिंदगी आपके हाथ में नींबू थमाती है न तो शिकंजी बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है, लेकिन आपके पास और चॉइस भी क्या है पॉजिटिव रहने के अलावा? इन हालात में नींबू की शिकंजी बना पाते हैं कि नहीं, ये आप पर है। पर हम सबने ने इस फिल्म को उसी पॉजिटिविटी के साथ बनाया है। पर मुझे उम्मीद है कि ये फिल्म आपको सिखाएगी, हंसाएगी, रुलाएगी फिर हंसाएगी शायद!’